Sunday, June 14, 2020

संस्कृत गीति परम्परा का अद्भुत रत्न - तदेव गगनं सैव धरा

संस्कृत गीति परम्परा का अद्भुत रत्न - तदेव गगनं सैव धरा
कृति - तदेव गगनं सैव धरा

लेखक - श्रीनिवास रथ
विधा - संस्कृत गीति
प्रकाशक - राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, दिल्ली
संस्करण - द्वितीय, 2005 
पृष्ठ संख्या - 158
अंकित मूल्य - 50 रु.

               संस्कृत साहित्य में कवि श्रीनिवास रथ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आपके द्वारा रची गई संस्कृत गीतियां श्रोताओं के मुख पर विराजती हैं। श्रीनिवास रथ का जन्म कार्तिक पूर्णिमा संवत् 1990  को पुरी, उडीसा में हुआ। आपने सागर विश्वविद्यालय तथा विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन मे अध्यापन कार्य किया। आप कालिदास अकादेमी के निदेशक भी रहें। श्रीनिवास रथ को राष्ट्रपति सम्मान व साहित्य अकादेमी सम्मान से भी सम्मानित किया गया।

              तदेव गगनं सैव धरा कविता संग्रह संस्कृत गीत परम्परा में लिखा गया ऐसा साहित्य है जो पारम्परिक अभिव्यक्ति के साथ आधुनिक भावबोध से भी युक्त है। इस संग्रह में कुल 41 गीतियां संकलित हैं, साथ ही इनका हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है। प्रथम कविता के आधार पर इस संग्रह का नामकरण किया गया है-


जीवनगतिरनुदिनमपरा
तदेव गगनं सैव धरा।।
पापपुण्यविधुरा धरणीयं
कर्मफलं भवतादरणीयम्।
नैतद्-वचोऽधुना रमणीयं 
तथापि सदसद्-विवेचनीयम्।।
मतिरतिविकला
सीदति विफला
सकला परम्परा। तदेव............................

कवि गीति की लय में वर्तमान समाज की विसंगतियों को बहुत सूक्ष्मता के साथ देखते हुए उकेरते हैं। आप कितने ही तीर्थधामों में चले जाये, किन्तु भक्ति वहां नही मिलेगी, वह तो भक्त के मन में बसती है-

देवालयपूजा भवदीया
कथं भाविनी प्रशंसनीया।
धर्म-धारणा यदि परकीया
नैव रोचते यथा स्वकीया।।
भक्तिसाधनं
न वृन्दावनं 
काशी वा मथुरा। तदेव....................


कवि कहीं देशभक्ति से ओतप्रोत भारत जननी गीत गाता  है तो कहीं उस उज्जयिनी की महिमा का वर्णन करता है, जिसके अंक में उसके जीवन का अधिकांश व्यतीत हुआ है-

महाकालपूजास्वरललिता
कालिदासकविताकोमलता 
भुवनमलंकुरुते।
उज्जयिनी जयते।।

जब कवि अपने काव्य में उज्जयिनी के गीत गाता है तो भला ये कैसे हो सकता है कि वह उस शिप्रा नदी का विस्मृत कर दे, जिसने उज्जयिनी को पाला है, जो प्रद्योत सुता वासवदत्ता से, उदयन की घोषवती वीणा के स्वर से परिचित है-

परिचिनुते प्रद्योत-दुहितरं 
घोषवतीवीणा-स्वरनिकरम्।
उज्जयिनीनृपतीनां चरितं 
विमृशति जनता-मानसांकितम्।।
पौराणिक-रचनासु वन्दिता 
कविकुलगुरु-कविताभिनन्दिता। जयति.............

कवि उस भारत की रक्षा के लिये भी आह्वान करता है, जहां रामायण, भगवद्गीता जैसे ग्रन्थों की रचना हुई और जहां कृष्णा, कावेरी, गोदावरी जैसी नदियां प्रवाहित होती हैं। कवि श्रीनिवास रथ ने शिमला कविता में शिमला का मनमोहक चित्रण किया है। शिमला में चलने वाली टॉय ट्रेन की सांप जैसी गति को उकेरते हुए कवि को पगदण्डियां कहीं पर करधनी जैसी प्रतीत होती हैं तो कहीं जनेऊ जैसी, तो कहीं पशुपति शंकर के तन पर लिपटे सांपों की झांई जैसी-

खेलतीव सर्पति लघुयानं 
छरीं निविशते दरीदृश्यते।
गौरीगुरोः प्रदेशे विमला
शिमला कतिधा न मनेा हरते।
यज्ञोपवीत-सूत्रोपमिता 
क्वचिदपि कांचीगुण इव घटिता।
उरगाश्रित-पशुपतितनूपमा
प्रसरति सरणिदीपिता सुषमा।।

कतमा कविता शीर्षक वाले गीत में कवि प्रश्न करता है-

वद रे! तिमिरे
तव नेत्रपथं
कतमा कविता 
विततं कुरुताम्।
भवतापकथाऽनवधानतया
प्रथिता भवता भुवि नावगता।
परिवारित-वारिधर-प्रसरा
विवशा सकलापि धरा विकला।।
तमसा तरसा पिहिते भुवने 
सविता कति मानपदं भजताम्। वद रे!.................

अरे! बोलो इस अन्धकार में 
कौन सी कविता
तुम को राह दिखाये?
कथा सन्ताप की जग जाहिर,
तुम इतने बेसुध
तुम को समझ न आयी,
प्रतिबन्ध लग गया मेघों पर 
सारी धरती बेबस, विकल।

प्रबल तमस में 
जब सारा भुवन घिरा हो,
तब सूरज को कोई क्या देखे,
कैसा सम्मान करे?

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