कृति - सूर्यगेहे तमिस्रा (भारतीयदलितकविता)
अनुवादक व सम्पादक - डॉ. ऋषिराज जानी
प्रकाशक - गुजराती दलित साहित्य अकादमी, अहमदाबाद
संस्करण - प्रथम, 2018
पृष्ठ संख्या - 130
अंकित मूल्य -200 रू.
मोबाइल नम्बर- 9712375112
मेल आईडी - rushpharma@yahoo.co.in
संस्कृत साहित्य में अब वे स्वर भी अपना स्थान पा रहे हैं, जो कभी प्रायः उपेक्षित से रहे। विभिन्न भाषाओं के साहित्य के समान अब प्रगतिवाद, यथार्थवाद, स्त्रविमर्श, दलितविमर्श आदि के आधार पर रचनाएं लिखी जा रही हैं एवं उनको आलोचना के स्तर पर परखा भी जा रहा है। दलितविमर्श एक ऐसा ही विमर्श है। संस्कृत में दलितचेतना का निरूपण मौलिक कविता के रूप में धीरे - धीरे स्थान बना रहा है। आचार्य हर्षदेव माधव अपने नवीन काव्यशास्त्र वागीश्वरीकण्ठसूत्रम् में दलितचेतनानिरूपण का लक्षण करते हुए कहते हैं कि शोषित, दलित लोगों की पीडा, व्यग्रता, रोष आदि का निरूपण दलित चेतना है-
अनुवादक व सम्पादक - डॉ. ऋषिराज जानी
प्रकाशक - गुजराती दलित साहित्य अकादमी, अहमदाबाद
संस्करण - प्रथम, 2018
पृष्ठ संख्या - 130
अंकित मूल्य -200 रू.
मोबाइल नम्बर- 9712375112
मेल आईडी - rushpharma@yahoo.co.in
संस्कृत साहित्य में अब वे स्वर भी अपना स्थान पा रहे हैं, जो कभी प्रायः उपेक्षित से रहे। विभिन्न भाषाओं के साहित्य के समान अब प्रगतिवाद, यथार्थवाद, स्त्रविमर्श, दलितविमर्श आदि के आधार पर रचनाएं लिखी जा रही हैं एवं उनको आलोचना के स्तर पर परखा भी जा रहा है। दलितविमर्श एक ऐसा ही विमर्श है। संस्कृत में दलितचेतना का निरूपण मौलिक कविता के रूप में धीरे - धीरे स्थान बना रहा है। आचार्य हर्षदेव माधव अपने नवीन काव्यशास्त्र वागीश्वरीकण्ठसूत्रम् में दलितचेतनानिरूपण का लक्षण करते हुए कहते हैं कि शोषित, दलित लोगों की पीडा, व्यग्रता, रोष आदि का निरूपण दलित चेतना है-
शोषितदलितजनगतानां पीडाव्यग्रता-
रोषादीनां निरूपणं दलितचेतना ।।
डॉ. ऋषिराज जानी कविता, कथा एवं बाल साहित्य के क्षेत्र में अद्भुत कार्य कर रहे हैं। डॉ. जानी ने सूर्यगेहे तमिस्रा के रूप में अनुवाद के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। इस संग्रह में डॉ. जानी ने विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य में लिखी गई दलित विमर्श की कविताओं का संस्कृत अनुवाद किया है। डॉ. जानी ने इन कविताओं का चयन, सम्पादन एवं अनुवाद करके संस्कृत के पाठकों को भारतीय भाषाओं की दलित विमर्श की कविताओं के स्वर को पढने, सुनने का अवसर प्रदान किया है।
प्रस्तुत संग्रह में कुल 36 कवियों की कविताएं संकलित हैं। इन कवियों 34 कवि ं विभिन्न भाषाओं के हैं तो 2 कवियों की कविताएं मूल रूप से संस्कृत की हैं -
गुजराती कविता - अनुवादक ने संग्रह की 29 कविताएं गुजराती भाषा से ली हैं, जो 14 कवियों की रचनाएं हैं। इनमें पथिक परमार, जयन्त परमार, भी.न. वणकर, प्रवीण गढवी जैसे दलित विमर्श के महत्त्वपूर्ण रचनाकार सम्मिलित हैं। गुजराती साहित्य में दलित विमर्श की कविताएं प्रभूत मात्रा में लिखी जाती रही हैं। ऋषिराज जानी स्वयं भी गुजराती भाषा में कविताएं रचते हैं। यशवंत वाघेला की एक कविता द्रष्टव्य हैं, जिसमें वे वाल्मीकि से प्रश्न करते हैं-
हे वाल्मीके!
निषादकृतेन
क्रौंचवधेन
भवतः शोकः
श्लोकत्वं प्राप्नोत्
अपि च
रामायणस्य रचना जाता।
किन्तु
अस्माकं
प्रतिदिनं
एभिरार्तनादैः
चीत्कारैश्च
किं रचितं
भविष्यति?
हिन्दी कविता - इस भाग में 15 हिन्दी कवियों की कविताओं का संस्कृत रूपान्तरण दिया गया है। जिनमें जयप्रकाश कर्दम, मलखान सिंह, असंगघोष, सतनाम सिंह, पूरन सिंह आदि कवि सम्मिलित हैं। मोहनदास नैमिश्राय शम्बुक के तीव्र आर्तनाद को विषय बनाकर कहते हैं-
शम्बुकस्य तीव्रार्तनादानां
प्रतिध्वनयः
अधुना अवशिष्टाः,
यथा हि दलितानां पृष्ठे व्रणचिह्नानि।।
डॉ. गोवर्धन बंजारा का एक हाइकु गागर में सागर भरने वाला है-
एकलव्यस्य
छिन्नोऽंगुष्ठः, लक्ष्यते
शिवलिंगवत्।।
मराठी कविता - इस भाग में दया पंवार की एक कविता का अनुवाद दिया गया है।
असमिया कविता - अनुवादक ने असमिया भाषा से पीताम्बर दास एवं हरेन्द्र कुमार मछहारी की दो कविताओं का अनुवाद किया है। हरेन्द्र कुमार मछहारी की कविता में एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से बातचीत करता है-
त्वं मनुष्यः
अहञ्च।
आवामीश्वरस्यैव सन्तती।
वस्तुतः आवां संलग्नौ परस्परं
किन्तु आवयोर्नास्ति परिचयः।
पंजाबी कविता - पंजाबी भाष से द्वारका भारती की तीन कविताएं अनूदित की गई हैं। लज्जा कविता बडी मार्मिक कविता है-
कथम् एवं भवति
यत्
कस्यापि धर्मस्थानस्य समीपे
बहुधा गच्छतो मम शिरः
अवनमति
न श्रद्धया,
किन्तु
लज्जया?
बंगला कविता - इस भाग में बांगला भाषा की कवयित्री मंजूबाला की एक कविता का अनुवाद सम्मिलित है।
संस्कृत कविता - संस्कृत में भी मौलिक कविता के रूप में दलित विमर्श पर रचनाएं लिखी जा रही हैं, यद्यपि ये संख्या में अल्प ही हैं। यहां दो कवियों की चार संस्कृत कविताएं संकलित की गई हैं, जिनमें हर्षदेव माधव की तीन कविताएं तथा ऋषिराज जानी की एक कविता है। हर्षदेव माधव की कविता अहमस्मि तमिस्रा का एक अंश प्रस्तुत है-
अयं व्रणो
ब्राह्मणानां कूपाद् जलमानेतुं
गतयोश्चरणयोरपराधः
हस्ते यो दृश्यते
स तु
अपक्वरोटिकां दृष्ट्वा
मात्रा तप्तसन्दशिकाचिह्नेन
कृतोऽस्त्यनैपुण्यसूचकः।
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