कृति - नीरवतायाः प्रतिध्वनिः Echo of Silence
कृतिकार - पराम्बा श्रीयोगमाया
विधा - मुक्तछंद काव्यसंग्रह
संस्करण - प्रथम 2020
प्रकाशक - cyberwit net allahabad
पृष्ठ संख्या - 202
अंकित मूल्य - 300
पराम्बा श्रीयोगमाया आधुनिक संस्कृत साहित्य की कतिपय महिला कवियों में प्रमुख हैं| डॉ. परम्बा श्री योगमाया एक वैदिक विदुषी हैं और भारत के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उनके शोध के अन्य क्षेत्रों में इंडोलॉजी, महाकाव्य और पुराण, दर्शन और धर्म, और समकालीन संस्कृत साहित्य शामिल हैं। अपने शैक्षणिक रुझान के अलावा, वह कविताएं, लघु कथाएँ और निबंध ज्यादातर संस्कृत में, लेकिन अंग्रेजी, उड़िया और हिंदी भाषाओं में भी लिखती हैं और इन भाषाओं के साहित्य का संस्कृत में अनुवाद करती हैं। अब तक उनकी पांच पुस्तकें, एक निबंध संग्रह, एक अनुवादित विज्ञान कथा, एक कविता पुस्तक, एक लघु कहानी पुस्तक और एक शोध पुस्तक संस्कृत में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें 2014 में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा संस्कृत के लिए 'युवा पुरस्कार' और 2013 में भाओ राव सेवा न्यास, लखनऊ द्वारा संस्कृत के लिए प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान भी प्राप्त हुआ है|
पराम्बा का नवीन काव्य संग्रह नीरवतायाः प्रतिध्वनिः शीर्षक से प्रकाशित हुआ है| यह मुक्त छंद विधा में रचा गया है| प्रस्तुत संकलन में कवि की 100 कविताओं निबद्ध हैं| जिनका अन्य भाषाओं के लोगों की समझ के लिए कवि ने स्वयं अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है। इस पुस्तक का विषय जीवन में असफलताओं और उनसे सफलतापूर्वक निपटने और जीवन की यात्रा में आगे बढ़ने के बारे में कवि का आत्मनिरीक्षण है। इन कविताओं के माध्यम से कवि संदेश देना चाहती है कि मन का दार्शनिक मिश्रण और आत्मा की आध्यात्मिक शक्ति हमें जीवन की नाव को असफलताओं के उबड़-खाबड़ पानी से निकालकर जीवन के अंतिम लक्ष्य के किनारे तक ले जाती है। कविताओं में वैदिक, भारतीय दार्शनिक प्रणालियां और जगन्नाथ पंथ की कुछ छवियाँ परिलक्षित होती हैं।
राजनेता विकास की बहुत बात करते हैं लेकिन विकास सच्चे मायनों में क्या होता है यह समझाते हुए कवि लिखती हैं -
विकसितराष्ट्रस्य स्वप्नः
साक्षात्कारसाफल्यपरिणामः
प्रथमश्रेण्यां प्रथमछात्रस्य हर्षः
प्राचुर्योल्लसितः कृषकः
अन्नाहजारे-आदीनां विप्लवसमाप्तौ विश्रामः ।।
जोषीमठशिख्गुरुद्वारे इस्लामभ्रातृणां नमाजपाठः
वियुक्तपञ्चपञ्चाशत्तापमाने सियाचीने सैन्यं रक्षाकवचम् ।
नक्सलमाओवादीनां सामूहिकात्मसमर्पणं
लघूद्योगेन स्वात्मनिर्भरत्वम् ।
मध्याह्न भोजनद्विचक्रिकावितरणं विहाय
शिक्षाया गुणात्मकत्वम् ।
दारिद्यापनोदनाय स्वदेशीद्रव्याणामुत्पादनम् ।।
Development
The dream of a developed nation
Is like
The success in an interview for job,
The contentment of a laborious student
When he/she stands first.
The gladness of a farmer
When he cultivates a lot of crops,
It's like taking rest after the revolution of
Anna Hazare and others.
It's the 'Namaz' by Muslim brothers
In Joshi Math and Gurudvara there
As rainwater flooded the mosque,
The bravery of the military troops at Siachen
In -50 degree temperature,
Surrender of the Maos and Naxals at a time
And engaging themselves in short-term
entrepreneurships.
Steps to maintain the quality education are needed
Rather than the mid-day meals and distributing bicycles
And more indigenous products can eradicate poverty.
वस्तुतः सच्चा विकास तभी तो होगा जब वह जात पात धर्म आदि की सीमाओं से ऊपर उठकर सब के लिए समान रूप से लागू होगा| जो वंचित अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करते हुए नक्सली माओवादी बन गए वे आत्मसमर्पण करें और मुख्यधारा में लौट आएं, ऐसी कामना भी कवि करती हैं तो साथ ही विद्यालय शिक्षा में मिड डे मील साइकिल वितरण जैसी योजनाएं संचालित होती हैं उनके स्थान पर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दी जाएं यह भी सही विकास होगा, कवि यह कहना चाहती है|
पलाश नामक कविता में पलाश सुंदर किंतु गुणों से हीन पुरुष का प्रतीक बन जाता है -
सुरभिरहितः पलाशकुसुमः
गुणहीनो रूपवान् पुरुषः
अन्तःसारहीनत्वं परिज्ञायते नितरां
शीघ्रं भवतु वा विलम्बः ।।
स्फटिकः कविता में कवि चाहती है कि जिस तरह वह स्वच्छ है उसी तरह से अन्य भी स्वच्छ हृदय, स्वच्छ मन वाले बने,अन्यथा वह स्वयं भी कलुषित हो सकती है_
नाहं किञ्चिदपि कांक्षे
तव स्वच्छहृदयं विना ।
न धनं नालङ्कारं
न मानं न पुरस्कारं
न जनं न कोलाहलं
त्वत् स्वच्छमानसं विना ।।
न म्लानयतु मां
त्वहृदयकालुष्येण
न जालयतु मां त्वन्मनसः कषायेण
स्फटिकोऽहं शुभ्रोज्वलः ।।
कांक्षे सूर्यमयूखान्
कांक्षे चन्द्राभाः
कांक्षे आकाशविस्तारं
कांक्षे आधारमपि धरातलम् ।।
सर्वेषां प्रतिबिम्बनं
मन्मध्ये भवति यादृच्छिकं
तन्न मन्मौलिकत्वम् ।।
शुद्धः स्फटिकोऽहं
स्वच्छः स्फटिकोऽहं
जानामि जगत्स्वरूपम् ।।
स्फटिक बन के ही जगत के सही स्वरूप को जाना जा सकता है| पुलवामा अटैक के बाद सर्जिकल स्ट्राइक पर भी कवि ने अपने भाव कविता के माध्यम से व्यक्त किए हैं जो संस्कृत कवि की समकालीन जागरूकता को प्रदर्शित करती है_
अहं भारतदेशः
यदि नेच्छसि समरं
तर्हि किमर्थं मत्सैन्यबलं मारितम् ??
यदि सैन्यमृत्यौ नास्ति ते भूमिका
आतङ्किभिर्मारिताः
तह्यतङ्कीनां हनने
त्वत्प्रतिवादस्य का कथा ??
आतङ्कवादस्य निर्मूलनम-
स्मदीयं सामान्यमेकादर्शभूतं
शान्तिप्रीतिबन्धुत्वस्य विशालभूखण्डमा-
वयोर्मेलनायोद्दिष्टम् ।।
परांबा ने प्रस्तुत काव्य संग्रह में अपने भावों को अभिव्यक्त करते हुए विभिन्न विषयों को छुआ है| वे मानव मन की कवि हैं| मुक्त छंद में कवि के मुक्त मन के भाव अविरल रूप से प्रवाहित हुए हैं|
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