Tuesday, June 18, 2024

ऐतिहासिक खंडकाव्य _श्रीमदूधमसिंहचरितम्

कृति _ श्रीमदूधमसिंहचरितम्



कृतिकार _ ऋषिराज पाठक

विधा _ खंडकाव्य 

प्रकाशक_देववाणी-परिषद्, दिल्ली आर-६, वाणीविहारः, नवदिल्ली-११००५९ (भारतम्) ०११-२८५६१८४६

संस्करण_ 2019 प्रथम

पृष्ठ संख्या _ 76

अंकित मूल्य_ 300 रुपए 



संस्कृत साहित्य में खंडकाव्य की सुदीर्घ परंपरा रही है| विविध विषयों पर अर्वाचीन साहित्य में भी अनेक खंडकाव्य रचे जा रहे हैं| युवा कवि ऋषिराज पाठक गीत, संगीत और साहित्य रचना में सतत संलग्न रहते हैं| युवा कवि का प्रथम काव्य संग्रह खंडकाव्य विधा में प्रकाशित हुआ है| यह एक ऐतिहासिक खंडकाव्य है| स्वतंत्रता सेनानियों में प्रमुख ऊधम सिंह के जीवन और उनके स्वतंत्रता आंदोलन में किए गए योगदान से परिचित करवाने के लिए यह काव्य रचा गया है| 


                 13 अप्रैल 1919 को हुआ जलियांवाला बाग हत्याकांड इतिहास के घोर नृशंस हत्याकांडों में से एक है| प्रस्तुत खंडकाव्य में इस हत्याकांड के समय ऊधम सिंह द्वारा की गई प्रतिज्ञा और उसकी पूर्ति को केंद्र में रखा गया है| खंडकाव्य में 60 श्लोक हैं जो अनुष्टुप छंद में हैं| 

                                  कवि भारतभूमि को नमन करता हुआ कहता है कि वह राष्ट्र के जनमानस में क्रांति का संचार करने वाले चरित का वर्णन कर रहा है_


देशभक्तिरसस्नातान् 

मातृभूमिसुतान् भटान्। 

वीरान् नत्वा तथा कुर्वे 

चरितं वीरतामयम्॥


श्रीमदूधमसिंहस्य 

राष्ट्रभक्तिप्लुतं महद्। 

वन्द्यं संक्रान्तिसंचारं

 राष्ट्रमानाभिवर्धकम् ॥

  


कवि आगे वर्णन करता है कि 1899 में पंजाब प्रांत में पटियाला भूमि के सुनाम नामक गांव में सिक्ख परिवार में ऊधम सिंह का जन्म हुआ| इनके बचपन का नाम शेरसिंह था_


शेरसिंहाभिधानोऽयम् 

ऊधमोऽपि प्रकीर्तितः। 

आदरः सरदाराणाम् 

उदारः शत्रुदारणः ॥


यहां अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है| माता और पिता की जल्द ही मृत्यु हो जाने से ये एक अनाथालय में रहे और वहीं सिक्ख धर्म की शिक्षा ग्रहण की| जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय इनकी आयु महज 20 वर्ष थी| ऊधम सिंह उस हत्याकांड के समय वहीं उपस्थित थे| जनसमूह रोलेक्ट एक्ट का विरोध करने के लिए वहां एकत्रित हुआ था| कर्नल डायर के आदेश से सैनिकों ने बर्बरता पूर्वक जनसमूह का संहार किया_


यदाङ्ग्लो डायरो दुष्टो

विद्रोहं ज्ञातवानिमम्। 

तदादिशद् विघाताय 

निःशस्त्राणां सभामहे ॥


डायरादेशतस्तत्र 

सेनया प्रहृतं ततः। 

चक्ररूपभुशुण्डीभिर् 

अग्निगोलकवृष्टिभिः॥



लोगों के भागने के लिए एक दरवाजा था इस भी बंद कर दिया गया और प्राण बचाने के लिए कुंए में कूद गए और मारे गए_


अनेके कूर्दिताः कूपे 

प्राणरक्षाकृते जनाः। 

शवानां पर्वतस्तत्र 

क्षणे कूपे स्थितः परम्॥


इस नरसंहार से आहत होकर ऊधम सिंह ने डायर को मारने की प्रतिज्ञा की_


नरसंहारसंभारं 

दृष्ट्वा भीष्मप्रतिज्ञया। 

ऊधमसिंहवीरोऽसौ 

संकल्पं कृतवान् दृढम्॥


डायरं मारयिष्यामि 

नूनमेष दृढव्रतः। 

एतदेवास्ति लक्ष्यं मे 

चिन्तयामास तद्गतः॥

       

            

                        ऊधम सिंह ने इस दौरान हथियार जुटाने के लिए भी परिश्रम किया | इस वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा| अंततः कई मुसीबतों को झेलते हुए, विदेशी यात्राएं करते हुए 13 मार्च 1940 को अर्थात हत्याकांड के लगभग 21 वर्ष बाद लंदन के किंगस्टन शहर में डायर को मौत के घाट उतार दिया और अपनी प्रतिज्ञा पूरी की_


समारोहस्य तस्यान्ते

 तूर्णं स्वीयासनादसौ। 

उत्थाय डायरे तिस्रो 

गोलिकाः प्रजहार ह॥


डायरान्ते जगादोऽसौ 

वाक्यमेतत्प्रहर्षितः । 

प्रतिज्ञातो मया पूर्वः 

संकल्पः पूरितोऽधुना ॥



लंदन में ही 31 जुलाई को वीर शहीद को फांसी दे दी गई| 

        यहां गौरतलब है कि रेजिनल्ड् एडवई हैरी डायर और माइकल ओ डायर, दोनों भिन्न-भिन्न थे। रेजिनल्ड् एडवर्ड हैरी डायर जलियाँवाला बाग की क्रूर हिंसा का मुख्य अपराधी था, जबकि माइकल ओ डायर, जिसने इस हत्याकाण्ड की प्रशंसा की थी, मुख्य सैन्याध्यक्ष था। रेजिनल्ड् एडवर्ड हैरी डायर २४ जुलाई १९२७ को मस्तिष्क आघात से मृत्यु को प्राप्त हो गया तथा श्री ऊधमसिंह जी ने १३ जुलाई १९४० ई. को लन्दन में जाकर माइकल ओ डायर का वध कर दिया। इस काव्य में इन दोनों के पार्थक्य का उल्लेख न करते हुए दोनों के लिए मात्र एक ही 'डायर' शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका संकेत स्वयं कवि ने काव्य के प्रारंभ में प्राग्वाचिकम् में किया है किंतु काव्य के श्लोकों में कहीं भी इसका संकेत नहीं है| इसको स्पष्ट करते हुए कथा को और आकार दिया जाना चाहिए था| 



          खंडकाव्य को मूल संस्कृत के साथ हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया गाय है| हिंदी अनुवाद मुनिराज पाठक ने, अंग्रेजी अनुवाद सत्यार्थ ग्रोवर ने और पंजाबी अनुवाद गुरदीप कौर ने किया है| परिशिष्ट में काव्य की कथा से संबंधित चित्र भी दिए गए हैं| सत्य घटना पर आधारित यह ऐतिहासिक खंडकाव्य स्वागतयोग्य है| 


 



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