कृति - संस्कृत काव्यशास्त्र - आधुनिक आयाम
विधा - समीक्षा
प्रधान सम्पादक - प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी
सम्पादक - डॉ. नौनिहाल गौतम, डॉ. संजय कुमार, डॉ. रामहेत गौतम, डॉ. शशिकुमार सिंह, डॉ. किरण आर्या
प्रकाशक- अनुज्ञा बुक्स, शाहदरा, दिल्ली - 110032
पृष्ठ संख्या - 199
अंकित मूल्य - 500
आधुनिक संस्कृत साहित्य की समालोचना के लिये आधुनिक काव्यशास्त्र की आवश्यकता होना स्वाभाविक है। 17 वीं सदी में पण्डितराज जगन्नाथ कृत रसगंगाधर पर ही काव्यशास्त्र पूर्णता प्राप्त कर विश्राम नहीं लेता है अपितु वह तो नित नई सम्भावनाओं के अनुरूप अपने को परिवर्तित करता रहता है। रेवाप्रसाद द्विवेदी कृत काव्यलंकारकारिका, ब्रह्मानन्द शर्मा कृत काव्यसत्यालोक, शिवजी उपाध्याय कृत साहित्यसन्दर्भ, राधावल्लभ त्रिपाठी कृत अभिनवकाव्यालंकारसूत्रम्, अभिराज राजेन्द्र मिश्र कृत अभिराजयशोभूषणम्, रहस बिहारी द्विवेदी कृत नव्यकाव्यतत्त्वमीमांसा, हर्षदेव माधव कृत वागीश्वरीकण्ठसूत्रम् आदि अनेक आधुनिक काव्यशास्त्रों के माध्यम से आधुनिक आचार्यों ने अपने काव्यशास्त्रीय विचार हमारे समक्ष रखे हैं। रेवाप्रसाद द्विवेदी एवं राधावल्लभ त्रिपाठी द्वारा अलंकार को पुनः काव्य की आत्मा स्वीकार किया गया है तथा अलंकार पद में अलम् का अर्थ पूर्णता से लिया गया है-अलं ब्रह्म। अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने प्रयोजन आदि पर अपने विचार प्रकट करते हुए साहित्य की नवीन विधाओं के लक्षण करने का स्तुत्य कार्य किया है। हर्षदेव माधव ने साहित्य में प्रचलित वादों को प्रथमतया संस्कृतबद्व करके सोदाहरण प्रस्तुत किया है। ब्रह्मानन्द शर्मा ने सत्य को काव्य की आत्मा माना है। इन काव्यलक्षण, काव्यहेतु, काव्यभेद, अलंकार आदि पर सर्वथा मौलिक विचारों की समीक्षा भी समय समय किया जाना आवश्यक है।
संस्कृत काव्यशास्त्र - आधुनिक आयाम नामक पुस्तक में आधुनिक काव्यशास्त्र के सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक में कुल 19 लेख संकलित हैं। पहला लेख प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी का है, जो स्वयं काव्यशास्त्र के महनीय आचार्य हैं। ‘‘सौन्दर्यशास्त्र की भारतीय परम्परा’’-लेख में प्रो. त्रिपाठी ने इस धारणा को निर्मूल सिद्ध किया है कि सौन्दर्यशास्त्र पर भारतीय परम्परा में विचार ही नहीं किया गया। वे ये तोे स्वीकारते हैं कि हमारे यहां पृथक् से कोई सौन्दर्यशास्त्र नहीं रहा किन्तु साथ ही सप्रमाण यह भी कहते हैं कि अनेक शास्त्रों में प्रसंगवश सौन्दर्य पर बहुत गहनता से विचार किया गया है। उनके अनुसार अलंकार नामक एक समग्र सौन्दर्यशास्त्र प्राचीन भारत में था, जिसे आगे चलकर साहित्यशास़्त्र एवं कलाशास्त्रों में समाहित कर लिया गया। यह एक 48 पृष्ठों का विस्तृत महत्त्वपूर्ण लेख है, जिसमें वैदिक सौन्दर्यशास्त्र, वात्स्यायन का सौन्दर्यविमर्श, नाट्यशास्त्र में सैन्दर्यविमर्श, शैवशास्त्र में सौन्दर्यविमर्श, कवियों तथा आचार्यो की परम्परा में सौन्दर्यविमर्श बिन्दुओं के माध्यम से भारतीय सौन्दर्य विचारधारा को प्रकट किया है।
पूर्णचन्द्र उपाध्याय ने ‘‘आचार्यराधावल्लभीयकाव्यहेतोरभिनवत्वम्’’ लेख के माध्यम से अभिनवकाव्यालंकारसूत्र में वर्णित काव्यहेतुओं की चर्चा की है। काव्यलक्षण पर दो महत्त्वपूर्ण लेख हैं, प्रथम लेख नौनिहाल गौतम का है- ‘‘आधुनिक संस्कृत काव्यशास्त्र का काव्यलक्षण-गत वैशिष्ट्य’’ तथा द्वितीय लेख जयप्रकाश नारायण का है -‘‘प्रमुख अर्वाचीन काव्यलक्षण’’, जिन में काव्य के अर्वाचीन लक्षणों की समीक्षा की गई है।
रहस बिहारी द्विवेदी का लेख ‘‘काव्याधिकरणानुभूतिविमर्शः’’, रामहेत गौतम का लेख ‘‘लोकानुकीर्तनं काव्यम्’’, शिवपूजन चौरसिया का लेख ‘‘अभिराजयशोभूषणम् में काव्यस्वरूप’’ तथा प्रदीप दुबे का लेख ‘‘काव्यालंकारकारिका के आलोक में अलंकार की काव्यात्मकता’’ अपने-अपने विषयों की पडताल बेहतर तरीके से करते हैं। काव्यसत्यालोक पर दो लेख संकलित हैं - शशि कुमार सिंह का लेख ‘‘काव्यसत्यालोक में व्यंजना’’ एवं माधवी श्रीवास्तव का लेख ‘‘काव्यसत्यालोक में प्रतिपादित सत्य’’। आचार्य ब्रह्मानन्द शर्मा ने प्राकृत, आर्थ और हृदयज भेद से तीन प्रकार का सत्य बताते हुए आर्थ सत्य को काव्य में प्रमुख माना है। संजय कुमार ने ‘‘संस्कृत की अभिनवरचनाधर्मिता: काव्यशास्त्रीय पक्ष’’ के द्वारा विभिन्न काव्यशास्त्रीय पक्षों को उकेरा है। नीरज कुमार का लेख ‘‘अभिराजयशोभूषणम् में लोकगीत’’ तथा सत्यप्रकाश का लेख ‘‘अभिराजयशोभूषणम् में गलज्जलिका’’ साहित्य की नवीन विधाओं का परिचय प्रस्तुत करते हैं । हर्षदेव माधव के काव्यशास्त्र का परिचय कौशल तिवारी ने ‘‘वागीश्वरीकण्ठसूत्रम्’’ में प्रस्तुत किया है। राघवेन्द्र शर्मा ने ‘‘विंशशताब्द्यां विरचिताः काव्यशास्त्रीय-शोधप्रबन्धाःः’’ के द्वारा भामह से मम्मट पर्यन्त आचार्यों के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों पर हुए शोधकार्यों का परिचय दिया गया है।
अपने 19 लेखों के द्वारा यह ग्रन्थ संस्कृत काव्यशास्त्र के आधुनिक आयामों की विवेचना करता है और चिन्तन के नये द्वारों की सम्भावना भी बनाए रखता है।
विधा - समीक्षा
प्रधान सम्पादक - प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी
सम्पादक - डॉ. नौनिहाल गौतम, डॉ. संजय कुमार, डॉ. रामहेत गौतम, डॉ. शशिकुमार सिंह, डॉ. किरण आर्या
प्रकाशक- अनुज्ञा बुक्स, शाहदरा, दिल्ली - 110032
पृष्ठ संख्या - 199
अंकित मूल्य - 500
आधुनिक संस्कृत साहित्य की समालोचना के लिये आधुनिक काव्यशास्त्र की आवश्यकता होना स्वाभाविक है। 17 वीं सदी में पण्डितराज जगन्नाथ कृत रसगंगाधर पर ही काव्यशास्त्र पूर्णता प्राप्त कर विश्राम नहीं लेता है अपितु वह तो नित नई सम्भावनाओं के अनुरूप अपने को परिवर्तित करता रहता है। रेवाप्रसाद द्विवेदी कृत काव्यलंकारकारिका, ब्रह्मानन्द शर्मा कृत काव्यसत्यालोक, शिवजी उपाध्याय कृत साहित्यसन्दर्भ, राधावल्लभ त्रिपाठी कृत अभिनवकाव्यालंकारसूत्रम्, अभिराज राजेन्द्र मिश्र कृत अभिराजयशोभूषणम्, रहस बिहारी द्विवेदी कृत नव्यकाव्यतत्त्वमीमांसा, हर्षदेव माधव कृत वागीश्वरीकण्ठसूत्रम् आदि अनेक आधुनिक काव्यशास्त्रों के माध्यम से आधुनिक आचार्यों ने अपने काव्यशास्त्रीय विचार हमारे समक्ष रखे हैं। रेवाप्रसाद द्विवेदी एवं राधावल्लभ त्रिपाठी द्वारा अलंकार को पुनः काव्य की आत्मा स्वीकार किया गया है तथा अलंकार पद में अलम् का अर्थ पूर्णता से लिया गया है-अलं ब्रह्म। अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने प्रयोजन आदि पर अपने विचार प्रकट करते हुए साहित्य की नवीन विधाओं के लक्षण करने का स्तुत्य कार्य किया है। हर्षदेव माधव ने साहित्य में प्रचलित वादों को प्रथमतया संस्कृतबद्व करके सोदाहरण प्रस्तुत किया है। ब्रह्मानन्द शर्मा ने सत्य को काव्य की आत्मा माना है। इन काव्यलक्षण, काव्यहेतु, काव्यभेद, अलंकार आदि पर सर्वथा मौलिक विचारों की समीक्षा भी समय समय किया जाना आवश्यक है।
संस्कृत काव्यशास्त्र - आधुनिक आयाम नामक पुस्तक में आधुनिक काव्यशास्त्र के सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक में कुल 19 लेख संकलित हैं। पहला लेख प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी का है, जो स्वयं काव्यशास्त्र के महनीय आचार्य हैं। ‘‘सौन्दर्यशास्त्र की भारतीय परम्परा’’-लेख में प्रो. त्रिपाठी ने इस धारणा को निर्मूल सिद्ध किया है कि सौन्दर्यशास्त्र पर भारतीय परम्परा में विचार ही नहीं किया गया। वे ये तोे स्वीकारते हैं कि हमारे यहां पृथक् से कोई सौन्दर्यशास्त्र नहीं रहा किन्तु साथ ही सप्रमाण यह भी कहते हैं कि अनेक शास्त्रों में प्रसंगवश सौन्दर्य पर बहुत गहनता से विचार किया गया है। उनके अनुसार अलंकार नामक एक समग्र सौन्दर्यशास्त्र प्राचीन भारत में था, जिसे आगे चलकर साहित्यशास़्त्र एवं कलाशास्त्रों में समाहित कर लिया गया। यह एक 48 पृष्ठों का विस्तृत महत्त्वपूर्ण लेख है, जिसमें वैदिक सौन्दर्यशास्त्र, वात्स्यायन का सौन्दर्यविमर्श, नाट्यशास्त्र में सैन्दर्यविमर्श, शैवशास्त्र में सौन्दर्यविमर्श, कवियों तथा आचार्यो की परम्परा में सौन्दर्यविमर्श बिन्दुओं के माध्यम से भारतीय सौन्दर्य विचारधारा को प्रकट किया है।
- काव्यप्रयोजन पर स्वतन्त्र रूप से दो लेख हैं- नारायण दाश लिखित - ‘‘आधुनिककाव्यशास्त्रे काव्यप्रयोजनम्’’ और बाबूलाल मीना लिखित - ‘‘आधुनिक संस्कृत साहित्यशा़स्त्र में काव्यप्रयोजन’’। दोनों ही लेखकों ने विस्तारपूर्वक आधुनिक काव्यशास्त्र में वर्णित काव्यप्रयोजनों का वर्णन किया है। अभिनवकाव्यालंकारसूत्रम् ग्रन्थ में मुक्ति को काव्य का प्रयोजन माना गया है- मुक्तिस्तस्य प्रयोजनम्। इस मुक्ति की अवधारणा पर धर्मेन्द्र कुमार सिंह देव ने ‘‘मुक्तेः काव्यप्रयोजनत्वम्’’ में तथा ऋषभ भारद्वाज ने ‘‘अभिनवकाव्यालंकारसूत्र में मुक्ति’’ लेख में अपने विचार रखे हैं। काव्य से मुक्ति सर्वथा नवीन अवधारणा है, जिसकी अनेक लेखों से समालोचना भी की जा रही है।
पूर्णचन्द्र उपाध्याय ने ‘‘आचार्यराधावल्लभीयकाव्यहेतोरभिनवत्वम्’’ लेख के माध्यम से अभिनवकाव्यालंकारसूत्र में वर्णित काव्यहेतुओं की चर्चा की है। काव्यलक्षण पर दो महत्त्वपूर्ण लेख हैं, प्रथम लेख नौनिहाल गौतम का है- ‘‘आधुनिक संस्कृत काव्यशास्त्र का काव्यलक्षण-गत वैशिष्ट्य’’ तथा द्वितीय लेख जयप्रकाश नारायण का है -‘‘प्रमुख अर्वाचीन काव्यलक्षण’’, जिन में काव्य के अर्वाचीन लक्षणों की समीक्षा की गई है।
रहस बिहारी द्विवेदी का लेख ‘‘काव्याधिकरणानुभूतिविमर्शः’’, रामहेत गौतम का लेख ‘‘लोकानुकीर्तनं काव्यम्’’, शिवपूजन चौरसिया का लेख ‘‘अभिराजयशोभूषणम् में काव्यस्वरूप’’ तथा प्रदीप दुबे का लेख ‘‘काव्यालंकारकारिका के आलोक में अलंकार की काव्यात्मकता’’ अपने-अपने विषयों की पडताल बेहतर तरीके से करते हैं। काव्यसत्यालोक पर दो लेख संकलित हैं - शशि कुमार सिंह का लेख ‘‘काव्यसत्यालोक में व्यंजना’’ एवं माधवी श्रीवास्तव का लेख ‘‘काव्यसत्यालोक में प्रतिपादित सत्य’’। आचार्य ब्रह्मानन्द शर्मा ने प्राकृत, आर्थ और हृदयज भेद से तीन प्रकार का सत्य बताते हुए आर्थ सत्य को काव्य में प्रमुख माना है। संजय कुमार ने ‘‘संस्कृत की अभिनवरचनाधर्मिता: काव्यशास्त्रीय पक्ष’’ के द्वारा विभिन्न काव्यशास्त्रीय पक्षों को उकेरा है। नीरज कुमार का लेख ‘‘अभिराजयशोभूषणम् में लोकगीत’’ तथा सत्यप्रकाश का लेख ‘‘अभिराजयशोभूषणम् में गलज्जलिका’’ साहित्य की नवीन विधाओं का परिचय प्रस्तुत करते हैं । हर्षदेव माधव के काव्यशास्त्र का परिचय कौशल तिवारी ने ‘‘वागीश्वरीकण्ठसूत्रम्’’ में प्रस्तुत किया है। राघवेन्द्र शर्मा ने ‘‘विंशशताब्द्यां विरचिताः काव्यशास्त्रीय-शोधप्रबन्धाःः’’ के द्वारा भामह से मम्मट पर्यन्त आचार्यों के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों पर हुए शोधकार्यों का परिचय दिया गया है।
अपने 19 लेखों के द्वारा यह ग्रन्थ संस्कृत काव्यशास्त्र के आधुनिक आयामों की विवेचना करता है और चिन्तन के नये द्वारों की सम्भावना भी बनाए रखता है।
अत्यन्त उपादेय ग्रन्थ ।
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Deleteश्लाघ्य: प्रयास:।अनेन युवान: आधुनिकसंस्कृतकाव्यसाहित्यरचनाभि:सह परिचिता भविष्यन्ति।सादरं नमामि।
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Deleteअभिनन्दनानि । पुनरपि निवेद्यन्ते तत्रभवन्तो यत् संस्कृतकवितायाः समीक्षणं संस्कृतभाषया एव भवतु । यावदानन्दवर्धनमम्मटसदृशाः समालोचकाः संस्कृतजगति नोत्पत्स्यन्ते तावत् कालिदाससदृशाः कवयः अपि न सम्भविष्यन्ति ।
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Deleteआप का कथन सही है, पर हमारा उद्देश्य न केवल संस्कृत वालों का आधुनिक संस्कृत वालों से परिचय करवाना है अपितु संस्कृतेतर भाषायी जन भी परिचित हो सकें, ऐसा उद्देश्य है