Wednesday, May 27, 2020

ग़ालिब की ग़ज़लों का रसास्वादन संस्कृत में - आनन्दग़ालिबीयम्

ग़ालिब की ग़ज़लों का रसास्वादन संस्कृत में - आनन्दग़ालिबीयम्

उर्दू फारसी शायरी का संस्कृत में अनुवाद होता आया है | जगन्नाथ पाठक द्वारा किया गया  ग़ालिब की शायरी का अनुवाद ग़ालिबकाव्यम् के रूप में  प्रकाशित है | देवर्षि कलानाथ शास्त्री ने  भी अपने काव्यसंग्रह कवितावल्लरी में   ग़ालिब, बहादुर शाह जफ़र आदि की शायरी के  कुछ अनुवाद किये हैं| बलराम शुक्ल के काव्यसंग्रहों में भी ऐसे अनुवाद दृष्टिगोचर होते हैं, वे स्वयं फारसी के अच्छे जानकार हैं और फारसी में काव्य भी लिखते हैं | डॉ परमानंद शास्त्री ने दीवान ए ग़ालिब का संस्कृत अनुवाद किया जो उनके निधन के पश्चात प्रकाशित हुआ है | संस्कृत के रसज्ञों के द्वारा इस अनुवाद को सराहा गया है | ब्लॉग के लिए इसका परिचय डॉ सारिका वार्ष्णेय प्रस्तुत कर रही हैं  | हम उनके आभारी हैं-

ग़ालिब की ग़ज़लों का रसास्वादन संस्कृत में - आनन्दग़ालिबीयम्

कृति -आनन्दग़ालिबीयम्

रचनाकार - डॉ. परमानन्द शास्त्री
विधा- अनुवाद
प्रकाशक- हंसा प्रकाशन, जयपुर
संस्करण-प्रथम, 2018
पृष्ठ संख्या - 481

         डॉ. परमानन्द शास्त्री (31/01/1926-08/01/2007) अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में संस्कृत विभागाध्यक्ष रहे। आपने संस्कृत साहित्य की विविध विधाओं में रचनाएं लिखी। रा. संस्कृत संस्थान से प्रकाशित परमानन्दशास्त्रिरचनावली से ज्ञात होता है कि डॉ. परमानन्द शास्त्री ने जनविजयम् एवं चीरहरणम् (महाकाव्य), गन्धदूतम् (गीतिकाव्य), परिवेदनम् (शोककाव्य), भारतशतकम् (मुक्मतककाव्य), सरसैयदअहमदखांचरितम् (गद्यकाव्य) आदि की रचना की।

     संस्कृत और हिन्दी के साथ डॉ. परमानन्द शास्त्री का  उर्दू और फारसी पर भी समान अधिकार था। आनन्दग़ालिबीयम् मिर्जा ग़ालिब की शायरी के मशहूर संकलन दीवान-ए-ग़ालिब का संस्कृत अनुवाद है। डॉ. परमानन्द शास्त्री ने यह अनुवाद उसी छन्द में किया है जिसमें ग़ालिब की ग़ज़लें निबद्ध हैं। यह अनुवाद एक और दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि शायरी का सौन्दर्य बरकरार रखने के लिये अनुवादक ने कई स्थानों पर उर्दू के शब्दों को संस्कृत में यथावत् ले लिया है। इसके कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है-


न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता। 
डुबाया मुझको होने ने न होता मैं तो क्या होता ।।

किमपि नासीत् ‘ख़ुदा’ऽऽसीत् चेन्न किञ्चित् ‘ख़ुदा’ अभविष्यत्।
हतोऽहं हन्त भवनात् नोऽभविष्यं चेत् किम् अभविष्यत्।।

यहां ख़ुदा शब्द का यथावत् प्रयोग किया गया है। इसी तरह निम्न शेर में बुलबुल शब्द का संस्कृतीकरण किया जा सकता थ किन्तु उन्होंने इसे यथावत् ले लिया है-

बुलबुल के काराबोर पै है खन्दाहाए गुल
कहते हैं जिसको इश्क खलल है दिमाग का।।

कुसुमानि बुलबुलस्य क्रियाभारमुपहसन्ति।
यत् प्रेम कथ्यतेऽस्ति विक्षेपः स मस्तिष्कस्य।।

डॉ. परमानन्द शास्त्री ने ग़ज़लों के अनुवाद के साथ साथ  उनकी संस्कृत व्याख्या भी की है। यथा-

नक्श फरियादी है किसकी शोखिये-तहरीर का
काग्जी है पैरहन हर पैकरे तस्वीर का ।।

कस्य रचनाचपलताया वादिचित्रं वर्तते।
कार्गदिकपरिधानधृत् प्रत्येकमिह यद् वर्तते।।

‘‘जन्मैव समस्तभवतापानां कारणं भवति। विधिरपि जन्म प्रदाय न शरीधारिणां भद्रं करोति तस्मादेव दुःखार्ता जना विधिं क्रोशन्ति। स्वीयमिदं मन्तव्यं गालिबश्चित्रं प्रतीकं मत्वा अनुपस्थितं तस्य स्रष्टारं चित्रकारमुपालभ्यते। कथयति, कस्य रचनाचपलताया अस्तित्वमागतं दुःखार्तं चित्रं तस्य विरुद्धं न्यायं याचते? तदर्थमेवानेन कार्गदं परिधानं धृतमस्ति। पुराकाले पारसीकदेशे न्यायं याचमाना वादिनः कर्गदरचितवसनं परिधाय न्यायाधीशसम्मुखं गच्छन्ति स्म इति तदानीन्तनः तत्राचारः। सर्वमस्तित्वं दुःखमित्यर्थः।’’


डॉ. परमानन्द शास्त्री ने अनुवाद इतनी सरल प्रवाहपूर्ण रोचक भाषा में किया है कि साधारण संस्कृत जानने वाला भी इसका आस्वादन ले लेता है-

न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई।।

मा श्रुणु चेद् दुर्वदेत् कश्चित्
न कथय दुश्चरेच्चेत् कश्चित्।।

ग़ालिब का संस्कृत अनुवाद स्वागत योग्य है। यह अनुवाद संस्कृतज्ञों को उन ग़ालिब की शायरी का रसास्वादन करा देता है जिन ग़ालिब के लिये स्वयं ग़ालिब कहते हैं-

होगा कोई ऐसा भी कि ग़ालिब को न जाने
शायर तो वो अच्छा है पर बदनाम बहुत है।।

अपि कश्चिदस्ति तादृशो यो ग़ालिबं न वेत्ति।
कविरूत्तमोऽस्ति किन्तु दुर्नामास्ति बहुतरम्।।

परिचायिका- डॉ. सारिका वार्ष्णेय

प्रवक्ता एवं विभागाध्यक्षा-संस्कृत विभाग, वूमेन्स कॉलेज, अलीगढ मुस्लिम वि.वि.
सम्पर्क सूत्र-9719177049

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