कृति - शाम्भवी
विधा- काव्यसंग्रह
रचयित्री - पुष्पा दीक्षित
प्रकाशक- रा. संस्कृत संस्थान, दिल्ली
संस्करण - प्रथम, 2012
पृष्ठ संख्या -77
मूल्य- 100 रु.
कवयित्री पुष्पा दीक्षित रचित अग्निशिखा काव्यसंग्रह चर्चित रहा है। इसके कई वर्षों पश्चात् शाम्भवी काव्यसंग्रह रा. संस्कृत संस्थान, दिल्ली की योजना लोकप्रिय साहित्य ग्रन्थमाला -46 के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ है। इस काव्यसंग्रह में 33 कविताएं संकलित हैं। प्रथम कविता में कवयित्री कहती हैं-
धरणी विशालमञ्चो नीलं नभो वितानम्।
सूत्रं दधाति शम्भुर्नरिनर्ति शाम्भवीयम्।।
गगनेऽनिले वा सलिलेऽथवा स्थले वा।
प्रतिकणमहो जगत्यां वरिवर्ति शाम्भवीयम्।।
प्रस्तुत काव्यसंग्रह में कवयित्री भारतभूमि की चिन्ता प्रकट करती हैं तो कहीं वर्तमान समय की विडम्बनाओं को अभिव्यक्त करती हैं। कहीं हमारे पौराणिक पात्र नई अर्थवत्ता को लिये पाठक के समक्ष आते हैं तो कहीं विलुप्त होती जा रही विश्वबन्धुता की भावना की गवेषणा का प्रयास किया जाता हैै।
पुष्षा दीक्षित व्याकरण पर असाधारण अधिकार रखती हैं। वे व्याकरण के विशिष्ट प्रयोगों से काव्य को अलंकृत कर देती हैं |नामधातुओं का कितना सुन्दर उपयोग इस अन्त्यानुप्रास युक्त कविता में किया गया है-
वीतरागता यदा तदा गृहं वनायते।
त्वं प्रतीयसे यदा तदा जगत् तृणायते।।
ये कषायवाससोऽपि मानसे कषायिताः।
ते विशन्ति यत्र तत् तपोवनं रणायते।।
यङ् प्रत्यय में सभी धातुएं ङित्वात् आत्मनेपदता को प्राप्त होती हैं, वैसे ही भाव व कर्म में भी सभी धातुएं आत्मनेपदी में प्रयुक्त होती हैं। वैसे ही लोक में भी व्यक्ति आत्मार्थ पद ग्रहण करते हैं-
यङ्लुकं प्रपद्य धातुभिः परार्थमाप्यते।
आत्मनः पदं तथैव किञ्जनैन्र हीयते।।
प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी काव्यसंग्रह के पुरोवाक् में कहते हैं- ‘‘दीक्षितमहोदयानां गीतिषु तीक्ष्णव्यंग्यसंवलिता काव्यार्थसुषमा, वक्रोक्तिविच्छितिः, संस्कृतिमूलार्थसंक्रान्तिः, सांस्कृतिकोऽनुरागः, प्राचीनताप्रीतिः, भाषासौष्ठवं, काकुर्वैदग्ध्यभंगीभणितिश्चेति नैके विशेषा विलसन्ति, प्रथयन्ति च तद्वैशिष्ट्यं साम्प्रतिकसाहित्यसंसारे।’’
विधा- काव्यसंग्रह
रचयित्री - पुष्पा दीक्षित
प्रकाशक- रा. संस्कृत संस्थान, दिल्ली
संस्करण - प्रथम, 2012
पृष्ठ संख्या -77
मूल्य- 100 रु.
कवयित्री पुष्पा दीक्षित रचित अग्निशिखा काव्यसंग्रह चर्चित रहा है। इसके कई वर्षों पश्चात् शाम्भवी काव्यसंग्रह रा. संस्कृत संस्थान, दिल्ली की योजना लोकप्रिय साहित्य ग्रन्थमाला -46 के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ है। इस काव्यसंग्रह में 33 कविताएं संकलित हैं। प्रथम कविता में कवयित्री कहती हैं-
धरणी विशालमञ्चो नीलं नभो वितानम्।
सूत्रं दधाति शम्भुर्नरिनर्ति शाम्भवीयम्।।
गगनेऽनिले वा सलिलेऽथवा स्थले वा।
प्रतिकणमहो जगत्यां वरिवर्ति शाम्भवीयम्।।
प्रस्तुत काव्यसंग्रह में कवयित्री भारतभूमि की चिन्ता प्रकट करती हैं तो कहीं वर्तमान समय की विडम्बनाओं को अभिव्यक्त करती हैं। कहीं हमारे पौराणिक पात्र नई अर्थवत्ता को लिये पाठक के समक्ष आते हैं तो कहीं विलुप्त होती जा रही विश्वबन्धुता की भावना की गवेषणा का प्रयास किया जाता हैै।
पुष्षा दीक्षित व्याकरण पर असाधारण अधिकार रखती हैं। वे व्याकरण के विशिष्ट प्रयोगों से काव्य को अलंकृत कर देती हैं |नामधातुओं का कितना सुन्दर उपयोग इस अन्त्यानुप्रास युक्त कविता में किया गया है-
वीतरागता यदा तदा गृहं वनायते।
त्वं प्रतीयसे यदा तदा जगत् तृणायते।।
ये कषायवाससोऽपि मानसे कषायिताः।
ते विशन्ति यत्र तत् तपोवनं रणायते।।
यङ् प्रत्यय में सभी धातुएं ङित्वात् आत्मनेपदता को प्राप्त होती हैं, वैसे ही भाव व कर्म में भी सभी धातुएं आत्मनेपदी में प्रयुक्त होती हैं। वैसे ही लोक में भी व्यक्ति आत्मार्थ पद ग्रहण करते हैं-
यङ्लुकं प्रपद्य धातुभिः परार्थमाप्यते।
आत्मनः पदं तथैव किञ्जनैन्र हीयते।।
प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी काव्यसंग्रह के पुरोवाक् में कहते हैं- ‘‘दीक्षितमहोदयानां गीतिषु तीक्ष्णव्यंग्यसंवलिता काव्यार्थसुषमा, वक्रोक्तिविच्छितिः, संस्कृतिमूलार्थसंक्रान्तिः, सांस्कृतिकोऽनुरागः, प्राचीनताप्रीतिः, भाषासौष्ठवं, काकुर्वैदग्ध्यभंगीभणितिश्चेति नैके विशेषा विलसन्ति, प्रथयन्ति च तद्वैशिष्ट्यं साम्प्रतिकसाहित्यसंसारे।’’
अति उत्तम
ReplyDeleteआभार
DeleteVery useful information, Dr Pushpa Dixit is great scholar & poet of sanskrit
ReplyDeleteआभार
DeleteWant to collection the book.i am a fan of Puspa Dixit ji.a.r.mishra,Santiniketan
ReplyDeleteधन्यवाद आप राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान दिल्ली के विक्रय विभाग से संपर्क कर सकते हैं
DeleteCollect
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