Thursday, June 4, 2020

तुलसीदास कृत हनुमद्बाहुक का संस्कृत रूपांतरण -श्रीमद्हनुमद्बाहुकम्

तुलसीदास कृत हनुमद्बाहुक का संस्कृत रूपांतरण -श्रीमद्हनुमद्बाहुकम्


पुस्तक- श्रीमद्हनुमद्बाहुकम्
अनुवादक- पं. प्रेमनारायण द्विवेदी (राष्ट्रपति पुरस्कृत)
जन्मतिथि- 05 जून 1922
ब्रह्मलीन- 28 अप्रैल 2006
जन्मस्थान- पूर्व्याऊ टौरी, जनता स्कूल के पास, सागर (म.प्र.)
सम्पर्क- श्री सूर्यकान्त द्विवेदी (कवि के पौत्र, संस्कृत शिक्षक) मो. 88273 18716
प्रकाशक- एजुकेशनल बुक सर्विस, नई दिल्ली
सम्पादक- डॉ. ऋषभ भारद्वाज 
आईएसबीएन- 978-81-86541-28-4
पृष्ठ संख्या- 55
अंकित मूल्य- 150रू.
संस्करण- 2018 प्रथम

कवि- भक्ति साहित्य के गंभीर अध्येता और अनुवाद विधा के पारंगत कवि पं. प्रेमनारायण द्विवेदी ने 21000 संस्कृत पद्यों की रचना की है जिनमें अधिकांश हिन्दी कवियों के काव्यों का संस्कृत पद्यानुवाद है। पं. द्विवेदी संस्कृत काव्य परम्परा के गंभीर अध्येता थे लेकिन उन्होंने हिन्दी  भक्ति साहित्य का भरपूर आलोडन किया था। काशी वास के समय उन्होंने स्वामी करपात्री जैसी विभूतियों को देखा-सुना था। कुछ समय उन्होंने संसार से विरक्त होकर यायावर जीवन जिया था। शास्त्रज्ञान के साथ ही वे तैराकी और मल्लविद्या में दक्ष थे। धवल धौत वस्त्रों से परिवेष्टित सुदृढ दीर्घ काया उनके व्यक्तित्व को उभारती थी। गौसेवा और गोदुग्ध का पान उनकी जीवन चर्या के आजीवन अभिन्न अंग रहे। संस्कृत में अनुवाद करना उन्हें अच्छा लगता था, यही उन्होंने जीवन भर किया भी। भारतीय ज्ञान-परंपरा के मौन साधक द्विवेदी जी की अनुवाद कार्य में प्रवृत्ति ‘स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा’ की तरह थी। उनका अधिकतर साहित्य मृत्यूपरांत प्रकाशित हुआ। राष्ट्रपति पुरस्कार (2005 ई.) और साहित्य अकादमी, दिल्ली का अनुवाद पुरस्कार (2009 ई.) प्रमुख पुरस्कार हैं जो उन्हें मिले।



पुस्तक- श्रीमद्हनुमद्बाहुकम् में भूमिका के रूप में सम्पादक डॉ. ऋषभ भारद्वाज का निवेदन और कवि-परिचय है। द्विवेदी जी ने तुलसीदास जी के प्रायः सभी काव्यों का अनुवाद किया है। उनमें से एक है-  हनुमद्बाहुक। इसके अनुवाद के अन्त में द्विवेदी जी ने गोस्वामी तुलसीदास के प्रति श्रद्धा प्रकट की है। इस पुस्तक में पं. प्रेमनारायण द्विवेदी कृत पद्यानुवाद, उसके नीचे गोस्वामी तुलसीदास के हनुमद्बाहुक का मूल पाठ और फिर हिन्दी भावार्थ दिया गया है। इसमें पाठक मूल हिन्दी पाठ, संस्कृत पद्यानुवाद और हिन्दी भावार्थ का एक साथ आनन्द प्राप्त कर सकते हैं। द्विवेदी जी की भी भावना इसी प्रकार के द्विभाषी (मूल व अनुवाद एक साथ) संस्करण की रही होगी। आस्था तर्क से परे हुआ करती है। स्वयं द्विवेदी जी ने इसके पाठ को कष्टनिवारण का साधन बतलाया था। भावपूर्ण मन से इसका उच्चारण एक अपूर्व ऊर्जा का संचार करता है। मल्लविद्या के अभ्यासी होने के कारण उनका श्री हनुमान् जी महाराज के प्रति आस्थावान् होना स्वाभाविक ही है। अनुवाद के लिए चुने गये काव्य भी अनुवादक की साहित्यिक रुचि को प्रकट करते हैं। द्विवेदी जी के अनुवाद में मूल काव्य का रसास्वाद किया जा सकता है। पद्यानुवाद में गेयता है। कहीं कहीं मूलकाव्य की लय में ही अनुवाद को भी पढ़ा जा सकता है। संस्कृत के विशाल शब्दकोष के ज्ञान से द्विवेदी जी के लिए अनुवाद कार्य सुकर रहा। साहित्यरसिक अनुवाद और मूलकाव्य देखें।

पं. प्रेमनारायण द्विवेदी कृत अनुवाद-

सगौरीकः सानुचरः शूलपाणिर्लोकपालाः
सीतारामलक्ष्मणाश्च सदानुकूलास्तस्य
लोकस्य परलोकस्य कस्यापि भूमिपालस्य
तुलसी वदति हृदये लालसा न तस्य।
बन्धमोक्षस्वामिनः करुणामहार्णवस्य
केशरिकिशोरकस्य कृपया कपीशस्य
देवसिद्धमुनयस्तं बालमिव लालयन्ति
यस्य हृदि हनुमतो हुंकारो वायुपुत्रस्य।।
 श्रीमद्हनुमद्बाहुकम्, छन्द 13

मूल पाठ-

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि,
लोकपाल सकल लखन राम जानकी।
लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, 
तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी।
केसरीकिसोर बंदीछोरके नेवाजे सब,
कीरति बिमल कपि करुनानिधान की।
बालक ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, 
जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की।।

डॉ नौनिहाल गौतम

असिस्टेंट प्रोफेसर -डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय 
मोबाइल नम्बर - 9826151335
मेल आईडी - dr.naunihal@gmail.com

No comments:

Post a Comment