कृति - नवमालती
लेखक - डॉ. नोदनाथ मिश्र
विधा - रेडियो नाटक
प्रकाशक - नाग प्रकाशन, जवाहर नगर, दिल्ली
संस्करण - प्रथम, 1997
अंकित मूल्य -51 रु.
आधुनिक संस्कृत लेखन में निरन्तर हो रहे नवीन प्रयोग तथा अनवरत साहित्य रचना संस्कृत भाषा के आलोचकों को उत्तर देने में सक्षम है। इस भाषा को मृत कहने वाले व्यक्ति अर्वाचीन काल में संस्कृत के विपुल साहित्य को देखकर आश्चर्यचकित रह जायेंगे। आज संस्कृत में प्रभूत मात्रा में लिखा जा रहा है। जीवन के प्रत्येक पक्ष को विषय बनाकर अनेक विधाओं में सृजन हो रहा है। इन नवीन विधाओं में एक प्रमुख एवं लोकप्रिय विधा रेडियो-रूपक भी है। बीसवीं सदी के मध्य से अब तक न केवल नये रेडियो रूपकों की रचना की गई अपितु पुरानी लोकप्रिय रचनाओं का भी ध्वनि-नाट्य-रूपान्तरण किया गया। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से इन रूपकों का प्रसारण भी हुआ है।
अर्वाचीन संस्कृत साहित्यकार पं. नेादनाथ मिश्र रचित लगभग 20 संस्कृत रूपकों का प्रसारण आकाशवाणी के पटना, लखनऊ, वाराणसी, दरभंगा केन्द्रों से हुआ है। पं. नोदनाथ मिश्र का जन्म बिहार के जिलला मधुबनी, ग्राम लालगंज में सन् 1944 को हुआ। लम्बे शिक्षण अनुभव से इन्हें संस्कृत भाषा को रोचक ढंग से सीखाने तथा लेाकप्रिय बनाने के उपाय खोजने की प्रेरणा मिली। इसी प्रयास में आपने संस्कृत रेडियो रूपकों की रचना की। इनके रचित रूपकों में से नौ रेडियो रूपकों का संकलन नवमालती शीर्षक से पुस्तकाकार में प्रकाशित हुआ।
इन रूपकों की कथावस्तु वर्तमान समाज एवं जन सामान्य से सम्बन्धित है। सभी रूपकों की कथावस्तु कवि कल्पित है। समाज में व्याप्त विभिन्न बुराईयों तथा समस्याओं को लेकर लेखक चिन्तित है, यही चिन्ता इन रूपकों में उभर कर सामने आई है। प्रत्येक रूपक अलग मन्तव्य लेकर चलता है तथापि लेखक सबसे अधिक आहत दहेज नामक सामाजिक बुराई से प्रतीत होते हैं। ऐसा नहीं है कि लेखक ने केवल समस्याओं को ही प्रस्तुत किया है, लेखक ने इन रूपकों में सामाजिक समस्याओं के समाधान का सौरभ मालती कुसुम की तरह विकीर्ण किया गया है, यही इस रचना के नामकरण का आधार भी है। दहेज के अतिरिक्त युवा-असन्तोष, शिक्षित बेरेाजगारी, भ्रष्टाचार, स्त्री-पुरुष असमानता, पुत्र प्राप्ति की अदम्य इच्छा मे कन्या राशि जुटाते जाना आदि सामाजिक विडमबनाओं को कथानक में मुख्य रूप से उकेरा गया है। समस्याओं को प्रस्तुत करते हुए भी कवि अपनी प्रतिभा से कथानक के प्रति श्रोता/पाठक की रुचि बनाये रखने में सफल होते हैं।
रूपक क्योंकि जनसामान्य से जुडे हैं, अतः स्वभावतः सभी पात्र श्रोता/पाठक को जाने पहचाने लगते हैं। सभी रूपक घटना-प्रधान हैं तथा संदेश देने का प्रयास करते हैं। प्राचीन काव्यशास्त्र-सम्मत रस-चवर्णा इन एकांकियों में न्यूनाधिक रूप में होती हैं। इन सब रूपकों में जो रस उभर कर सामने आता है, वह आधुनिक काव्यशास्त्री आचार्य रहस बिहारी द्विवेदी के मत में प्रक्षोभ रस है-
स्थायीभावोऽस्य संवेगः स च संवेदनात्मकः।
आलम्बनं च सन्तापो दलितानां च पीडनम्।।
उद्दीपनं परौद्धत्यं दीनानां शोषणं छलम्।
अनुभावोऽस्य संघर्षचेष्टा क्लेशसमुद्भवा।।
इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
शोभाकान्तः -(सक्रोधम्) वृथा विवादं मा कुरु। त्वमसि नारी, नारीव्रतमाचर। सीमातः बहिर्गम्य वार्ता न करणीया।
सुशीला - (ससम्भ्रमम्) अहमस्मि नारी, किन्तु नहि तव क्रीता दासी। त्वया सममेव जीवनस्य ममाप्यधिकारो वर्तते। ..................त्वत्तः किञ्चित्पृच्छायां क्रोधान्धः भूयाः। किम्मे प्राणाः न सन्ति।
लेखक की भाषा सर्वत्र सहज, सरल है क्योंकि इन रूपकों का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों की संस्कृत भाषा में रुचि जागृत करना है। इन रूपकों में आम बोलचाल की भाषा के मुहावरों व कथनों का संस्कृतीकरण किया गया है, यथा-
-अधुना कं पर्वतं निपात्यागतोसि
-एतत्तु शोभनं यदावयोः सम्पत्तिः पूर्वमेव वण्टिताऽस्ति
-यावत् श्वासाः तावत् आशाः
-हस्तिनः दन्ताः इव भक्षणस्य अन्यत् प्रदर्शनस्य च अन्यत्
-जामाता तु लक्षेषु एक एव मिलितः
-आः त्यज इमाः कथाः
यहां हिन्दी के शब्दों का संस्कृतीकरण भी किया गया है, यथा- उद्धारम् (उधार), त्रुटितः जातः (टूट गया हूं)। संस्कृत में नवीन शब्द भी प्रयुक्त किये गये हैं, यथा- प्रातिकृतिकः (फोटोग्राफर)।
रेडियो-रूपकों में संवादों लघुकलेवर व सरलता कथा-प्रवाह को बनाये रखने में सहयोग देते हैं तथा नाटकीय प्रभाव में वृद्धि करते हैं। ये रूपक अभिनय की दृष्टि से भी सफल हैं। स्पष्ट रूप से दिये गये ध्वनि-निर्देशों के कारण ये प्रसारणीय तो हैं ही, इन्हें नुक्क्डनाटक या रंगमंचीय नाटकों के समान भी प्रयुक्त किया जा सकता है। लेखक ने इन्हें लघुसंस्कृतनाटिका भी कहा है।
डॉ. साधना कंसल
सह आचार्य - राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा, राजस्थान
मोबाइल नम्बर - 9024400927
लेखक - डॉ. नोदनाथ मिश्र
विधा - रेडियो नाटक
प्रकाशक - नाग प्रकाशन, जवाहर नगर, दिल्ली
संस्करण - प्रथम, 1997
अंकित मूल्य -51 रु.
आधुनिक संस्कृत लेखन में निरन्तर हो रहे नवीन प्रयोग तथा अनवरत साहित्य रचना संस्कृत भाषा के आलोचकों को उत्तर देने में सक्षम है। इस भाषा को मृत कहने वाले व्यक्ति अर्वाचीन काल में संस्कृत के विपुल साहित्य को देखकर आश्चर्यचकित रह जायेंगे। आज संस्कृत में प्रभूत मात्रा में लिखा जा रहा है। जीवन के प्रत्येक पक्ष को विषय बनाकर अनेक विधाओं में सृजन हो रहा है। इन नवीन विधाओं में एक प्रमुख एवं लोकप्रिय विधा रेडियो-रूपक भी है। बीसवीं सदी के मध्य से अब तक न केवल नये रेडियो रूपकों की रचना की गई अपितु पुरानी लोकप्रिय रचनाओं का भी ध्वनि-नाट्य-रूपान्तरण किया गया। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से इन रूपकों का प्रसारण भी हुआ है।
अर्वाचीन संस्कृत साहित्यकार पं. नेादनाथ मिश्र रचित लगभग 20 संस्कृत रूपकों का प्रसारण आकाशवाणी के पटना, लखनऊ, वाराणसी, दरभंगा केन्द्रों से हुआ है। पं. नोदनाथ मिश्र का जन्म बिहार के जिलला मधुबनी, ग्राम लालगंज में सन् 1944 को हुआ। लम्बे शिक्षण अनुभव से इन्हें संस्कृत भाषा को रोचक ढंग से सीखाने तथा लेाकप्रिय बनाने के उपाय खोजने की प्रेरणा मिली। इसी प्रयास में आपने संस्कृत रेडियो रूपकों की रचना की। इनके रचित रूपकों में से नौ रेडियो रूपकों का संकलन नवमालती शीर्षक से पुस्तकाकार में प्रकाशित हुआ।
इन रूपकों की कथावस्तु वर्तमान समाज एवं जन सामान्य से सम्बन्धित है। सभी रूपकों की कथावस्तु कवि कल्पित है। समाज में व्याप्त विभिन्न बुराईयों तथा समस्याओं को लेकर लेखक चिन्तित है, यही चिन्ता इन रूपकों में उभर कर सामने आई है। प्रत्येक रूपक अलग मन्तव्य लेकर चलता है तथापि लेखक सबसे अधिक आहत दहेज नामक सामाजिक बुराई से प्रतीत होते हैं। ऐसा नहीं है कि लेखक ने केवल समस्याओं को ही प्रस्तुत किया है, लेखक ने इन रूपकों में सामाजिक समस्याओं के समाधान का सौरभ मालती कुसुम की तरह विकीर्ण किया गया है, यही इस रचना के नामकरण का आधार भी है। दहेज के अतिरिक्त युवा-असन्तोष, शिक्षित बेरेाजगारी, भ्रष्टाचार, स्त्री-पुरुष असमानता, पुत्र प्राप्ति की अदम्य इच्छा मे कन्या राशि जुटाते जाना आदि सामाजिक विडमबनाओं को कथानक में मुख्य रूप से उकेरा गया है। समस्याओं को प्रस्तुत करते हुए भी कवि अपनी प्रतिभा से कथानक के प्रति श्रोता/पाठक की रुचि बनाये रखने में सफल होते हैं।
रूपक क्योंकि जनसामान्य से जुडे हैं, अतः स्वभावतः सभी पात्र श्रोता/पाठक को जाने पहचाने लगते हैं। सभी रूपक घटना-प्रधान हैं तथा संदेश देने का प्रयास करते हैं। प्राचीन काव्यशास्त्र-सम्मत रस-चवर्णा इन एकांकियों में न्यूनाधिक रूप में होती हैं। इन सब रूपकों में जो रस उभर कर सामने आता है, वह आधुनिक काव्यशास्त्री आचार्य रहस बिहारी द्विवेदी के मत में प्रक्षोभ रस है-
स्थायीभावोऽस्य संवेगः स च संवेदनात्मकः।
आलम्बनं च सन्तापो दलितानां च पीडनम्।।
उद्दीपनं परौद्धत्यं दीनानां शोषणं छलम्।
अनुभावोऽस्य संघर्षचेष्टा क्लेशसमुद्भवा।।
इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
शोभाकान्तः -(सक्रोधम्) वृथा विवादं मा कुरु। त्वमसि नारी, नारीव्रतमाचर। सीमातः बहिर्गम्य वार्ता न करणीया।
सुशीला - (ससम्भ्रमम्) अहमस्मि नारी, किन्तु नहि तव क्रीता दासी। त्वया सममेव जीवनस्य ममाप्यधिकारो वर्तते। ..................त्वत्तः किञ्चित्पृच्छायां क्रोधान्धः भूयाः। किम्मे प्राणाः न सन्ति।
लेखक की भाषा सर्वत्र सहज, सरल है क्योंकि इन रूपकों का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों की संस्कृत भाषा में रुचि जागृत करना है। इन रूपकों में आम बोलचाल की भाषा के मुहावरों व कथनों का संस्कृतीकरण किया गया है, यथा-
-अधुना कं पर्वतं निपात्यागतोसि
-एतत्तु शोभनं यदावयोः सम्पत्तिः पूर्वमेव वण्टिताऽस्ति
-यावत् श्वासाः तावत् आशाः
-हस्तिनः दन्ताः इव भक्षणस्य अन्यत् प्रदर्शनस्य च अन्यत्
-जामाता तु लक्षेषु एक एव मिलितः
-आः त्यज इमाः कथाः
यहां हिन्दी के शब्दों का संस्कृतीकरण भी किया गया है, यथा- उद्धारम् (उधार), त्रुटितः जातः (टूट गया हूं)। संस्कृत में नवीन शब्द भी प्रयुक्त किये गये हैं, यथा- प्रातिकृतिकः (फोटोग्राफर)।
रेडियो-रूपकों में संवादों लघुकलेवर व सरलता कथा-प्रवाह को बनाये रखने में सहयोग देते हैं तथा नाटकीय प्रभाव में वृद्धि करते हैं। ये रूपक अभिनय की दृष्टि से भी सफल हैं। स्पष्ट रूप से दिये गये ध्वनि-निर्देशों के कारण ये प्रसारणीय तो हैं ही, इन्हें नुक्क्डनाटक या रंगमंचीय नाटकों के समान भी प्रयुक्त किया जा सकता है। लेखक ने इन्हें लघुसंस्कृतनाटिका भी कहा है।
डॉ. साधना कंसल
सह आचार्य - राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा, राजस्थान
मोबाइल नम्बर - 9024400927
बहूत्तमा विवेचना
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसादर प्रणाम डॉ.साधना कंसल मैम को, जिनसे मुझे एक विद्यार्थी के रूप में कोटा कालेज में पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
ReplyDeleteसाथ ही रेडियो रूपक विधा 'नवमालती' कृति का परिचय व सारगर्भित समालोचना पढने का भी सुअवसर उपलब्ध कराने के लिए साधना मैम का हार्दिक आभार..🙏😊
धन्यवाद मेम । 'नवमालती ' नामक इस कृति में रेडियो रूपक विधा का परिचय आपकी इस पुस्तक विवेचना से प्राप्त हुआ । जो निसंदेह संस्कृत शोधार्थियों के लिए उपयोगी होगा ।
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