Sunday, January 16, 2022

संस्कृत कविता की नई बानगी _ गगनवर्णानां गूहगवेषा

कृति - गगनवर्णानां गूहगवेषा



कवि - डॉ. हर्षदेव माधव

विधा - संस्कृत हाइकु काव्य

संस्करण - प्रथम, 2021

प्रकाशक - संस्कृति प्रकाशन, अहमदाबाद

पृष्ठ संख्या - 157

अंकित मूल्य - 125 रू. 





          डॉ. हर्षदेव माधव अर्वाचीन संस्कृत साहित्य में सर्वाधिक प्रयोगधर्मी कवि के रूप में जाने जाते हैं। आपने जहां एक ओर नवीन से नवीन विषयों पर कविताएं लिखी हैं, वहीं दूसरी ओर नई विधाओं को भी इस पुरातन भाषा में उतारा है। ऐसी ही एक विधा है हाइकुकाव्य। संक्षिप्तीकरण की यह विधा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जापान से पूरे विश्व में फैलने वाली हाइकुविधा संस्कृत मेें भी अपनी अर्थसौरभ से सहृदय पाठकों को महका रही है। हाइकु काव्य में महज तीन पंक्तियों के 17 अक्षरों में कवि वह बात कह सकता है, जो सम्भवतः महाकाव्य में भी कहने में चूक जाए। यहां सपाट बयानबाजी काम नहीं आती। यह तो वक्रपन्थ है, जो प्रतीयमानार्थ से लबरेज होता है। आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी अगर कवि हर्षदेव माधव को हाइकुसम्राट् कहते हैं तो वह उचित ही है। 



            हजारों की संख्या में संस्कृत में हाइकु रचने वाले कवि कवि हर्षदेव माधव सतत् अपनी सर्जना में रत रहते हैं। कोरोना काल में कवि माधव ने सोशल मिडिया के सशक्त माध्यम फेसबुक पर कई हाइकु प्रस्तुत किये। इन हाइकु काव्यों को सहृदयों द्वारा बहुत सराहा गया।  इन से प्रेरणा पाकर अन्य कवियों ने भी संस्कृत हाइकु में लिखने का प्रयास किया। फेसबुक पर कवि द्वारा लिखे गये इन हाइकु काव्यों का कई पाठकों ने अपनी-अपनी भाषाओं में स्वतः ही अनुवाद भी किया, यथा- ओडिया, मराठी, राजस्थानी, अंग्रेजी, गुजराती, तेलगु, अवधी, नेपाली, गढवाली, सिन्धी, बंगाली आदि। कवि ने इस कोरोना काल में लिखे गये इन हाइकुकाव्यों का संकलन कर उपर्युक्त अनुवादों के साथ प्रकाशित करवाया है। अनुवादों से हाइकुकाव्यों की सम्प्रेषणता में वृद्धि हुई है।



    कोरोना काल में श्रमिकों के पलायन पर कवि हर्षदेव माधव कहते हैं -


आत्मनिर्भरा

जाताः श्रमिका गन्तुं

गृहं च मृत्युम्।।


आत्म निर्भर हो गए हैं मजदूर

घर और मौत

दोनों के लिए।।



       गौरतलब है कि जब मजदूरों को यातायात के साधन नहीं मिले तो वे पैदल ही अपने बलबूते पर घर के लिए निकल पडे थे। इस जद्दोजहद में कई श्रमिक अपने प्राणों से हाथ धो बैठे। यह हाइकु श्रमिकों की वेदना को बखूबी उकेरता है। हाइकु के ढांचे के अनुरूप यह व्यंजनागर्भित है। यहां च शब्द के प्रयोग से दोनों अर्थ साध्य हैं। संस्कृत भाषा की संश्लिष्टता इसे हाइकु काव्य के शिल्प के अनुकूल बनाती है। 

                 निम्न हाइकु के आधार पर इस संकलन का नामकरण किया गया है-


गूहगवेषां

क्रीडन्ति सान्ध्यकाले

गगनवर्णाः।।



प्रकृति चित्रण का अद्भुत काव्य है यह हाइकु। शाम के समय आकाश के रंग पल-पल बदलते हैं। कवि कहता हैं कि मानों ऐसा लग रहा है कि आकाश के ये रंग आंख मिचौली खेल रहे हों। कवि हर्षदेव माधव अपनी कविताओं में प्रतीकों का अद्भुत प्रयोग करते हैं। कवि के कई प्रतीक पूरी तरह से या तो अछूते होते हैं या वे नई अर्थवत्ता लेकर कवि माधव की कविताओं में प्रविष्ट होते हैं। एक हाइकु देखिए-


अक्ष्णोः प्रविष्टाः

कृषककन्यकाया

वृत्तेश्शलभाः।।


दाखिल हो गई हैं

किसान कन्या की आंखों में

बाड पर बैठी  तितलियां।।

        


 यहां तितलियां पहले प्यार की, युवावस्था की प्रतीक बन कर आती हैं। कितने कवि हैं जो प्रकृति के इन अंगो-उपांगों को अपनी कविताओं में इस तरह प्रतीक बनाकर प्रस्तुत कर पाते हैं? 



   प्रस्तुत संकलन में कवि ने हाइकु कविताओं को चित्रों के साथ भी प्रस्तुत किया है। संस्कृत कविता की नई बानगी देखने के लिये इन हाइकु काव्यों को पढा जाना चाहिए। यह देखना कितना दिलचस्प है कि विदेश से आई एक विधा किस तरह हमारी सबसे प्राचीन भाषा में केवल खप ही नहीं गई है अपितु एक नये रूप में अपने पूरे समय को भी प्रतिबिम्बित कर रही है।



4 comments:

  1. Thanks .Very good criticism. You are also translator in this book.let us hope to read readers of Sanakrit

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    1. आभार यह तो आपके हाइकु का जादू है
      प्रणाम

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