Wednesday, June 1, 2022

महाभारत की कथा का पुनराख्यान - बर्बरीकम् नाटक

कृति - बर्बरीकम्

विधा - नाटक

लेखक - डॉ. जोगेन्द्र कुमार

प्रकाशक - समदर्शी प्रकाशन, मेरठ, उत्तरप्रदेश

प्रकाशन वर्ष - 2020

पृष्ठ संख्या -86

अंकित मूल्य -150/-



    आष महाकाव्य महाभारत परवर्ती लेखकों के लिये सदैव उपजीव्य रहा है। महाभारत की कथाओं की अन्तर्यात्रा पर प्रायः हर लेखक किसी न किसी तरह जाता ही है। महाभारत की कथाओं में इतने पात्र हैं कि उन्हें आधार बनाकर दीर्घकाल तक कई काव्य रचे जाते रहेंगे। युवा कवि डॉ. जोगेन्द्र कुमार ने भी महाभारत की कथा को आधार बनाकर नाटक की रचना की है।

           भिवानी (हरियाणा) निवासी डॉ. जोगेन्द्र कुमार के दो काव्यसंग्रह सत्यांशुः और जीवनसौरभम् प्रकाशित हो चुके हैं। इस बार उन्होंने महाभारत के युद्ध के एक महत्त्वपूर्ण पात्र बर्बरीक को लेकर अपने नाटक की रचना की है। भीम के पौत्र एवं घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक महावीर एवं दानवीर के रूप में विख्यात हैं। बर्बरीक को वर्तमान में खाटू श्याम जी के रूप में पूजा जाता है। इनका मन्दिर राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नाम के स्थान पर स्थित है। प्रस्तुत नाटक में बर्बरीक के खाटू श्याम के रूप में पूजे जाने की कथा का ही अन्वेषण किया गया है। मूल कथा महाभारत में उपलब्ध होती ही, साथ ही स्कन्दपुराण के माहेश्वरखण्ड के अन्तर्गत द्वितीय उपखण्ड कौमारिक खण्ड के 59 वें अध्याय से 66 वें अध्याय पर्यन्त भी बर्बरीक की कथा विस्तार से उपलब्ध होती है।



      नाटक का विभाजन पांच अंकों में किया गया है। अंकानुसार कथा इस प्रकार है।

प्रथम अंक -नाटक का आरम्भ शिव स्तुति के साथ किया गया है, जिसमें सूत्रधार कहता है-

गंगायाः खलु यस्य पावनजलं नित्यं शिरे शोभते

कण्ठे यस्य विचित्रलम्बितवरं माल्यं ह्यहीनां तथा।

यो नित्यं खलु नग्नकायसहितः कैलासवास्यस्ति वै

चेशोऽसौ सततं प्रसन्नबहुलो रक्षेत् सदा वः शिवः।।

    प्रस्तावना के पश्चात् भीम पुत्र घटोत्कच पाण्डवों से मिलने इन्द्रप्रस्थ आते हैं। इसी अंक में घटोत्कच का विवाह मुर राक्षस की पुत्री मौर्वी से हो जाता है।

द्वितीय अंक - इस अंक में घटोत्कच एवं मौर्वी के पुत्र बर्बरीक के जन्म तथा उसकी शिक्षा का वर्णन किया गया है। शिशु के बडे घुंघराले बालों के के कारण उसका नाम बर्बरीक (बर्बर आकार के बालों के कारण) रखा जाता है-

अयं हि बालो बहुसुन्दरश्च तेजोऽस्ति नूनं वदने स्मितञ्च।

केशाश्च दीर्घाः खलु बर्बराश्च नामास्य तस्मात् खलु बर्बरीकः।।

 वासुदेव श्रीकृष्ण बर्बरीक से मिलते हैं और प्रसन्न होकर उनका एक और नाम सुहृदय रखते हैं। साथ ही उन्हें संगम तीर्थ में देवी आराधना की सलाह देते हैं।

तृतीय अंक - बर्बरीक गुप्तक्षेत्र में देवी आराधना में लीन हो जाते हैं। यहां वह कई राक्षसों का वध भी करते हैं। सिद्धाम्बिका देवी बर्बरीक को तीन दिव्य बाण प्रदान करती हैं।

चतुर्थ अंक - अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों की मुलाकात बर्बरीक से होती है।

पंचम अंक - अन्तिम अंक में कुरूक्षेत्र में युद्ध मैदान का दृश्य है। बर्बरीक युद्ध लडने के लिये आता है। किन्तु जब कृष्ण को लगता है कि बर्बरीक के कारण स्वयं पाण्डवों की भी हानि हो सकती है तो वे बर्बरीक से उसकी बलि मांगते हैं। बर्बरीक अपना शीश दान कर देते हैं। कृष्ण प्रसन्न होकर अपना श्याम नाम उन्हें दे देते हैं। भरत वाक्य के साथ नाटक समाप्त हो जाता है।

        महाभारत के एक महत्त्वपूर्ण पात्र को लकर लिखे गये इस नाटक में अभिनेयता भी है और संवाद सरल भाषा में निबद्ध है। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे नाटकों को विश्वविद्यालयों एवं अकादेमी के कार्यक्रमों में अभिनीत किया जाए।




3 comments:

  1. आपका यह वागर्थ का रथ चल पड़ा है, वापिस। इसके चलते रहने से बड़ी गति होती है। इसकी महत्ता भी है और आवश्यकता भी। कल माधव जी की आत्मकथा रूप कहानियों के बाद इस नाटक पर आज का लेखन अभिनंदन का पात्र है। जोगेंद्र जी को बधाई इस रचना पर।

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    1. आभार प्रवीण जी आपकी टिप्पणी उत्साह बढ़ाती है और संबलन भी देती है

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