कृति -संस्कृत साहित्य का समग्र इतिहास - चतुर्थ खण्ड
(आधुनिक काल - 1801 ई. से 2017 ई. तक)
लेखक - प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी
विधा - साहित्य के इतिहास का ग्रन्थ
प्रकाशक - न्यू भारतीय बुक कॉरपोरेशन, दरियागंज, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष - 2018
पृष्ठ संख्या - 2321 (चारो खण्ड)
अंकित मूल्य - 10000/- (चारो खण्ड)
संस्कृत साहित्य के इतिहास के ग्रंथ बहुत से लिखे गये हैं किन्तु प्रायः उनमें पं. जगन्नाथ तक के साहित्य का ही परिचय उपलब्ध होता है। कुछ एक ग्रंथ हैं जो संस्कृत के आधुनिक साहित्य का भी परिचय देते हैं। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान से प्रकाशित संस्कृत वांग्मय के बृहत् इतिहास का सप्तम खण्ड आधुनिक संस्कृत साहित्य का परिचय विस्तार से देता है। उसमें प्रायः अलग-अलग विधा के लिये लेखक भी अलग-अलग हैं। इस ग्रंथ के प्रधान सम्पादक श्री बलदेव उपाध्याय हैं। देवर्षि कलानाथ शास्त्री, केशवराव मुसलगांवरकर आदि ने भी आधुनिक संस्कृत साहित्य के परिचय हेतु ग्रंथ लिखे हैं। किन्तु इन ग्रंथों की अपनी सीमाएं हैं।
प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने आधुनिक संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में बहुत कार्य किया है और उनकी कई पुस्तकें इस पर आधारित हैं। आपने आधुनिक संस्कृत साहित्य संदर्भ सूची का प्रकाशन करवाया जिसके संशोधित संस्करण में 2001 तक प्रकाशित 5040 कृतियों की सूची दी गई है। प्रो. त्रिपाठी जी के ग्रंथ बीसवीं सदी का संस्कृत साहित्य भी एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है जो बीसवीं शताब्दी के काव्यों का बखूबी परिचय देता है। हाल ही में प्रो. त्रिपाठी जी ने एक महत् कार्य प्रकाशित करवाया है, जिसमें वैदिक काल से लेकर 2017 तक संस्कृत में लिखे गये संस्कृत साहित्य का विशद विवरण, समीक्षण तथा आकलन प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रंथ के चार भाग हैं। यह ग्रंथ 2321 पृष्ठों में संस्कृत के समग्र साहित्य को समेटने का सफल प्रयास करता है। कदाचित् किसी अन्य साहित्य के इतिहास ग्रंथ में इस प्रकार की सामग्री संकलित नहीं है।
इस ग्रंथ का चतुर्थ भाग आधुनिक संस्कृत साहित्य पर केन्द्रित है। आपने संस्कृत का आधुनिक काल 1801 ई. से माना है। अतः प्रस्तुत ग्रंथ में 1801 ई. से 2017 ई. तक के साहित्य का परिचय उपलब्ध होता है। प्रो. त्रिपाठी जी ने इस ग्रंथ का विभाजन 6 अध्यायों व पांच परिशिष्टों में किया है-
1. आधुनिक संस्कृत साहित्य - प्रमुख प्रवृत्तियां -
इस अध्याय में 19 वीं सदी के साथ संस्कृत साहित्य के आधुनिक काल का आरंभ माना गया है। साथ ही अन्यों के द्वारा माने गये आधुनिक संस्कृत साहित्य के कालविभाजन और युगविभाजन का भी उल्लेख किया गया है। साथ ही प्रमुख प्रवृत्तियों यथा समाज चेतना, यथार्थबोध, व्यक्तिवाद का उदय, विडम्बन शैली आदि का भी संक्षिप्त परिचय उपलब्ध होता है।
2. महाकाव्य तथा अन्य प्रबंधकाव्य -
इस अध्याय के 100 से अधिक पृष्ठों में लेखक ने दो सदियों के महत्त्वपूर्ण महाकाव्यों का परिचय दिया है। यहां अल्पज्ञात या अज्ञात महाकाव्यों की समीक्षा इस अध्याय को विशेष बना देती है।
3. नाट्यसाहित्य -
प्रस्तुत अध्याय में आधुनिक काल के संस्कृत नाट्यसाहित्य की समीक्षा की गई है। इसमें ध्वनिनाट्य (रेडियो रूपक), नुक्कडनाटक, संगीतिका, एकांकी आदि का भी उल्लेख है।
4.गद्यकाव्य, उपन्यास तथा कथानिका -
इस अध्याय में आधुनिक काल के गद्यकाव्य की विधाओं में सर्वाधिक प्रचलित एवं प्रसिद्ध दो विधाओं उपन्यास एवं कथानिका (कहानी) पर विस्तार से चर्चा की गई है। 125 से अधिक वर्षों में संस्कृत में अनेक संस्कृत उपन्यास लिखे गये हैं। इस विधा पर पृथक् रूप से एक सम्पूर्ण ग्रंथ की अपेक्षा है। कथानिका, जिसे वर्तमान के साहित्य की कहानी कह सकते हें, इधर संस्कृत में अत्यन्त लोकप्रिय हुई है। केशवचन्द्र दाश, डॉ. विश्वास, प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी, अभिराज राजेन्द्र मिश्र, बनमाली बिश्वाल, नारायण दाश आदि की कहानियां इस विधा को पल्लवित कर रही हैं।
5.मुक्तक काव्य तथा विविध लघुकाव्य -
प्रस्तुत अध्याय में नागार्जुन, नरोत्तम शास्त्री, जानकीवल्लभ शास्त्री, वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य, गोविन्दचन्द्र पांडे आदि के मुक्तक काव्यों की चर्चा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। संदेशकाव्य, व्यंग्य तथा विडंबन काव्य, शोकगीति रागकाव्य, चित्रकाव्य आदि का पृथक् रूप् से यहां उल्लेख किया गयाहै।
6. चंपू, निबंध, जीवनी तथा विविध गद्यसाहित्य -
निबंधकार हृषीकेश भट्टाचार्य व रामावतार शर्मा का उल्लेख विशेष रूप से पठनीय है। जीवनी, यात्रासाहित्य, आत्मकथा, पत्रसाहित्य पर भी यहां चर्चा की गई है।
ग्रंथ में 9 परिशिष्टों के माध्यम से अनूदित साहित्य, आचार्यपरम्परा, संस्कृत पत्रकारिता, अभिलेखीय साहित्य सहित विदेशों में संस्कृतसाहित्यसर्जना पर महत्त्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं। 600 से अधिक पृष्ठो में प्रो. त्रिपाठी जी ने जो सामग्री प्रस्तुत की है, वह अनूठी है, संग्रह करने योग्य है एवं शोधकर्ताओं व जिज्ञासुओं के लिये अत्यन्त उपादेय है।
बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ
ReplyDeleteआभार
DeleteAwesome
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