कृति _ संस्कृत साहित्य की आधुनिक प्रवृत्तियां
संपादिका - प्रो कुसुम भूरिया दत्ता
विधा _ समीक्षा
प्रकाशक_ सत्यम् पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली
संस्करण_ 2015 प्रथम
पृष्ठ संख्या _ 348
अंकित मूल्य_ 900
आधुनिक संस्कृत साहित्य का जगत विविधताओं से भरपूर है| इसमें जहां एक और परंपरागत विधाओं में रचनाएं लिखी जा रही हैं, वहीं संस्कृतेतर भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं के साहित्य से प्रभावित होकर भी नई विधाओं में रचनाएं सामने आ रही हैं| रचनाओं के विषय भी बदले हैं तो शैली भी परिवर्तित हुई है| संस्कृत के कई ऐसे विभाग, संस्थाएं हैं जहां आधुनिक संस्कृत साहित्य पर विचार गोष्ठियां, सेमिनार , रिफ्रेशर कोर्स आदि आयोजित होते आए हैं| डाॅ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय का संस्कृत विभाग अपनी उत्कृष्ट संगोष्ठियों के लिए भी जाना जाता है| 2021 में यहां संस्कृत साहित्य की आधुनिक प्रवृत्तियां विषय पर आयोजित संगोष्ठी में जो महत्त्वपूर्ण शोध पत्र पढ़े गए थे, उनका संकलन करके पुस्तकाकार में प्रकाशित करवाया गया है|
पुस्तक में 42 आलेखों का संकलन है जो इस विषय पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध करवाते हैं|
प्रथम लेख नई सहस्राब्दी में संस्कृत विषय पर प्रो अभिराज राजेंद्र मिश्र का है| लेखक ने राष्ट्रीय परिवेश में चिंतन, अधुनातन विषयों का आदान, भाव सौंदर्य का अभिनव मानदंड आदि बिंदुओं के माध्यम से अपने कथन को प्रस्तुत किया है| वैदेशिक छंदों और मिथकों के आदान पर बात करते हुए प्रो मिश्र कहते हैं कि तांका, हाइकु, सीजो, सानेट आदि छंदों को संस्कृत में अपनाने से प्रायोगिक साहस मात्र की पुष्टि होती है, संस्कृत कविता में इस से कोई विलक्षण परिवर्तन नहीं हो सका है| किंतु प्रो मिश्र का यह कथन सही नहीं है क्यूंकि हाइकु आदि छंद के माध्यम से संस्कृत कविता में अद्भुत ताजगी आई है| इन वैदेशिक छंदों का अपना महत्त्व है| इसी तरह प्रो मिश्र हर्षदेव माधव द्वारा अपनी कविता में विदेशी पुराकथाओं के संकेतों को लेना सही नहीं मानते और कहते हैं कि यह तो आप ही प्रयोग करें और आप ही समझे वाली स्थिति है| प्रो मिश्र का यह कथन भी पूर्ण रूप से सही नहीं है क्योंकि आज का पाठक केवल संस्कृत की पुराकथाओं या अन्य भारतीय पुराकथाओं को ही नहीं पढ़ता अपितु वह विदेशी साहित्य का भी अध्ययन करता है| तकनीकी युग में तो विश्व को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है| ऐसे में कवि माधव के प्रयोग संस्कृत कविता को विश्व स्तरीय पहिचान दिलाते हैं|
डाॅ हर्षदेव माधव अपने आलेख के माध्यम से आधुनिक संस्कृत कविता में वैश्विक वेदनाओं और संवेदनाओं का साक्षात्कार करवाते हैं| डाॅ बालकृष्ण शर्मा ने अपने आलेख में 14 बिंदुओं के माध्यम से संस्कृत साहित्य की आधुनिक प्रवृत्तियों को प्रस्तुत किया है, यथा _ सामयिक समस्या निवारण की प्रवृत्ति, विश्वबंधुत्ववाद, दलित उद्धार, नारी जागरण, सामयिक घटनाओं का चित्रण आदि|
डाॅ नारायण दाश का आधुनिक संस्कृत गद्य साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है| डाॅ दाश ने अपने आलेख में 2001 से 2010 के मध्य प्रकाशित संस्कृत लघु कथा साहित्य का परिचय दिया है| युवा समीक्षक डाॅ नौनिहाल गौतम ने आधुनिक संस्कृत काव्यों में पात्रों की युगानुरूपता पर प्रकाश डाला है| कौशल तिवारी ने आधुनिक संस्कृत आलोचना में प्रतीक, बिम्ब और मिथकों के प्रयोग को बतलाया है और इन्हें उदाहरणों के साथ स्पष्ट किया है|
आचार्य गंगाधर शास्त्री रचित अलिविलासिसंलाप नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का परिचय देते हुए उसे महाकाव्य रचना का अभिनव मानदंड बतलाया है| डाॅ पुष्पा झा ने अपने आलेख में संस्कृत साहित्य में लोकगीत रचना की प्रवृत्ति को प्रस्तुत किया है| पंडित प्रेमनारायण द्विवेदी कृत अनूदित साहित्य का विपुल संसार है| पंडित द्विवेदी जी ने रामचरितमानस, विनय पत्रिका सहित हजारों पद्यों का संस्कृत में अनुवाद किया है| डाॅ ऋषभ भारद्वाज ने इनके संपूर्ण अनूदित साहित्य का परिचय अपने आलेख में दिया है|
इन आलेखों के अतिरिक्त आधुनिक संस्कृत कवियों की कृतियों के परिप्रेक्ष्य में भी समीक्षकों ने अपने अपने आलेखों में आधुनिक संस्कृत की प्रवृत्तियों का वर्णन किया है, यथा डाॅ हर्षदेव माधव की कालो ऽस्मि ग्रंथ पर डाॅ इला घोष का आलेख, कवि हर्षदेव माधव द्वारा ही रचित व्रणोरूढग्रंथि पर डाॅ मंजुलता शर्मा का आलेख, आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी रचित विक्रमचरित पर डाॅ भागीरथी नन्द का आलेख, अभिराज राजेंद्र मिश्र कृत विमानयात्राशतक पर डाॅ मोहनलाल का लेख | अभिराज रचित इक्षुगंधा की कथा जिजीविषा पर डाॅ रामहेत गौतम ने पृथक से आलेख लिखा है|
ग्रंथ के सारे आलेख अपने अपने विषयों से न्याय करते हैं| यह ग्रंथ जिज्ञासुओं, शोध कर्ताओं के लिए महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा, ऐसी आशा है|
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