कृति _ छायानिर्झरिणी
संपादिका - डाॅ शकुंतला गावडे
विधा _ अनुवाद संग्रह
प्रकाशक_ न्यू भारतीय बुक कार्पोरेशन, नई दिल्ली
संस्करण_ 2024 प्रथम
पृष्ठ संख्या _ 120
अंकित मूल्य_ 350
अनुवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हम अन्य भाषा की रचना का आस्वादन हमारी भाषा में कर सकते हैं| संस्कृत में अन्य भाषाओं से समय समय पर अच्छे अनुवाद होते आए हैं| हाल ही में विविध भारतीय भाषाओं से कुछ अनुवाद कार्यों का संपादन करके डाॅ शकुंतला गावडे ने इन्हे प्रकाशित करवाया है| इस संग्रह के दो भाग हैं_ काव्यगीतसंग्रह और कथालेखसंग्रह| इस तरह इसे पद्य और गद्य इन दो भागों में विभक्त किया गया है|
1 काव्यगीतसंग्रह: _ इस भाग में 32 अनूदित मुक्तछंदोबद्ध कविताएं और 15 गीत संकलित हैं| कश्मीरी कवि सतीश विमल की तीन कविताओं का अनुवाद आधुनिक संस्कृत के प्रसिद्ध कवि डाॅ हर्षदेव माधव ने किया है| अहम् एकः क्षणः कविता वर्तमान अस्तित्व की ही बात करती है_
अहमस्मि एकः क्षणः
केवलम् एकः क्षणः ।
इदानीमस्ति
इदानीं नास्ति ।
अहं नास्मि कल्पना
नैव स्मृतिः
एकमस्मि पाटलपुष्पं
केवलमद्य पूजायाः
श्वस्तनस्य होमो नास्ति मे धर्मः ।
मूल्यम् कविता का कथ्य यह है कि यहां बिना मूल्य के कुछ नहीं है, ईश्वर भी नहीं| श्मशानम् कविता जय और पराजय का सही अर्थ बतलाती है| डाॅ हर्षदेव माधव द्वारा गुजराती से अनूदित हर्ष ब्रह्म भट्ट लिखित एक कविता भी संकलित है _ मरुस्थलम् | मराठी भाषा का साहित्य अत्यंत समृद्ध है| मराठी साहित्य में विविध विमर्श पर उत्कृष्ट रचनाएं लिखी गई हैं| कौशल तिवारी द्वारा मराठी भाषा से संस्कृत में अनूदित 6 कविताएं स्त्री विमर्श को सही अर्थ में प्रकट करती हैं| प्रसिद्ध मराठी महिला कवि प्रज्ञा देवी पंवार, सारिका उबाले और कविता महाजन की दो_ दो कविताओ का यहां अनुवाद किया गया है| आम तौर पर पत्नी की परिभाषा पति के लिए क्या होती है, वह पत्नी को किस रूप में देखना चाहता है, इस पर कवि प्रज्ञा देवी पंवार कहती हैं_
'पत्नी' ति कथयति स ताम्
किन्तु आवश्यकता भवति
प्रात:काले
तस्याः अन्तरस्य श्रमिकायाः
सायंकाले च तस्या अन्तरस्य
अभिसारिकायाः ।
एक पति सुबह सुबह उसे नौकरानी के रूप में देखना चाहता है तो शाम के समय वह चाहता है कि पत्नी अभिसारिका बन कर उसकी देह क्षुधा को शांत करे|
जगदीश परमार ने गुजराती भाषा से चार कविताओं का संस्कृत में अनुवाद किया है| चारों कविताओं के कवि भिन्न भिन्न हैं| जयंत परमार दलित विमर्श के प्रसिद्ध कवि हैं| उर्दू और गुजराती भाषा में आपका साहित्य है| अनुवादक ने कवि की गुजराती कविता का संस्कृत अनुवाद किया है जिसमें दलित कवि के अंतिम इच्छा पत्र (वसीयत) के बारे में बताया गया है_
दलितकविः स्वकीयस्य पृष्ठतः
किं किं विमुच्य गच्छति_
रक्तेन दिग्धं पत्रम्,
रात्र्याः मस्तके कृष्णसूर्यः,
कलमस्य अण्याम् अग्निसमुद्रः,
पूर्वजैः रक्तेन ज्वालित-विस्फुलिङ्गः,
स न करोति युष्मासु आक्रमणम्,
रूपकाणाम् उपमानाञ्च व्यक्तित्वस्य
गर्दभस्य पृष्ठभारः सः
स्वयमेव वर्तते, अभिहता प्रतिच्छाया।
किमपि अस्तित्वं नास्ति तस्य
कोऽपि भेदो नास्ति भग्नचषके च तस्मिन् ।
दलित कवि अपने पीछे रक्त से सना कागज छोड़ के जाता है क्यूंकि उसने जो खून का इतिहास भोगा है उसे ही वह कागजों पर उकेर कर जाता है| किसी के लिए होता होगा चंद्रमा शीतलकारी, दलित कवि के लिए तो वह रात के माथे पर काला सूरज ही है| उसके पास एक लालटेन है जो मिट्टी के तेल से नहीं अपितु उसके पुरखों के रक्त से जलती है| उसके जीवन में जो भी उजाला आया है उसके पुरखों के रक्त से लथपथ बलिदान से ही मिला है| दलित कवि कभी भी अन्य कवियों की तरह रूपकों, उपमानों आदि से आप पर आक्रमण नहीं करता|
अविनाश तळेगांवकर ने अंग्रेजी भाषा से 4 विभिन्न कवियों रॉस गे, ऑस्कर विल्ड, जॉन कीट्स और मेरी एलिजाबेथ लायर की एक_ एक कविता का अनुवाद किया है| अंग्रेजी भाषा से ही रॉबर्ट फ्रॉस्ट'की दस कविताओं का अनुवाद डॉ. माधवी नरसाळे ने किया है| Fire and Ice कविता दुनिया के संभावित विनाश की बात करती है| कवि दुनिया के विनाश के दो मुख्य संभावित कारणों आग और बर्फ पर विचार करता है, यहां विरोधाभास प्रकट होता है| आग मनुष्य की अंतहीन इच्छाओं की प्रतीक है तो बर्फ उसकी नफरत की प्रतीक है_
ब्रुवन्ति केचित् जगतः नाशः
अहोस्वित् हुताशने हिमे
कामस्य आस्वादने चिनोमि हुतभुजम्
वारद्वयं नाशो भवेत्
मत्सरे परिपूतं जगदिदं
नाशे हिमे भवति तदपि समीचीनं पर्याप्तमिदम् ।
मृणालिनी नेवाळकर-गोसावी नेरोज मिलिगन' विरचित आङ्ग्लकविता 'डस्ट इफ यु मस्ट का, रेणुका पांचाळ ने इन्दिरा संतकृता रचित मराठीकविता 'शेला' का, डॉ. लीना दोशीने कल्पना नीला कृष्णा पांडव विरचित मराठीकविता का तथा डॉ. सुचित्रा ताजणे ने कुसुमाग्रज की मराठीकविता 'अखेर कमाई' का संस्कृत अनुवाद किया है| अखेर कमाई कविता में पांच महापुरुषों की प्रतिमाओं के संवाद के व्याज से हमारे समाज में व्याप्त जातिवाद/प्रदेशवाद का वर्णन किया गया है कि हम महापुरुषों की मृत्यु के पश्चात् उन्हे सारे देश का न मानकर वर्ग विशेष में बांट देते हैं _
अर्धरात्रेः अनन्तरम्
नगरे पञ्चप्रतिमाः
एकस्मिन् चतुष्कोणे उपविश्य
मनोवाचं प्रवाहयितुम् आरब्धा
ज्योतिबा अवदत्,
अन्ते अहम् अस्मि केवलं 'माळी' समाजस्य एव
राजा शिवाजिः उवाच -
अहं तु केवलं मराठानाम् ।
आम्बेडकरः अवदत्, . अहं तु केवलं बौद्धानाम् ।
तिलकः उद्घोषितवान्, अहं तु केवलं चित्पावनब्राह्मणानाम्,
गान्धी रूद्धकण्ठः अवदत् - भाग्यशालिनः भवन्तः तथापि ।
न्यूनातिन्यूना एकैका जातिः भवतः पार्श्वे अस्ति ।
मम पार्श्वे तु केवलं भित्तयः एव
ताः अपि सर्वकारीयकार्यालयानाम्...... खलु !
इस भाग में संकलित 15 अनूदित गीतों में डॉ. श्रीहरि गोकर्णकर द्वारा अनूदित एक तमिल गीत तथा कु. श्रुति कानिटकर अनूदित एक मराठी और एक हिंदी गीत संकलित है | राजेंद्र दातार ने दस मराठी गीतों और दो हिन्दी गीतों का बेहतरीन अनुवाद किया है|
2 कथालेखसंग्रह: _
इस भाग में अनूदित कथा, बालसाहित्य और लेख संकलित हैं| डाॅ हर्षदेव माधव ने विनोद भट्ट की गुजराती कथा का अनुवाद किया है जो विक्रम वैताल की प्राचीन कथा शैली का नया रूप है| डॉ. शकुंतला गावडे ने दो मराठी कथाओं का सुंदर अनुवाद प्रस्तुत किया है| डॉ. निशा पाटील ने छह बाल कथाओं का अनुवाद किया है जो मूल रूप से मराठी भाषा में हैं| संग्रह के अंत में मराठी भाषा में निबद्ध छह लेखों का संस्कृत अनुवाद भी दिया गया है, जो विविध ग्रंथों से लिए गए हैं|
यहां कश्मीरी, गुजराती, अंग्रजी, हिंदी और मराठी भाषाओं के साहित्य का अनुवाद है| अन्य भारतीय भाषाओं के उत्कृष्ट साहित्य का भी अनुवाद और किया जाना चाहिए| मुंबई विद्यापीठ संस्था द्वारा इसके प्रकाशन हेतु अनुदान दिया गया है एतदर्थ वह साधुवाद की पात्र हैं|
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