कृति - आधुनिकसंस्कृतसाहित्यश्री:
(श्रीमद्रामज्युपाध्यायाभिनन्दनग्रन्थ:)
सम्पादकद्वय - प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी एवं डॉ. रमाकांत पांडेय
प्रकाशक - प्रतिभा प्रकाशन, 29/5, शक्तिनगर, दिल्ली
संस्करण - प्रथम, 2001
पृष्ठ संख्या - 28+366+33
अंकित मूल्य - 750
अर्वाचीन संस्कृत में श्री रामजी उपाध्याय का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है | उपाध्याय जी के अभिनंदन ग्रन्थ के रूप में आधुनिकसंस्कृतसाहित्यश्री: ग्रन्थ का प्रकाशन प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी एवं डॉ. रमाकांत पांडेय के सम्पादन में हुआ है | प्रस्तुत ग्रन्थ को तीन खण्डों में विभक्त किया है-
1. प्रथम खण्ड - प्रथम खण्ड में रामजी उपाध्याय का परिचय दिया गया है | इसमें 4 लेख संकलित हैं | राधावल्लभ त्रिपाठी ने श्रीमद्रामज्युपाध्यायचरितम् आलेख में रामजी उपाध्याय के व्यक्तित्व , उनके संस्कृत सेवा के कार्यों, शिष्यपरम्परा, अनुसंधान में अवदान पर प्रकाश डाला है | रामजी उपाध्याय का जन्म 1 जुलाई 1920 को उत्तरप्रदेश के एक ग्राम मलैजी में हुआ | 1 जुलाई 1920 से 17 जनवरी 2011 तक की जीवन यात्रा में रामजी उपाध्याय ने जो कार्य संस्कृत के क्षेत्र में किये, वे सदैव स्मरणीय रहेंगे | रामजी उपाध्याय की शिष्य परम्परा में डॉ. हीरालाल शुक्ल, पंडित प्रेमनारायण द्विवेदी, प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी, डॉ. कुसुम भूरिया, डॉ. रामलखन पांडेय, श्रीमती वनमाला भवालकर आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं| इसी खण्ड में रामजी उपाध्याय के ग्रन्थों का नामोल्लेख के साथ परिचय है तथा रामजी उपाध्याय के सागरिका पत्रिका में प्रकाशित लेखों/ ग्रन्थों का उल्लेख संकलनकर्ता डॉ. धर्मेंद्र कुमार के द्वारा किया गया है | साथ ही रामजी उपाध्याय के निर्देशन में सम्पन्न 45 शोध प्रबन्धों और उनके शोधकर्ताओं का परिचय भी दिया गया है, जो शोध के क्षेत्र में विशेष महत्त्व रखता है | डॉ. रमाकांत पांडेय ने अपने आलेख में रामजी उपाध्याय के साहित्य की समीक्षा की है | आपने रामजी उपाध्याय की कृतियों को तीन भागों में विभक्त किया है- 1. भारतीयसंस्कृतिसम्बन्धिनो ग्रन्था:, 2. नाटकोपन्यासग्रन्था:, 3. समीक्षा ग्रन्था: अनुसन्धानग्रन्थाश्च
रामजी उपाध्याय ने दो नाटक सीताभ्युदयम् और कैकयीविजयम् की रचना की | आपके द्वारा रचित दो उपन्यास द्वासुपर्णा और सत्यहरिशचंद्रोदयम् पारम्परिक कथाओं में युग के अनुरूप कथ्य प्रस्तुत करते हैं |
2. द्वितीय खण्ड - द्वितीय खण्ड में विभिन्न लेखकों के 33 आलेख संकलित हैं, जो अर्वाचीन संस्कृत साहित्य के विभिन्न पक्षों को उद्घाटित करते हैं | अर्वाचीन संस्कृत की विविध विधाओं, विषय परिवर्तन, नवीन कथ्य और शिल्प आदि को जानने के लिए ये आलेख विशेष रूप से पठनीय हैं |
3. तृतीय खण्ड - तृतीय खण्ड में 3 व्याख्यान संकलित हैं | प्रथम व्याख्यान पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा जी का है, जो केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान के दीक्षांत महोत्सव में दिया गया था | यह व्याख्यान महात्मा बुद्ध के दर्शन और आधुनिक विश्व पर आधारित है | दो व्याख्यान पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री श्री मुरली मनोहर जोशी के हैं | इनमें एक व्याख्यान बैंकॉक में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन में संस्कृत के सार्वभौमत्व पर है और दूसरा व्याख्यान संस्कृत, विज्ञान और वर्तमान विश्व पर है, जो विश्व संस्कृत सम्मेलन के उद्धाटन के अवसर पर अध्यक्षीय भाषण के रूप में दिया गया था | सुखद तथ्य यह है कि ये तीनों ही व्याख्यान संस्कृत भाषा में ही दिए गए थे |
(श्रीमद्रामज्युपाध्यायाभिनन्दनग्रन्थ:)
सम्पादकद्वय - प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी एवं डॉ. रमाकांत पांडेय
प्रकाशक - प्रतिभा प्रकाशन, 29/5, शक्तिनगर, दिल्ली
संस्करण - प्रथम, 2001
पृष्ठ संख्या - 28+366+33
अंकित मूल्य - 750
अर्वाचीन संस्कृत में श्री रामजी उपाध्याय का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है | उपाध्याय जी के अभिनंदन ग्रन्थ के रूप में आधुनिकसंस्कृतसाहित्यश्री: ग्रन्थ का प्रकाशन प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी एवं डॉ. रमाकांत पांडेय के सम्पादन में हुआ है | प्रस्तुत ग्रन्थ को तीन खण्डों में विभक्त किया है-
1. प्रथम खण्ड - प्रथम खण्ड में रामजी उपाध्याय का परिचय दिया गया है | इसमें 4 लेख संकलित हैं | राधावल्लभ त्रिपाठी ने श्रीमद्रामज्युपाध्यायचरितम् आलेख में रामजी उपाध्याय के व्यक्तित्व , उनके संस्कृत सेवा के कार्यों, शिष्यपरम्परा, अनुसंधान में अवदान पर प्रकाश डाला है | रामजी उपाध्याय का जन्म 1 जुलाई 1920 को उत्तरप्रदेश के एक ग्राम मलैजी में हुआ | 1 जुलाई 1920 से 17 जनवरी 2011 तक की जीवन यात्रा में रामजी उपाध्याय ने जो कार्य संस्कृत के क्षेत्र में किये, वे सदैव स्मरणीय रहेंगे | रामजी उपाध्याय की शिष्य परम्परा में डॉ. हीरालाल शुक्ल, पंडित प्रेमनारायण द्विवेदी, प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी, डॉ. कुसुम भूरिया, डॉ. रामलखन पांडेय, श्रीमती वनमाला भवालकर आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं| इसी खण्ड में रामजी उपाध्याय के ग्रन्थों का नामोल्लेख के साथ परिचय है तथा रामजी उपाध्याय के सागरिका पत्रिका में प्रकाशित लेखों/ ग्रन्थों का उल्लेख संकलनकर्ता डॉ. धर्मेंद्र कुमार के द्वारा किया गया है | साथ ही रामजी उपाध्याय के निर्देशन में सम्पन्न 45 शोध प्रबन्धों और उनके शोधकर्ताओं का परिचय भी दिया गया है, जो शोध के क्षेत्र में विशेष महत्त्व रखता है | डॉ. रमाकांत पांडेय ने अपने आलेख में रामजी उपाध्याय के साहित्य की समीक्षा की है | आपने रामजी उपाध्याय की कृतियों को तीन भागों में विभक्त किया है- 1. भारतीयसंस्कृतिसम्बन्धिनो ग्रन्था:, 2. नाटकोपन्यासग्रन्था:, 3. समीक्षा ग्रन्था: अनुसन्धानग्रन्थाश्च
रामजी उपाध्याय ने दो नाटक सीताभ्युदयम् और कैकयीविजयम् की रचना की | आपके द्वारा रचित दो उपन्यास द्वासुपर्णा और सत्यहरिशचंद्रोदयम् पारम्परिक कथाओं में युग के अनुरूप कथ्य प्रस्तुत करते हैं |
2. द्वितीय खण्ड - द्वितीय खण्ड में विभिन्न लेखकों के 33 आलेख संकलित हैं, जो अर्वाचीन संस्कृत साहित्य के विभिन्न पक्षों को उद्घाटित करते हैं | अर्वाचीन संस्कृत की विविध विधाओं, विषय परिवर्तन, नवीन कथ्य और शिल्प आदि को जानने के लिए ये आलेख विशेष रूप से पठनीय हैं |
3. तृतीय खण्ड - तृतीय खण्ड में 3 व्याख्यान संकलित हैं | प्रथम व्याख्यान पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा जी का है, जो केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान के दीक्षांत महोत्सव में दिया गया था | यह व्याख्यान महात्मा बुद्ध के दर्शन और आधुनिक विश्व पर आधारित है | दो व्याख्यान पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री श्री मुरली मनोहर जोशी के हैं | इनमें एक व्याख्यान बैंकॉक में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन में संस्कृत के सार्वभौमत्व पर है और दूसरा व्याख्यान संस्कृत, विज्ञान और वर्तमान विश्व पर है, जो विश्व संस्कृत सम्मेलन के उद्धाटन के अवसर पर अध्यक्षीय भाषण के रूप में दिया गया था | सुखद तथ्य यह है कि ये तीनों ही व्याख्यान संस्कृत भाषा में ही दिए गए थे |