पत्रदूतम् -पं० मोहन लाल शर्मा पाण्डेय
कृति - पत्रदूतम्
लेखक - पं. मोहनलाल शर्मा पांडेय
विधा - ऐतिहासिक खण्डकाव्य
प्रकाशक - पांडेय प्रकाशन, खजाने वालों का रास्ता, जयपुर
संस्करण - 2005
अंकित मूल्य - 80 रु.
राजस्थान प्रान्त के जयपुर परकोटे में जन्मे, कभी व्यवसाय तो कभी अध्यवसाय, कभी पौरोहित्य तो कभी पाण्डित्य और कभी साहित्य सर्जन के प्रति अनवरत साधना वाग्वादिनी की अनुकम्पा से वाग्वैदग्ध्य के शिखर को चूमने वाले गुणिगुणगुरु कविवर्य पं० मोहन लाल शर्मा पाण्डेय का स्थान संस्कृत जगत् में अद्वितीय है। मुक्तक रचनाओं के क्रमिक विकास के साथ साथ सम सामयिक सन्दर्भों में पण्डित जी के कवि हृदय के संवेगों से आपूरित किया और इनके भीतर जन्म लेने वाले संवेग का परिणाम है इनका प्रथम काव्य-पत्रदूतम्।
संस्कृत साहित्य में दूतकाव्यों की एक सुदीर्घ परम्परा का इतिहास रहा है। समय परिवर्तन के साथ कवियों के कथानक भी परिवर्तित हुये हैं। वैदिक और पौराणिक आख्यानों के कथानकों को छोड़कर आज का कवि तात्कालिक समाज में व्याप्त होने वाली कथावस्तु को अपने काव्य में गुम्फित करता है। संस्कृत साहित्य की यह एक ऐसी प्रथम रचना है , जो कि विश्वजनीन एवं सार्वभौमिक बिन्दु को लेकर आगे बढ़ी है, जिसने पौराणिक या आख्यान परम्परा की सीमाओं को लांघकर मुक्त आकाश को देखने का प्रयास किया है।
।
इस काव्य की कथा का आधार खाड़ी युद्ध है। सन् 1990 में ईराक द्वारा विस्तारवादी नीति के अन्तर्गत कुवैत पर कब्जा करने तथा अमानवीय कृत्यों की बर्बरता के कारण समूचा विश्व संकटापन्न अवस्था में था। तब अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के साथ ईराक के विरोध करने का दुस्साहस किया। अमेरिका का वायुसेनाध्यक्ष अपने माता-पिता की आज्ञा और प्रिय भार्या के हृदय को कोमल वृत्ति से आप्लावित करने वाले भावों को अपने में सिञ्चित कर प्रस्थान करता है। युद्धगत होने वाले विवरणों और शीघ्र ही मिलन की चिर अभिलाषा में अवगाहन करने वाले कथानकों को पत्र के माध्यम से अपनी प्रिया को प्रेषित करता है। इस कथानक को कवि ने अपनी कारयित्री और भावयित्री प्रतिभा से रोचक बना दिया है जो सहृदयजनों को अपनी ओर बरबस आकर्षित करता है।
कवि ने "मंगलादीनि मंगलमध्यानि मंगलान्तानि च शास्त्राणि..." कथनानुसार काव्य की निर्विघ्नता पूर्वक समाप्ति के लिए सर्वप्रथम गणेश, सरस्वती और आद्या शक्ति स्वरूपा दुर्गा का नमस्कारात्मक मंगलाचरण किया है। नायक और नायिका के पाश्चात्य संस्कृति से सम्पृक्त बिम्बपरक चित्रण, मार्ग वर्णन, कुवैत में कुकृत्य, युद्ध की विभीषिका आदि अनेक स्थल कवि के प्रौढ़ पाण्डित्य के अनुपम उदाहरण हैं।
पाण्डेय जी की यह विशेषता है रही है कि जब वे वर्णन करने लगते हैं तो सम्बन्धित शब्दकोष से जो कुछ चुन सकते हैं ,सहजतापूर्वक चुन लेते हैं और सफलता के साथ अपने वर्ण्य-विषय से उसे सम्पृक्त कर देते हैं। इसी काव्य में समुद्री चित्रण के प्रसंग में जल-जीवों का चित्रण करते हुए मछलियों की विभिन्न जाति एवं उपजातियों तक के नाम एवं प्रकृति को प्रस्तुत कर देते हैं--
राजीवान् रोहितान् मद्गुरशकुलतिमीन् शालपाठीननक्रा-
नुद्रान् शङ्कून्कुलीरान् मकरकमठकान् ग्राहगण्डूपदादीन्।
श्रृंङ्गीशिल्यादियुक्तान् परमरसमयान् केलिलग्नान् विशालान्
दृष्ट्वा९तुष्यं विहङ्गानिव सलिलचरान् व्योम्नि नीले समुद्रे।।
इसी प्रकार जल-जीवों के साथ पक्षियों का भी चित्रण हुआ है। यहाँ कलहंस, राजहंस, बक, कुरर, चक्रवाक, चक्राङ्ग आदि अनेक पक्षियों की जातियों के नाम गिनाये हैं--
प्रालेयाच्छन्नशैलात् पतितझरजलै: पूरितायां सरस्यां
कादम्बा राजहंसा बककुररगणाश्चक्रवाका: सुरम्या: ।
चक्राङ्गा धार्तराष्ट्रा विमलजलचरा: सारसा मल्लिकाक्षा:
क्रीडासक्ता: प्रियाभिर्विविधकलरवै: प्राहरन् मानसम्मे।।
कवि अस्त्र-शस्त्रों के वर्णन में भी निपुण हैं--
रात्रौ राकेटमुक्तै: प्रहरणफलकैर्हेलिकाप्ट्रादियान-
क्षिप्तैरग्निप्रपिण्डैर्विकटभटवरा: सास्रवाहा: सुरङ्गा:।
वह्नेश्चूर्णप्रपूर्णा: प्रहरणततयो वर्मनद्धाष्ट्रकाख्या:
सेनावाहा: प्रणष्टा रिपुदलदमनैर्मित्रसैन्यै: कुवैते॥
कवि की अद्भुत कल्पना देखने योग्य है कि इस काव्य का नामकरण जिस संज्ञा से अभिधीत किया है उस शब्द का प्रयोग अनूठा है--
युद्धादिष्टीप्सवस्ते निजनिजशिविरं प्रावसञ्जैत्रयोधा:
सेनाध्यक्षेण तत्र प्रखरमतिजुषा निर्मिता व्यूहभेदा: ।
युद्धाभावादिदानीं बहुसमयवशात् सर्ववृत्तान्तपूर्णं
जीवाधारं प्रियायाः शुभवचनमयं प्रेष्यते "पत्रदूतम्"॥
(सभी सैनिक युद्ध की प्रतिक्षा में, अपने अपने शिविरों में सुसज्जित, युद्ध के लिए प्रस्तुत ,तीक्ष्ण बुद्धि वाले सेनाध्यक्ष द्वारा व्यूह रचना को समझ रहे थे। युद्ध न होने की स्थिति में इस समय अपने समय को व्यतीत करने के लिए सभी सामयिक समाचारों के साथ जीवनाधार प्रियतमा को शुभ वचनों के सहित नायक "पत्रदूत" प्रेषित कर रहा है।)
युद्ध विराम होने पर नायक अपने मित्रों के साथ रात्रिभोज और उसमें परोसे गये व्यंजनों का आस्वादन करके अन्त में अपनी प्रिया के सम्भोग में आनन्द के क्षण जीता है। काव्यान्त में कवि अपना वंश परिचय देता है। प्रस्तुत काव्य कुल 121 श्लोकों में स्रग्धरा छन्द में निबद्ध है। स्रग्धरा छन्द इनके लिए इतना सहज हो गया है कि मानों ये स्वयं ही इसके ऋषि रहे हों।
पाण्डेय जी की भाषा घटनानुसार प्रसादगुणसम्पन्न है किन्तु युद्ध वर्णन में ओजत्व का समावेश स्वाभाविक है। अभिनव शब्दों के प्रयोग के प्रति कवि का काव्य मोह रहा है। यथा- मौरेय:, मुदिरा:, विसारा:, कुवेणी, द्विङ्विराम:, विताता:, जालाहैमा:, गदहरणपदे आदि।
प्रो० ताराशंकर शर्मा पाण्डेय ने जो योग्य पिता के योग्य पुत्र होने के नाते पं० मोहन लाल शर्मा पाण्डेय के सर्वदा प्रमुख सहायक रहे हैं, विषमपदटिप्पणी में उन शब्दों को स्पष्ट किया है जिन्हें पाठक अपने आप में समझने मे कठिनाई का अनुभव करता है।
काव्य का नायक और नायिका ईसा मसीह के आगे विनम्रता से सिर झुकाकर "वसुधैव कुटुम्बकम्", " सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामयाः" के भाव भरते हैं। कवि की ओर से भरत वाक्य के रूप में काव्य का अवसान होता है।
मेल आई डी - kumartaresh82@gmail.com
कृति - पत्रदूतम्
लेखक - पं. मोहनलाल शर्मा पांडेय
विधा - ऐतिहासिक खण्डकाव्य
प्रकाशक - पांडेय प्रकाशन, खजाने वालों का रास्ता, जयपुर
संस्करण - 2005
अंकित मूल्य - 80 रु.
राजस्थान प्रान्त के जयपुर परकोटे में जन्मे, कभी व्यवसाय तो कभी अध्यवसाय, कभी पौरोहित्य तो कभी पाण्डित्य और कभी साहित्य सर्जन के प्रति अनवरत साधना वाग्वादिनी की अनुकम्पा से वाग्वैदग्ध्य के शिखर को चूमने वाले गुणिगुणगुरु कविवर्य पं० मोहन लाल शर्मा पाण्डेय का स्थान संस्कृत जगत् में अद्वितीय है। मुक्तक रचनाओं के क्रमिक विकास के साथ साथ सम सामयिक सन्दर्भों में पण्डित जी के कवि हृदय के संवेगों से आपूरित किया और इनके भीतर जन्म लेने वाले संवेग का परिणाम है इनका प्रथम काव्य-पत्रदूतम्।
संस्कृत साहित्य में दूतकाव्यों की एक सुदीर्घ परम्परा का इतिहास रहा है। समय परिवर्तन के साथ कवियों के कथानक भी परिवर्तित हुये हैं। वैदिक और पौराणिक आख्यानों के कथानकों को छोड़कर आज का कवि तात्कालिक समाज में व्याप्त होने वाली कथावस्तु को अपने काव्य में गुम्फित करता है। संस्कृत साहित्य की यह एक ऐसी प्रथम रचना है , जो कि विश्वजनीन एवं सार्वभौमिक बिन्दु को लेकर आगे बढ़ी है, जिसने पौराणिक या आख्यान परम्परा की सीमाओं को लांघकर मुक्त आकाश को देखने का प्रयास किया है।
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इस काव्य की कथा का आधार खाड़ी युद्ध है। सन् 1990 में ईराक द्वारा विस्तारवादी नीति के अन्तर्गत कुवैत पर कब्जा करने तथा अमानवीय कृत्यों की बर्बरता के कारण समूचा विश्व संकटापन्न अवस्था में था। तब अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के साथ ईराक के विरोध करने का दुस्साहस किया। अमेरिका का वायुसेनाध्यक्ष अपने माता-पिता की आज्ञा और प्रिय भार्या के हृदय को कोमल वृत्ति से आप्लावित करने वाले भावों को अपने में सिञ्चित कर प्रस्थान करता है। युद्धगत होने वाले विवरणों और शीघ्र ही मिलन की चिर अभिलाषा में अवगाहन करने वाले कथानकों को पत्र के माध्यम से अपनी प्रिया को प्रेषित करता है। इस कथानक को कवि ने अपनी कारयित्री और भावयित्री प्रतिभा से रोचक बना दिया है जो सहृदयजनों को अपनी ओर बरबस आकर्षित करता है।
कवि ने "मंगलादीनि मंगलमध्यानि मंगलान्तानि च शास्त्राणि..." कथनानुसार काव्य की निर्विघ्नता पूर्वक समाप्ति के लिए सर्वप्रथम गणेश, सरस्वती और आद्या शक्ति स्वरूपा दुर्गा का नमस्कारात्मक मंगलाचरण किया है। नायक और नायिका के पाश्चात्य संस्कृति से सम्पृक्त बिम्बपरक चित्रण, मार्ग वर्णन, कुवैत में कुकृत्य, युद्ध की विभीषिका आदि अनेक स्थल कवि के प्रौढ़ पाण्डित्य के अनुपम उदाहरण हैं।
पाण्डेय जी की यह विशेषता है रही है कि जब वे वर्णन करने लगते हैं तो सम्बन्धित शब्दकोष से जो कुछ चुन सकते हैं ,सहजतापूर्वक चुन लेते हैं और सफलता के साथ अपने वर्ण्य-विषय से उसे सम्पृक्त कर देते हैं। इसी काव्य में समुद्री चित्रण के प्रसंग में जल-जीवों का चित्रण करते हुए मछलियों की विभिन्न जाति एवं उपजातियों तक के नाम एवं प्रकृति को प्रस्तुत कर देते हैं--
राजीवान् रोहितान् मद्गुरशकुलतिमीन् शालपाठीननक्रा-
नुद्रान् शङ्कून्कुलीरान् मकरकमठकान् ग्राहगण्डूपदादीन्।
श्रृंङ्गीशिल्यादियुक्तान् परमरसमयान् केलिलग्नान् विशालान्
दृष्ट्वा९तुष्यं विहङ्गानिव सलिलचरान् व्योम्नि नीले समुद्रे।।
इसी प्रकार जल-जीवों के साथ पक्षियों का भी चित्रण हुआ है। यहाँ कलहंस, राजहंस, बक, कुरर, चक्रवाक, चक्राङ्ग आदि अनेक पक्षियों की जातियों के नाम गिनाये हैं--
प्रालेयाच्छन्नशैलात् पतितझरजलै: पूरितायां सरस्यां
कादम्बा राजहंसा बककुररगणाश्चक्रवाका: सुरम्या: ।
चक्राङ्गा धार्तराष्ट्रा विमलजलचरा: सारसा मल्लिकाक्षा:
क्रीडासक्ता: प्रियाभिर्विविधकलरवै: प्राहरन् मानसम्मे।।
कवि अस्त्र-शस्त्रों के वर्णन में भी निपुण हैं--
रात्रौ राकेटमुक्तै: प्रहरणफलकैर्हेलिकाप्ट्रादियान-
क्षिप्तैरग्निप्रपिण्डैर्विकटभटवरा: सास्रवाहा: सुरङ्गा:।
वह्नेश्चूर्णप्रपूर्णा: प्रहरणततयो वर्मनद्धाष्ट्रकाख्या:
सेनावाहा: प्रणष्टा रिपुदलदमनैर्मित्रसैन्यै: कुवैते॥
कवि की अद्भुत कल्पना देखने योग्य है कि इस काव्य का नामकरण जिस संज्ञा से अभिधीत किया है उस शब्द का प्रयोग अनूठा है--
युद्धादिष्टीप्सवस्ते निजनिजशिविरं प्रावसञ्जैत्रयोधा:
सेनाध्यक्षेण तत्र प्रखरमतिजुषा निर्मिता व्यूहभेदा: ।
युद्धाभावादिदानीं बहुसमयवशात् सर्ववृत्तान्तपूर्णं
जीवाधारं प्रियायाः शुभवचनमयं प्रेष्यते "पत्रदूतम्"॥
(सभी सैनिक युद्ध की प्रतिक्षा में, अपने अपने शिविरों में सुसज्जित, युद्ध के लिए प्रस्तुत ,तीक्ष्ण बुद्धि वाले सेनाध्यक्ष द्वारा व्यूह रचना को समझ रहे थे। युद्ध न होने की स्थिति में इस समय अपने समय को व्यतीत करने के लिए सभी सामयिक समाचारों के साथ जीवनाधार प्रियतमा को शुभ वचनों के सहित नायक "पत्रदूत" प्रेषित कर रहा है।)
युद्ध विराम होने पर नायक अपने मित्रों के साथ रात्रिभोज और उसमें परोसे गये व्यंजनों का आस्वादन करके अन्त में अपनी प्रिया के सम्भोग में आनन्द के क्षण जीता है। काव्यान्त में कवि अपना वंश परिचय देता है। प्रस्तुत काव्य कुल 121 श्लोकों में स्रग्धरा छन्द में निबद्ध है। स्रग्धरा छन्द इनके लिए इतना सहज हो गया है कि मानों ये स्वयं ही इसके ऋषि रहे हों।
पाण्डेय जी की भाषा घटनानुसार प्रसादगुणसम्पन्न है किन्तु युद्ध वर्णन में ओजत्व का समावेश स्वाभाविक है। अभिनव शब्दों के प्रयोग के प्रति कवि का काव्य मोह रहा है। यथा- मौरेय:, मुदिरा:, विसारा:, कुवेणी, द्विङ्विराम:, विताता:, जालाहैमा:, गदहरणपदे आदि।
प्रो० ताराशंकर शर्मा पाण्डेय ने जो योग्य पिता के योग्य पुत्र होने के नाते पं० मोहन लाल शर्मा पाण्डेय के सर्वदा प्रमुख सहायक रहे हैं, विषमपदटिप्पणी में उन शब्दों को स्पष्ट किया है जिन्हें पाठक अपने आप में समझने मे कठिनाई का अनुभव करता है।
काव्य का नायक और नायिका ईसा मसीह के आगे विनम्रता से सिर झुकाकर "वसुधैव कुटुम्बकम्", " सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामयाः" के भाव भरते हैं। कवि की ओर से भरत वाक्य के रूप में काव्य का अवसान होता है।
- डॉ तारेश कुमार शर्मा
मेल आई डी - kumartaresh82@gmail.com
ओजस्विता और पांडित्य से परिपूर्ण काव्य
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