कृति - आर्यार्णवः
विधा - काव्य
रचयिता - डॉ. शिवदत्तशर्मा चतुर्वेदी
प्रकाशक - देववाणी परिषद्, दिल्ली
संस्करण - प्रथम, 2014
पृष्ठ संख्या - 882
अंकित मूल्य - 500
डॉ. शिवदत्तशर्मा चतुर्वेदी का जन्म 16 अपैल 1934 को जयपुर में हुआ। इनके पिता गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी स्वयं संस्कृत के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। डॉ. शिवदत्तशर्मा चतुर्वेदी के प्रकाशित ग्रन्थों में चर्चामहाकाव्यम्, स्फूर्तिसप्तशती विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
आर्या छन्द संस्कृत का पारम्परिक छन्द है। आर्यासप्तशती प्रसिद्ध ग्रन्थ है। अर्वाचीन संस्कृत साहित्य में जगन्नाथ पाठक आर्या सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हैं। डॉ. शिवदत्त शर्मा चतुर्वेदी कृत आर्यार्णवः इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है कि इसमें 8 हजार से अधिक आर्याओं में कवि ने अपने कथ्य को प्रस्तुत किया है। आर्यार्णवः का विभाजन 18 वर्गों में किया गया है, जिनमें 224 शीर्षकों में 8453 आर्याएं संकलित हैं। कवि ने भूमि शीर्षक के द्वारा अपना और आर्यार्णवः की यात्रा का परिचय दिया है। देवर्षि कलानाथ शास्त्री द्वारा अंग्रेजी भाषा में भूमिका लिख गई है। ग्रन्थ के आरम्भ में अर्वाचीनसंस्कृतम् पत्रिका के प्रधान सम्पादक आचार्य रमाकान्त शुक्ल के सम्पादकीय से ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ के वृहत् कलेवर को देखते हुए दो विश्वविद्यालयों ने इसके प्रकाशन में असमर्थता प्रकट की । अतः देववाणी परिषद् की पत्रिका अर्वाचीनसंस्कृतम् के द्वारा इसका प्रकाशन किया गया। पत्रिका के 141 वें अंक से लेकर 158 वें अंक तक संयुक्तांक के रूप में प्रकाशित हुआ, इसी में यह काव्य निबद्ध है।
कवि ने इसके वर्गो का शीर्षक द्वीप किया है, इस तरह इसमें 18 द्वीप हैं। प्रत्येक द्वीप में भिन्न- भिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत कविताएं संकलित है | प्रारम्भ में गणपति की 21 आर्याओं के माध्यम से स्तुति की है-
गणपतिरस्तु नितान्तं शान्तो दान्तो हृदन्तरे कान्तः।
त्रैलोक्याभराणां सारा स्तुतिरेतदीयैव।।
साथ ही राधा, महालक्ष्मी, सरस्वती, जगदम्बा आदि की भी स्तुति है। आर्या के लिए कहते हैं-
आर्या सैषा रम्या यदि प्रसादं करोति तन्मन्ये।
भावाऽभावाऽभावः सत्वरमेवाऽत्र जागर्ति।।
प्रातः सुषमाकाले कापि नवीना स्मृतिः स्फुरति।
रात्रावथ काऽप्यन्या काले काले नवीनाऽऽर्या।।
वाल्मीकिः, तुलसिदासः, श्रीचन्द्रशर्मागुलेरिः, कालिदासः, भारविः, भवभूतिः, कबीरः पाणिनिः, श्री गोपीनाथकविराजः, भारतेन्दुः आदि के द्वारा संस्कृत, हिन्दी आदि के रचनाकारों पर आर्याएं निबद्ध हैं तो श्रीगिरिधरशर्माणः, कविशिरोमणिः (भट्ट मथुरानाथ शास्त्री), देवर्षिकलानाथाः, बटुकनाथाः आदि के द्वारा आधुनिक संस्कृत कवियों पर भी आर्याएं संकलित हैं। यहां सी.वी. रमणः, श्रीराजेन्द्रप्रसादः, श्रीनेहरुः, डॉ. राधाकृष्णः, वसुसुभाषचन्द्रः, श्रीकरपात्रस्वामी आदि के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्ध विभूतियों का भी परिचय है। कार्लमार्क्सः पर लिखी गई 100 आर्याएं, जिसे हम कार्लमार्क्सशतक कह सकते हैं, इस संकलन का विशिष्ट भाग है, जो यह प्रकट करता है कि कवि अपने देश से इतर स्थानों/महापुरुषों का भी संज्ञान अपने काव्य में लेता है-
स जयति कार्लो मार्क्सः पीडितजनबन्धुतामाप्तः।
श्रमधनतत्वविवेचनपाण्डित्यं यज्जगद्विदितम्।।
शोषितजनताहृदयस्पन्दमन्दाकिनीस्नातः।
कार्लो मार्क्सः श्वासान् सर्वान् तस्यै समर्पयामास।।
यहां सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् को कविता के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है तो काव्यकारणम्, काव्यप्रयोजनम् जैसे शीर्षकबद्ध कविताओं से काव्यशास्त्र के विषयों पर भी विचार प्रकट किये गये हैं। कामः, धैर्यम्, उपेक्षा, क्रोधशक्तिः, कुण्ठा, विवशता जैसे मनोवैज्ञानिक विषयों पर भी कवि की लेखनी चली है-
कामात्मता प्रशस्ता नाभिमता जीवने काचित्।
नो लभ्यं संसारे निखिलेऽस्मिन् कामशून्यत्वम्।।
गालीप्रथा कविता में हास्य-व्यंग्य का पुट है। गाली हमारे समाज व संस्कृति का अविभाज्य व महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। गाली की परिभाषा देते हुए कहते हैं-
मनसः स्वतन्त्रता यदि वाण्यां निखिला समागता भवति।
तत्रैव काऽपि धारा सैषा परिकथ्यते गाली।।
गाली की महिमा गाते हुए कहते हैं कि यदि गाली न हो तो यह समूचा संसार ही सूना हो जायेगा-
निखिलोऽयं संसारः शून्यः सर्वः प्रजायेत।
सा यदि मानसमध्ये नो रचयेद्वाटिकां गाली।।
कवि द्वारा इतनी विपुल मात्रा में रचे गये ये आर्याकाव्य यह सिद्ध कर देते हैं कि पारम्परिक छन्दों में भी विविध विषयों को निबद्ध किया जा सकता है।
विधा - काव्य
रचयिता - डॉ. शिवदत्तशर्मा चतुर्वेदी
प्रकाशक - देववाणी परिषद्, दिल्ली
संस्करण - प्रथम, 2014
पृष्ठ संख्या - 882
अंकित मूल्य - 500
डॉ. शिवदत्तशर्मा चतुर्वेदी का जन्म 16 अपैल 1934 को जयपुर में हुआ। इनके पिता गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी स्वयं संस्कृत के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। डॉ. शिवदत्तशर्मा चतुर्वेदी के प्रकाशित ग्रन्थों में चर्चामहाकाव्यम्, स्फूर्तिसप्तशती विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
आर्या छन्द संस्कृत का पारम्परिक छन्द है। आर्यासप्तशती प्रसिद्ध ग्रन्थ है। अर्वाचीन संस्कृत साहित्य में जगन्नाथ पाठक आर्या सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हैं। डॉ. शिवदत्त शर्मा चतुर्वेदी कृत आर्यार्णवः इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है कि इसमें 8 हजार से अधिक आर्याओं में कवि ने अपने कथ्य को प्रस्तुत किया है। आर्यार्णवः का विभाजन 18 वर्गों में किया गया है, जिनमें 224 शीर्षकों में 8453 आर्याएं संकलित हैं। कवि ने भूमि शीर्षक के द्वारा अपना और आर्यार्णवः की यात्रा का परिचय दिया है। देवर्षि कलानाथ शास्त्री द्वारा अंग्रेजी भाषा में भूमिका लिख गई है। ग्रन्थ के आरम्भ में अर्वाचीनसंस्कृतम् पत्रिका के प्रधान सम्पादक आचार्य रमाकान्त शुक्ल के सम्पादकीय से ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ के वृहत् कलेवर को देखते हुए दो विश्वविद्यालयों ने इसके प्रकाशन में असमर्थता प्रकट की । अतः देववाणी परिषद् की पत्रिका अर्वाचीनसंस्कृतम् के द्वारा इसका प्रकाशन किया गया। पत्रिका के 141 वें अंक से लेकर 158 वें अंक तक संयुक्तांक के रूप में प्रकाशित हुआ, इसी में यह काव्य निबद्ध है।
कवि ने इसके वर्गो का शीर्षक द्वीप किया है, इस तरह इसमें 18 द्वीप हैं। प्रत्येक द्वीप में भिन्न- भिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत कविताएं संकलित है | प्रारम्भ में गणपति की 21 आर्याओं के माध्यम से स्तुति की है-
गणपतिरस्तु नितान्तं शान्तो दान्तो हृदन्तरे कान्तः।
त्रैलोक्याभराणां सारा स्तुतिरेतदीयैव।।
साथ ही राधा, महालक्ष्मी, सरस्वती, जगदम्बा आदि की भी स्तुति है। आर्या के लिए कहते हैं-
आर्या सैषा रम्या यदि प्रसादं करोति तन्मन्ये।
भावाऽभावाऽभावः सत्वरमेवाऽत्र जागर्ति।।
प्रातः सुषमाकाले कापि नवीना स्मृतिः स्फुरति।
रात्रावथ काऽप्यन्या काले काले नवीनाऽऽर्या।।
वाल्मीकिः, तुलसिदासः, श्रीचन्द्रशर्मागुलेरिः, कालिदासः, भारविः, भवभूतिः, कबीरः पाणिनिः, श्री गोपीनाथकविराजः, भारतेन्दुः आदि के द्वारा संस्कृत, हिन्दी आदि के रचनाकारों पर आर्याएं निबद्ध हैं तो श्रीगिरिधरशर्माणः, कविशिरोमणिः (भट्ट मथुरानाथ शास्त्री), देवर्षिकलानाथाः, बटुकनाथाः आदि के द्वारा आधुनिक संस्कृत कवियों पर भी आर्याएं संकलित हैं। यहां सी.वी. रमणः, श्रीराजेन्द्रप्रसादः, श्रीनेहरुः, डॉ. राधाकृष्णः, वसुसुभाषचन्द्रः, श्रीकरपात्रस्वामी आदि के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्ध विभूतियों का भी परिचय है। कार्लमार्क्सः पर लिखी गई 100 आर्याएं, जिसे हम कार्लमार्क्सशतक कह सकते हैं, इस संकलन का विशिष्ट भाग है, जो यह प्रकट करता है कि कवि अपने देश से इतर स्थानों/महापुरुषों का भी संज्ञान अपने काव्य में लेता है-
स जयति कार्लो मार्क्सः पीडितजनबन्धुतामाप्तः।
श्रमधनतत्वविवेचनपाण्डित्यं यज्जगद्विदितम्।।
शोषितजनताहृदयस्पन्दमन्दाकिनीस्नातः।
कार्लो मार्क्सः श्वासान् सर्वान् तस्यै समर्पयामास।।
यहां सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् को कविता के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है तो काव्यकारणम्, काव्यप्रयोजनम् जैसे शीर्षकबद्ध कविताओं से काव्यशास्त्र के विषयों पर भी विचार प्रकट किये गये हैं। कामः, धैर्यम्, उपेक्षा, क्रोधशक्तिः, कुण्ठा, विवशता जैसे मनोवैज्ञानिक विषयों पर भी कवि की लेखनी चली है-
कामात्मता प्रशस्ता नाभिमता जीवने काचित्।
नो लभ्यं संसारे निखिलेऽस्मिन् कामशून्यत्वम्।।
गालीप्रथा कविता में हास्य-व्यंग्य का पुट है। गाली हमारे समाज व संस्कृति का अविभाज्य व महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। गाली की परिभाषा देते हुए कहते हैं-
मनसः स्वतन्त्रता यदि वाण्यां निखिला समागता भवति।
तत्रैव काऽपि धारा सैषा परिकथ्यते गाली।।
गाली की महिमा गाते हुए कहते हैं कि यदि गाली न हो तो यह समूचा संसार ही सूना हो जायेगा-
निखिलोऽयं संसारः शून्यः सर्वः प्रजायेत।
सा यदि मानसमध्ये नो रचयेद्वाटिकां गाली।।
कवि द्वारा इतनी विपुल मात्रा में रचे गये ये आर्याकाव्य यह सिद्ध कर देते हैं कि पारम्परिक छन्दों में भी विविध विषयों को निबद्ध किया जा सकता है।
समकालीन युगबोध का अद्भुत ग्रन्थ, आर्या छन्द वस्तुतः
ReplyDeleteसंस्कृत के समकालीन कवियों का प्रिय छन्द रहा है, आचार्य जगन्नाथ पाठक की आर्यायें भी इसी प्रकार अश्रुतपूर्व विषयों का स्पर्श करती हैं |
उत्तम जानकारी
आभार
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