काव्यसङ्ग्रहः - पं. प्रेमनारायण द्विवेदी
पुस्तक- काव्यसङ्ग्रहः (पं. प्रेमनारायणद्विवेदिरचनावलिः प्रथमो भागः)
रचयिता- पं. प्रेमनारायण द्विवेदी (राष्ट्रपति पुरस्कृत)
जन्मतिथि- 05 जून 1922
ब्रह्मलीन- 28 अप्रैल 2006
जन्मस्थान- पूर्व्याऊ टौरी, जनता स्कूल के पास, सागर (म.प्र.)
सम्पर्क- श्री सूर्यकान्त द्विवेदी (कवि के पौत्र, संस्कृत शिक्षक) मो. 88273 18716
प्रकाशक- राष्ट्रिय संस्कृत संस्थानम्, नई दिल्ली
सम्पादक- डॉ. ऋषभ भारद्वाज
आईएसबीएन- 978-93-86111-79-1
पृष्ठ संख्या- 301
अंकित मूल्य- 170रू.
संस्करण- 2012 प्रथम
कवि- हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पद्माकर की भूमि सागर में जन्मे, अनुवाद विधा के पारंगत कवि पं. प्रेमनारायण द्विवेदी ने 21000 संस्कृत पद्यों की रचना की है। उन्होंने परम्परागत पद्धति से शास्त्री, आचार्य तथा आधुनिक पद्धति से बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. उपाधियाँ प्राप्त कीं। उन्होंने जीवन भर अध्यापन किया और अनुवाद भी। उन्होंने तुलसीदास आदि भारतीय कवियों के साथ ही कन्फ्यूशियस आदि विदेशियों की रचनाओं का भी सुललित संस्कृत भाषा में पद्यानुवाद किया। देवकाव्य कहे जाने वाले वैदिक सूक्तों को संस्कृत पद्यों में उतारा तो बुन्देली बोली के देशज रसिया गीतों को भी संस्कृत में सहेज दिया है। उन्हें 2005 ई. में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2009 ई. में श्रीमद्रामचरितमानसम् पर साहित्य अकादमी, दिल्ली का अनुवाद पुरस्कार प्रदान किया गया।
पुस्तक- राष्ट्रिय संस्कृत संस्थानम्, नई दिल्ली की लोकप्रिय साहित्य ग्रन्थमाला के अन्तर्गत क्रमांक-35 पर काव्यसङ्ग्रहः ग्रन्थ प्रकाशित है। भूमिका के रूप में संस्थान के कुलपति और प्रधान संपादक आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी का पुरोवाक् और डॉ. ऋषभ भारद्वाज का सम्पादकीय है। इस ग्रन्थ में चार खण्ड हैं। प्रथम खण्ड स्तुतिकुसुममाला है। इसमें कवि की 28 स्तुतिपरक मौलिक रचनाएं संकलित हैं। इनमें गणेश, शिव, दुर्गा, सरस्वती, सूर्य, हनुमान्, राम, कृष्ण आदि देवों के अष्टक, स्तुतियाँ हैं। इन स्तुतियों में लय और गत्यात्मकता होने के साथ ही ये गेय हैं। इन्हें कुछ प्रसिद्ध गीतों की तर्ज पर भी गाया जा सकता है। स्वयं द्विवेदी जी अपने शिष्यों को ये स्तुतियाँ गाकर सुनाते थे। द्रष्टव्य-
भज विश्वपतिं कमलारमणं
भज केशिनिषूदनमाशु हरिम्।
भज माधवमार्तिहरं सततं
यदि वांछसि जन्म निजं सफलम्।।
काव्यसङ्ग्रहः, पृ. 27
द्रुतमातपतापितभूमितले नहि धाव हरे नहि धाव हरे!
नवनीतमहो नयसे नय भो द्रुतमेहि पुनर्विहसन् निकटे।
रुचिरं नवनीतयुतं स्वमुखं किल दर्शय सञ्चितपापहरम्
भवसिन्धुगतं परिपाहि पुनः किल देहि सुखं हर मे विपदम्।।
काव्यसङ्ग्रहः, पृ. 39
द्वितीय खण्ड स्फुटकाव्यानि है। इसमें कवि की विभिन्न विषयों पर 84 मौलिक रचनाएं संकलित हैं। ये कविताएं सहृदयों के हृदयाह्लाद तथा समाज के मार्गदर्शन की सामर्थ्य रखती हैं। इनमें ग्रीष्मादि ऋतुओं, महात्मा गाँधी आदि महापुरुषों, कार्गिल युद्ध जैसे संवेदनशील और चुनाव आदि समसामयिक विषयों पर रचनाएं हैं। द्रष्टव्य-
कार्गिलक्षेत्रं कपटाद् रिपुणा निजाधिकारे नीतम्।
तान् दूरयितुं देशशासकै रक्षाबलमानीतम्।।
तत्र शतघ्नीधरा निगूढाः प्रतिपक्षा विचरन्ति।
गुप्तमदृश्याः सुदृढकोष्ठकाद् गुलिकाभिर्वर्षन्ति।।
काव्यसंग्रह, पृ. 57
काचकलितकुतुपात् किल मदिरां, पीत्वा जनः प्रमाद्यति रे।
को वा शृणुयाद् देशविपत्तिं, जनप्रतिनिधिः पश्यति रे।।
काव्यसंग्रह, पृ. 107
तृतीय खण्ड अनूदितलघुकाव्यम् है। इसमें कवि ने इटालियन कवि ग्योवन्नी रैबॉनी आदि विभिन्न कवियों की रचनाओं का संस्कृत पद्यानुवाद किया है। ‘अकेली घेरी बन में आय, श्याम तेनें कैसी ठानी रे’ का पं. प्रेमनारायण द्विवेदी कृत अनुवाद-
एकाकिनीं श्याम वने कथं मां रुणत्सि मानिन्निवलां हि बालाम्।
वृन्दावनं यामि ततो निवृत्ता, ह्येष्यामि वर्षावनमेव भूयः।।
एकाकिनीं, काव्यसंग्रह, पृ. 271
चतुर्थ खण्ड वैदिकसूक्तसौरभम् है। इसमें कवि ने छः सूक्तों का संस्कृत पद्यानुवाद किया है। गुरु मुख से वेद-वेदाङ्ग का विधिवद् अध्ययन करने वाले द्विवेदी जी ने पुरुषसूक्त को अनुवाद में बोधगम्य बना दिया है। द्रष्टव्य-
ब्रह्माण्डमस्माच्च विराट्स्वरूपं, ब्रह्मा ततोऽभूत् पुरुषः परो यः।
ससर्ज भूमिं च पुरश्च सर्वास्तासु प्रविष्टः स्वपुरीषु जीवः।।
काव्यसंग्रह, पृ. 279
पुस्तक- काव्यसङ्ग्रहः (पं. प्रेमनारायणद्विवेदिरचनावलिः प्रथमो भागः)
रचयिता- पं. प्रेमनारायण द्विवेदी (राष्ट्रपति पुरस्कृत)
जन्मतिथि- 05 जून 1922
ब्रह्मलीन- 28 अप्रैल 2006
जन्मस्थान- पूर्व्याऊ टौरी, जनता स्कूल के पास, सागर (म.प्र.)
सम्पर्क- श्री सूर्यकान्त द्विवेदी (कवि के पौत्र, संस्कृत शिक्षक) मो. 88273 18716
प्रकाशक- राष्ट्रिय संस्कृत संस्थानम्, नई दिल्ली
सम्पादक- डॉ. ऋषभ भारद्वाज
आईएसबीएन- 978-93-86111-79-1
पृष्ठ संख्या- 301
अंकित मूल्य- 170रू.
संस्करण- 2012 प्रथम
कवि- हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पद्माकर की भूमि सागर में जन्मे, अनुवाद विधा के पारंगत कवि पं. प्रेमनारायण द्विवेदी ने 21000 संस्कृत पद्यों की रचना की है। उन्होंने परम्परागत पद्धति से शास्त्री, आचार्य तथा आधुनिक पद्धति से बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. उपाधियाँ प्राप्त कीं। उन्होंने जीवन भर अध्यापन किया और अनुवाद भी। उन्होंने तुलसीदास आदि भारतीय कवियों के साथ ही कन्फ्यूशियस आदि विदेशियों की रचनाओं का भी सुललित संस्कृत भाषा में पद्यानुवाद किया। देवकाव्य कहे जाने वाले वैदिक सूक्तों को संस्कृत पद्यों में उतारा तो बुन्देली बोली के देशज रसिया गीतों को भी संस्कृत में सहेज दिया है। उन्हें 2005 ई. में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2009 ई. में श्रीमद्रामचरितमानसम् पर साहित्य अकादमी, दिल्ली का अनुवाद पुरस्कार प्रदान किया गया।
पुस्तक- राष्ट्रिय संस्कृत संस्थानम्, नई दिल्ली की लोकप्रिय साहित्य ग्रन्थमाला के अन्तर्गत क्रमांक-35 पर काव्यसङ्ग्रहः ग्रन्थ प्रकाशित है। भूमिका के रूप में संस्थान के कुलपति और प्रधान संपादक आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी का पुरोवाक् और डॉ. ऋषभ भारद्वाज का सम्पादकीय है। इस ग्रन्थ में चार खण्ड हैं। प्रथम खण्ड स्तुतिकुसुममाला है। इसमें कवि की 28 स्तुतिपरक मौलिक रचनाएं संकलित हैं। इनमें गणेश, शिव, दुर्गा, सरस्वती, सूर्य, हनुमान्, राम, कृष्ण आदि देवों के अष्टक, स्तुतियाँ हैं। इन स्तुतियों में लय और गत्यात्मकता होने के साथ ही ये गेय हैं। इन्हें कुछ प्रसिद्ध गीतों की तर्ज पर भी गाया जा सकता है। स्वयं द्विवेदी जी अपने शिष्यों को ये स्तुतियाँ गाकर सुनाते थे। द्रष्टव्य-
भज विश्वपतिं कमलारमणं
भज केशिनिषूदनमाशु हरिम्।
भज माधवमार्तिहरं सततं
यदि वांछसि जन्म निजं सफलम्।।
काव्यसङ्ग्रहः, पृ. 27
द्रुतमातपतापितभूमितले नहि धाव हरे नहि धाव हरे!
नवनीतमहो नयसे नय भो द्रुतमेहि पुनर्विहसन् निकटे।
रुचिरं नवनीतयुतं स्वमुखं किल दर्शय सञ्चितपापहरम्
भवसिन्धुगतं परिपाहि पुनः किल देहि सुखं हर मे विपदम्।।
काव्यसङ्ग्रहः, पृ. 39
द्वितीय खण्ड स्फुटकाव्यानि है। इसमें कवि की विभिन्न विषयों पर 84 मौलिक रचनाएं संकलित हैं। ये कविताएं सहृदयों के हृदयाह्लाद तथा समाज के मार्गदर्शन की सामर्थ्य रखती हैं। इनमें ग्रीष्मादि ऋतुओं, महात्मा गाँधी आदि महापुरुषों, कार्गिल युद्ध जैसे संवेदनशील और चुनाव आदि समसामयिक विषयों पर रचनाएं हैं। द्रष्टव्य-
कार्गिलक्षेत्रं कपटाद् रिपुणा निजाधिकारे नीतम्।
तान् दूरयितुं देशशासकै रक्षाबलमानीतम्।।
तत्र शतघ्नीधरा निगूढाः प्रतिपक्षा विचरन्ति।
गुप्तमदृश्याः सुदृढकोष्ठकाद् गुलिकाभिर्वर्षन्ति।।
काव्यसंग्रह, पृ. 57
काचकलितकुतुपात् किल मदिरां, पीत्वा जनः प्रमाद्यति रे।
को वा शृणुयाद् देशविपत्तिं, जनप्रतिनिधिः पश्यति रे।।
काव्यसंग्रह, पृ. 107
तृतीय खण्ड अनूदितलघुकाव्यम् है। इसमें कवि ने इटालियन कवि ग्योवन्नी रैबॉनी आदि विभिन्न कवियों की रचनाओं का संस्कृत पद्यानुवाद किया है। ‘अकेली घेरी बन में आय, श्याम तेनें कैसी ठानी रे’ का पं. प्रेमनारायण द्विवेदी कृत अनुवाद-
एकाकिनीं श्याम वने कथं मां रुणत्सि मानिन्निवलां हि बालाम्।
वृन्दावनं यामि ततो निवृत्ता, ह्येष्यामि वर्षावनमेव भूयः।।
एकाकिनीं, काव्यसंग्रह, पृ. 271
चतुर्थ खण्ड वैदिकसूक्तसौरभम् है। इसमें कवि ने छः सूक्तों का संस्कृत पद्यानुवाद किया है। गुरु मुख से वेद-वेदाङ्ग का विधिवद् अध्ययन करने वाले द्विवेदी जी ने पुरुषसूक्त को अनुवाद में बोधगम्य बना दिया है। द्रष्टव्य-
ब्रह्माण्डमस्माच्च विराट्स्वरूपं, ब्रह्मा ततोऽभूत् पुरुषः परो यः।
ससर्ज भूमिं च पुरश्च सर्वास्तासु प्रविष्टः स्वपुरीषु जीवः।।
काव्यसंग्रह, पृ. 279
डॉ नौनिहाल गौत्तम
असिस्टेंट प्रोफेसर -डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय
मोबाइल नम्बर - 9826151335
मेल आईडी - dr.naunihal@gmail.com
असिस्टेंट प्रोफेसर -डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय
मोबाइल नम्बर - 9826151335
मेल आईडी - dr.naunihal@gmail.com
महात्मनां पण्डितप्रवराणां सर्वाः कृतयः अनूदितकाव्यसर्जनाया निदर्शनीभूताः। एताः ाााम्प्रतिकसंस्कृतसाधनातत्परेभ्यःकविकर्मचिकीर्षुभ्यश्छात्रेभ्यः प्राध्यापकेभ्यश्च प्रेरिकाः। एताषां प्रकाशकेभ्यो विद्वद्वरेभ्यो हार्दाः धन्यवादाः।
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