Wednesday, May 13, 2020

मृत्यु: चन्द्रमस: - अनूदित गद्य काव्य


मृत्यु : चन्द्रमस: - अनूदित गद्य काव्य
जब यह वागर्थ ब्लॉग शुरू किया गया था तब यह सोचा गया था कि मौलिक कृतियों के साथ अनूदित कृतियां भी प्रकाश में आये | संस्कृत से अन्य भाषाओं में तो अनुवाद होता आया ही है किंतु साथ में अन्य भारतीयेतर भाषाओं और विदेशी भाषाओं से भी संस्कृत में अनुवाद कार्य हो रहा है | इससे संस्कृत के पाठक को संस्कृतेतर साहित्य का आस्वादन हो जाता है | पराम्बा श्री योगमाया आधुनिक संस्कृत साहित्य की उभरती कवयित्री हैं | आपको साहित्य अकादेमी का युवा पुरस्कार भी प्राप्त है | मौलिक रचनाओं के साथ आपने कई महत्त्वपूर्ण अनुवाद किये हैं| योगमाया के द्वारा अनूदित एक ऐसी ही कृति का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं हेमराज सैनी | यह भी प्रसन्नता का विषय है कि नए समीक्षक ब्लॉग के साथ जुड़ रहे हैं |

मृत्यु: चन्द्रमस: - अनूदित गद्य काव्य
कृति- मृत्यु: चन्द्रमस: 
रचयिता -डा. गोकुलानंद महापात्र (ओडियामूलम्)
संस्कृतानुवाद: - पराम्बा श्रीयोगमाया
प्रकाशन - संस्कृतभारती देहली)
पृष्ठ संख्या-१३९
मूल्य-50.00   
प्रथम प्रकाशन-२००९-१०


प्रस्तुत कथाग्रन्थ में लेखक द्वारा पृथ्वीलोक के आधुनिक अमेरिकी एवं भारतीय समाज तथा प्राचीन मोहनजोदड़ो सभ्यता के साथ साथ चन्द्रलोक की मानव सभ्यता का अत्यंत विलक्षण एवं सुंदर वर्णन किया गया है।कथा का प्रारंभ अमेरिकी देश के न्यूयॉर्क प्रांत स्थित केंद्रीय उद्यान के रमणीय वातावरण में प्रधान पात्र रमेशचंद्र एवं नायिका सेंडी मनोरम वार्तालाप से होता है।इसी वक्त नेभाड प्रांत में अमेरिकी सामरिक अधिकारियों द्वारा चन्द्रलोक से अवतरित किसी 'नवागत'के पकड़ लिया जाता है।वह नवागत केवल वैदिक संस्कृत भाषा जानता है ।आंग्ल भाषा के जानकार अमेरिकी अधिकारी इस प्राचीन आर्य भाषा से अनभिज्ञ थे। अतः नवागत की भाषा के अवबोध हेतु प्रिंसटन विश्वविद्यालय के प्रो.मेकगिल के सुझाव पर योजनान्तर्गत बनारस स्थित हिन्दू विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण एवं वर्तमान में अमेरिका के भिन्न-भिन्न विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत रमेशचंद्र, वेंकटरमण तथा देशपांडेय नामक शोधार्थियों को एक साथ नेभडा राज्य स्थित सामरिक केंद्र लाया जाता है। वस्तुत: यह तीनों संस्कृत भाषा के अच्छे जानकार थे तथा नवागत की भाषा को समझने में सक्षम थे। रमेशचंद्र द्वारा नवागत से वार्तालाप करने पर ज्ञात होता है कि वह (नवागत)आज से पांच हजार वर्ष पूर्व सिंधु नदी के किनारे विकसित मोहनजोदड़ो सभ्यता का अधिवासी था।उसका मूल नाम'उत्कलावर्त' है।उस समय चन्द्रलोक पर सभ्य एवं विकसित मानव सभ्यता विद्यमान थी। अचानक जल एवं वायु की अल्पता के कारण चन्द्रलोक मृत के समान हो गया।अतः जल एवं वायु के संचय हेतु विशेष विमान से एक वैज्ञानिक दम्पती सैन्धव प्रदेश पर आते हैं।वह  मोहनजोदड़ो के राष्ट्राध्यक्ष की स्वीकृति से दो वर्ष के अथक प्रयास एवं उत्कलावर्त की सहायता से जल एवं वायु का संग्रहण करके चन्द्रलोक को चले जाते हैं।  चन्द्रलोक के राष्ट्राध्यक्ष की अनुमति मिलने पर उत्कलावर्त भी वैज्ञानिक दम्पती (केवलप्राय-शार्ङिना) के साथ चन्द्रलोक को चला जाता है।
               कथा के प्रवाह के साथ ही रोचक शैली में बालकों के ज्ञानवर्धन हेतु दार्शनिक जानकारी उपस्थापित की गई है,यथा 'वस्तु' शब्द के साथ ही वायु तत्व को परिभाषित किया गया है-" यत् दर्शनार्हं स्पर्शनार्हं च,यस्य स्थिति:अनुभवगोचरतां यायात् तदेव वस्तु।भवन्त: किं वायुं न जानन्ति ? भवद्भि: श्वासोच्छवासाय य:उपयुज्यते ,से: एव वायु: नाम।"(पृ.४१) लेखक आनुवंशिक विज्ञान की परखनली निषेचन प्रक्रिया का भी उल्लेख करता है। लेखक गुरुत्वाकर्षण शक्ति को ही सम्पूर्ण मानव संस्कृति एवं चराचर जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण मानता है।यथा- " यत: पृथिव्या: पुरुषस्य शुक्राणु:स्त्रिया: डिम्बाणु: वा पृथिव्या: गुरुत्वाकर्षण बलस्य अनुगुणं वर्धनं प्राप्तुम् अर्हति। "(पृ.९२) इसी प्रकार पृथ्वी की आयु ज्ञात करने वाली रेडियो एक्टिव विधि से भी बालकों को अवगत करवाता है-"आयुष:निर्द्धारणे सुदक्षा: पच्चविंशत्यधिका: वैज्ञानिका: परीक्षा कृत्वा स्वाभिप्रायम् अवदन् यत् अस्य आयु: चत्वारिंशत् नाधिकम् ।"(पृ.१८) कथा में न्यूयॉर्क के केंद्रीय उद्यान,सैन्धव प्रदेश एवं चन्द्रलोक स्थित ' नन्दन वन' के प्राकृतिक वातावरण का मनोहर वर्णन किया गया है ।सैन्धव प्रदेश के सूर्योदय की आभा को देखकर मनुष्य प्रमादित  प्राणी के समान व्यवहार करने लगता है-" उषस: अपूर्वेण सौन्दर्येण  विमोहिता इव जाताऽस्ति इति।पृथिव्याम् एष: सूर्योदय: वस्तुत: पृथिव्या: अधिवासिन: एव भाग्यशालिन:।"(पृ.४७) इसी तरह नन्दन वन स्वर्णमयी नगरी के समान अत्यंत विलक्षण एवं आकर्षक है-" विद्यते चन्द्रलोकस्य श्रेष्ठं रमणीयं तपोवनं नन्दनवनम्।तत्र गमनात् दार्शनिक: कवि भूत्वा   प्रत्यागच्छति।......... तत् स्वपननगरी इव प्रतीयते स्म । (पृ.८१) कथा में वेदों के अपौरुषेय को भी उल्लेखित किया है-"वेद: तु संकलित: न तु रचित: । स: च अपौरुषेय: ।"(पृ.१४) भाषा को अलंकृत करने के लिए उपमा अलंकार की छटा सर्वत्र बिखरी हुई दिखाई देती है-" तस्य नासिका करवालस्य धारा इव तीक्ष्णा " । ( पृ.२७) इसी प्रकार कथा के गूढ़ भावों को अभिव्यक्त करने वाली गागर में सागर भरने वाली सूक्तियों का प्रयोग भी कथा की विलक्षणता को द्योतित करती है-"समयस्त्रोत: न कमपि प्रतीक्षते इति ।"( समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता) । ," प्रमाणं विना कथ्यमाने वचने को विश्वस्यात् ?" अतः हे रमेश! तुम्हारे द्वारा कहीं हुईं बात पर बिना प्रमाण के कैसे विश्वास किया जाए? " (पृ.५) लेखक द्वारा लिखित यह पुस्तक सरल सरस एवं मनोरंजक तरीके से बालकों को विज्ञान के गूढ़ ज्ञान को उपलब्द करवाने में पूर्णतया सक्षम है।

प्रो. गोकुलानंद महापात्र- उत्कल प्रदेश में जन्में (सन् १९२२) प्रो महापात्र मूलतः रसायन शास्त्र के विद्वान् है । आपके द्वारा उड़िया भाषा में विज्ञान की पृष्ठभूमि आधारित दश से अधिक बालोपयोगी  कथा ग्रंथों की रचना की गई।

पराम्बा श्रीयोगमाया - वाराणसी से स्नातकोत्तर एवं भूवनेश्वर से कलाभूषण पदवी प्राप्त श्रीयोगमाया द्वारा उड़िया भाषा की अनेकों कविता, कथा एवं काव्यो का संस्कृत में अनुवाद किया है ।
मोबाइल नम्बर - 8917554392

हेमराज सैनी - आप वर्तमान में राजस्थान में  असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं तथा संस्कृत बाल साहित्य पर शोध कार्य कर रहे हैं|
मोबाइल नम्बर -  9660755441

2 comments:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद हेमराज सैनी जी । आपने लेख का हर पहेलु पर दृष्टि डाला है । पहले डा. नारायण दाश भैया ने कथासरित्, तरङ्ग 11 में (पृ. सं. 91-92), April - September 2010 में इस अनुवाद का समीक्षा किया था । मित्र कौशल तिवारी जी को आभार । एक सुझाब - अनुवाद का प्रकाशन वर्ष, प्रकाशक आदि लेख में सूचित रहेगा तो समकालीक संस्कृत साहित्य पर शोधार्थीयों का लाभ होगा । आप सबको धन्यवाद । नमस्कार ।

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