Tuesday, May 5, 2020

शिरीषपुष्पेषु वृष्टिबिन्दव:


कृति - शिरीषपुष्पेषु वृष्टिबिन्दव:
विधा- कवितासंकलन
रचयिता- हर्षदेव माधव
प्रकाशक- पार्श्व पब्लिकेशन निशापोल झवेरीवाड रिलिफ रोड अहमदाबाद
पृष्ठ संख्या- 158
अंकित मूल्य- 125


आधुनिक संस्कृत काव्य के पर्याय हर्षदेव माधव संस्कृत में हाइकु, तांका आदि विदेशी विधाओं की अवतारणा संस्कृत में बखूबी करने वाले कवि हैं प्रस्तुत काव्य संग्रह ऐसी ही कविताओं का संकलन है इसके सम्पादक हैं-  डॉ विनोद पटेल और डॉ राकेश जोषी| इस संग्रह में निम्न विभाग किये गए हैं-

1 प्रथम स्तबक- इस भाग में कवि द्वारा वर्ष 1970से 1974 के मध्य लिखे गए हाइकु काव्यों का संशोधित पाठ दिया गया है -

गुंजति भृङ्गः
कथयति किमपि
शृणोति पुष्पम् ||

गूंजता है भंवरा
कहता है कुछ
सुनता है पुष्प

यह प्रकृति से जुड़ाव का बेहतरीन हाइकु है

2 द्वितीय स्तबक - इस भाग में वर्ष 1992 से 1999 के मध्य लिखे गए हाइकु काव्यों का संकलन है यथा-

रुग्णालयस्य
मक्षिका: कुशलिन्य:
स्वस्था: मशका: ||

अस्पताल की
मक्खियां कुशलपूर्वक हैं
और मच्छर स्वस्थ हैं||

प्रस्तुत हाइकु हमारे वर्तमान समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोलता है|

3 तृतीय स्तबक - इन भाग में वर्ष 2000 से 2002 के मध्य लिखे गए हाइकु काव्यों का संकलन है-

बॉम्बनिहता
देहा मार्गे, संसदि
रुदन्ति नक्रा: ||

बम से मारे जाते हैं
रस्ते के लोग
रोते हैं मगरमच्छ संसद में ||

इस हाइकु में राजनीति पर करारा व्यंग्य किया गया है |

4 चतुर्थ स्तबक - इस भाग में वर्ष 2003 में लिखे गए हाइकु काव्यों का संकलन किया गया है -

गुरुः तमसि
सिक्थवर्ति:, आतपे
वृक्षस्य छाया ||

गुरु अंधकार में
मोमबत्ती सदृश है
और धूप में पेड़ की छाया ||

5 पंचम स्तबक - इस भाग में नए लिखे गए 232 हाइकु कविताये संकलित हैं -

आग्नेयकीटा:
पठितुं प्रयतन्ते
तमोहृदयम् ||

जुगनू
पढ़ने की कोशिश करते हैं
अंधकार का हृदय ||

इसके अतिरिक्त इस काव्यसंग्रह में कवि द्वारा लिखित तांका काव्य (1980 से 1985 के मध्य लिखे गए) तथा सीजो काव्य (1985 से 1987) भी संकलित हैं साथ ही हाइकु तांका और सीजो काव्यों पर पांच आलेख भी संकलित हैं जो भिन्न भिन्न समीक्षकों द्वारा लिखे गए हैं इन आलेखों से   संकलन की नवीन विधाओं को समझने में आसानी होती है

संग्रह के अंत में 14 हाइंका काव्य भी हैं गौरतलब है कि
हाइंका काव्य हाइकु और तांका के मिश्रण से निर्मित किया गया है  इसमें 5/7/5/5/7/5/7/7 के क्रम से आठ पंक्तियां होती हैं यथा-

गन्तुमुद्धृतं
पदमुद्वहन्ती प्रीतिः
कण्टकायते
न यान्ति प्राणा:
नायाति धृतिः, नैव
रुधिरस्राव:
मनः शिखराज्जाता
व्यथास्सहस्रधारा: ||

जाने के लिए उद्यत
पैर उठाती  हुई प्रीति
बन जाती है कांटा
नहीं जाते प्राण
न आता है धैर्य
न ही बहता है रक्त
मन के शिखर से फूट पड़ती हैं
व्यथा की हज़ारों धाराएं ||



                                हर्षदेव माधव








10 comments:

  1. बहुशोभनं कार्यं संस्कृतरक्षणाय मोदते में मन: ।

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    1. This comment has been removed by a blog administrator.

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    2. कृपया ब्लॉग से जुड़े रहें धन्यवाद

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  2. बहुत सुन्दर कौशलजी

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  3. आधुनिक संस्कृत साहित्य की नई विधाओ का परिचय देने का श्लाघनीय प्रयास स्तुत्य है।

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  4. आधुनिक संस्कृत साहित्य की नई विधाओ की सूचना देने का श्लाघनीय प्रयास स्तोत्र है

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    1. आभार आपका आप ब्लॉग के साथ बने रहे

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  5. कौशल जी आपका प्रयास सराहनीय है।

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