कृति - पश्यन्ती (75 समकालीन कवियों की संस्कृत कविताएं)
प्रधान सम्पादक - दयानिधि मिश्र
सम्पादक - बलराम शुक्ल, गायत्री प्रसाद पाण्डेय
संस्करण - प्रथम संस्करण
प्रकाशन - 2021
प्रकाशक - राका प्रकाशन, प्रयागराज
पृष्ठ संख्या - 138
अंकित मूल्य - 130
समकालीन संस्कृत साहित्य में सतत् रचनाएं लिखी और पढी जा रही हैं। कई पत्र-पत्रिकाएं अबाधित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। संस्कृत साहित्यकारों को विविध स्तरों पर उनके कृतित्व के लिए पुरस्कृत भी किया जा रहा है। आलोचकों का तो यहां तक मानना है कि संस्कृत में जितनी मात्रा में इस सदी में साहित्य लिखा गया है, उतनी मात्रा में गत सदियों में कभी नहीं लिखा गया। समकालीन संस्कृत रचनाकारों की प्रतिनिधि रचनाओं के विभिन्न संकलन भी इधर प्रकाशित हुए हैं। ऐसा ही एक संकलन 2021 वर्ष के अन्त में सामने आया है, जो 75 कवियों की प्रतिनिधि रचनाओं को अपने में समाहित किये हुए है। यह संकलन दयानिधि मिश्र के प्रधान सम्पादकत्व तथा युवा कवि बलराम शुक्ल तथा गायत्री प्रसाद पाण्डेय के सम्पादकत्व में आया है। संकलन का प्रकाशन विद्याश्री न्यास के लिये राका प्रकाशन, प्रयागराज से हुआ है।
संकलन के प्रारम्भ में बलराम शुक्ल की भूमिका है, जो समकालीन संस्कृत के परिदृश्य को समझने में सहायता करती है। यहां 75 कवियों को अकारादि क्रम ये दिया गया है। कई प्रसिद्ध कविेयों के साथ अल्पज्ञात, अल्पपरिचित कवियों को पढना आश्वस्त करता है। वरिष्ठ कवियों के साथ-साथ कई युवा कवियों को भी इसमें स्थान प्राप्त हुआ है, जो इनके लिये उत्साहवर्धक होगा। यहां कहीं पारम्परिक छन्दों मेें काव्य निबद्ध है तो कहीं नवीन प्रयोगों से प्रभावित मुक्तच्छन्द का काव्य भी सहजता से भावों को प्रकट कर रहा है। स्तुति, प्रशस्ति, प्रकृतिचित्रण, शृंगार आदि के साथ नवीन भावों पर भी कविताएं इस संकलन को विशिष्ट बनाती है।
अभिराज राजेन्द्र मिश्र सुरवागमृता सुखदा वरदा कविता के माध्यम से स्पष्ट उद्घोषणा करते हैं कि संस्कृत न मरी थी, न मर रही है और न ही मरेगी-
न मृता, म्रियते न मरिष्यति वा
सुरवागमृता सुखदा वरदा
द्विषतां नियतिं रचयिष्यति वा।।
कवि अमरनाथ पाण्डेय मुक्तछन्द में निबद्ध मदीया कविता के विषय में कहते हैं-
पीडाधिः संरम्भेषु
क्षणं चेतनाया ये उल्लासाः
तेषु प्रेरणामन्विष्यति
स्खलन्ती पदे पदे
सुतरां दीना
याचमाना कणं कणम्
प्रतिवेशे विदेशे
क्वचिद् ह्रीणा
क्वचिद् सगर्वा
तथापि प्रिया कल्याणी
रहसि संगता
कविता मदीया।।
आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी की होलिकागजलम् एक मार्मिक गजल है-
रक्तरंगे त्वया रंजिता चोलिका।
ऐषमः कीदृशी मानिता होलिका।।
अत्र दग्धा गृहा दह्यते देहली,
तत्र साधो त्वया राधिता होलिका।।
महराजदीन पाण्डेय की गजल आज के समय की विडम्बनाओं का दस्तावेज बन जाती है-
निर्वाचनस्य रंगे नटितेन तेन मुषितम्।
कस्यापि तेन रुदितं कस्यापि तेन हसितम्।।
नाट्ये न शान्तरस इति यत्प्रयोक्तमस्ति तन्न
किं किं न प्रेक्षणीयं धर्मस्थले विलसितम्।।
प्रो. रमाकान्त शुक्ल रचित भारतस्य जनता समीक्षते राष्ट्रीय भावनाओं से युक्त ऐसी कविता है जो यह बतलाती है कि भारत की जनता बहुत सावधान है और वह सब कुछ जानती है-
को विरागमुपयाति शासनात् कोऽतिरागमुपयाति चासने।
धूर्त उच्चपदवीं कथं गतो भारतस्य जनता समीक्षते।।
प्रयोगधर्मी कवि हर्षदेव माधव की तीन कविताएं संकलित हैं, जो कोरानाकाल की वीभिषिका को बहुत मार्मिक तरीके से प्रस्तुत करती हैं-
हे अलकनन्दे
अत्र स्पर्शानां भाषा
विस्मृता हस्तैः।
श्वासेषु सुगन्धपरिचयो नास्ति,
ओष्ठपुटानि
शब्दस्पन्दनरहितानि वेपन्ते।
दूरता व्याप्तास्ति
प्रतिमनुष्यम्।
राजकुमार मिश्र, अरविन्द तिवारी आदि की गजलें भी भावों से परिपूर्ण हैं। ऋषिराज पाठक की कविताएं संगीत की लय से युक्त हैं। कौशल तिवारी की 2 कविताएं दलित विमर्श परक रचनाएं हैं। सतीश कपूर विरचित चेतो ममाकर्षति तेऽनुरागे कविता 50 श्लोकों में निबद्ध है। यह अंश श्रीभुवनभास्करस्तवकाव्य से लिया गया है। बलराम शुक्ल की त्रिचक्रिकाचालककाव्यम् रिक्शा चालकों की दशा को दिखलाती है। युवा कवि परमानन्द झा की आलोकविधुरा दीपशिखा तथा सिंहशावका वयम् कविताएं पठनीय हैं। प्रवीण पण्ड्या की कविताएं गहन भावों से युक्त मुक्तछन्द की वे कविताएं हैं, जिन पर अभी बहुत कुछ लिखा जाना शेष है।
सुहास महेश, सूर्य हेब्बार की कविताओं में संस्कृत साहित्य के भविष्य की आहट सुनाई देती है। इस संकलन में महिला कवियों की कविताएं आश्वस्त करती हैं, महिलाओं की साहित्य सर्जना के प्रति।
पुष्षा दीक्षित, उमारानी त्रिपाठी, कमला पाण्डेय, मनुलता शर्मा आदि वरिष्ठ महिला कवियों के साथ चन्द्रकान्ता राय, योगिता दिलीप छत्रे, वीणा उदयन,श्रुति कानिटकर, सुहासिनी जैसे अल्पज्ञात किन्तु प्रतिभाशाली नाम उनकी कविताओं के कारण विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
प्रत्येक संकलन की अपनी सीमाएं होती हैं, जिसके कारण उसमें बहुत कुछ छूट सकता है, यथा इस संकलन में कवि बनमाली बिश्वाल, नारायण दाश तथा युवा कवियों में ऋषिराज जानी, युवराज भट्टराई व महिला कवियों में पराम्बा श्रीयोगमाया का न होना आदि। किन्तु प्रत्येक संकलन चूंकि उसके संकलनकर्ता की चयनप्रक्रिया और परिस्थितियों पर निर्भर करता है अतः ऐसा होना स्वाभाविक ही है। कुल मिलाकर यह संकलन इस तथ्य को सिद्ध करता है कि संस्कृत न केवल जीवन्त भाषा है अपितु उसमें आज के समय का साहित्य भी लिखा व पढा जा रहा है।
बहुत सुन्दर समीक्षा कौशल जी, धन्यवाद।
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद हमारा उत्साह बनाए रखियेगा
Deleteशानदार परिचय, सुन्दर कविताएं
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