कृति - एकविंशशताब्द्याः राजस्थानस्य संस्कृतसाहित्यम्
लेखक - डॉ. कमलकान्त बालाण
सम्पर्क सूत्र - 9694611696
विधा - समीक्षा
प्रकाशक - आइडियल पब्लिकेशन, जयपुर
संस्करण - प्रथम, 2016
पृष्ठ संख्या - 272
अंकित मूल्य - 350
अर्वाचीन संस्कृत साहित्य का फलक अत्यन्त विशाल है। संस्कृत की एक विशिष्टता यह है कि यह भाषा किसी एक प्रान्त से सम्बद्ध न होकर समूचे भारत की भाषा है। यही कारण है कि प्रत्येक प्रान्त के रचनाकारों ने संस्कृत के भाण्डागार को अपनी प्रतिभा से समृद्ध किया है। वर्तमान में होने वाले शोध कार्यों की एक प्रवृत्ति यह भी देखने को मिलती है कि आधुनिक संस्कृत साहित्य की किसी कृति या कृतिकार को लेकर शोधकार्य किया जा रहा है। साथ ही किसी एक प्रान्त के संस्कृत साहित्य में योगदान को लेकर भी शोधकार्य होते हैं। राजस्थान प्रदेश के संस्कृत साहित्यकारों ने सदैव संस्कृत साहित्य की श्रीवृद्धि की है। यहां न केवल काव्य रचे गये अपितु काव्यशास़्त्र भी उस काव्य की समालोचना के लिये लिखे जाते रहे। पत्र-पत्रिकाओं यथा भारती, स्वरमंगला आदि के द्वारा भी सतत संस्कृत साहित्य का प्रचार प्रसार किया गया तथा नवांकुरों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का यथेष्ट अवसर प्रदान किया गया। यहां होन वाली गोष्ठियां समूचे भारत में प्रसिद्ध रही हैं। यही कारण हैं जो राजस्थान की राजधानी जयुपर के अपरा काशी नाम को सार्थक सिद्ध करते हैं।
डॉ. कमलकान्त बालान युवा लेखक हैं और आधुनिक संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में बहुत परिश्रम कर रहे हैं।
डॉ. बालान ने 21 वीं सदी के राजस्थान प्रदेश के संस्कृत साहित्य पर शोधकार्य किया है। आपका यह शोध कार्रू प्रमुख रूप से 21 वीं सदी के प्रथम दशक (2001 से 2010) पर आधारित है। यही शोध कार्य 2016 में ग्रन्थाकार रूप में प्रकाशित हुआ है। लेखक ने इसे 12 भागों में विभक्त किया है-
1. भूमिका - लेखक ने इस में सर्वप्रथम आधुनिक संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त परिचय दिया है। महाकाव्य, खण्डकाव्य, उपन्यास, कथा, नाट्यसाहित्य आदि विधाओं का उल्लेख करते हुए आधुनिक संस्कृत साहित्य की प्रवृत्तियों को रेखांकित किया है। ये प्रवृत्तियां विषय और शैली की दृष्टि से भिन्न-भिन्न प्रदर्शित की गई हैं।
2. कालखण्डस्यास्य प्रमुखकवीनां परिचयः - इस भाग में सर्वप्रथम राजस्थान को 8 मण्डलों में विभक्त कर प्रत्येक मण्डल के रचनाकार का संक्षिप्त परिचय एवं उनकी रचनाओं का नाम से उल्लेख किया गया है|
3. कालखण्डेऽस्मिन् प्रणीतानां ग्रन्थानां वर्गीकरणम् - इस भाग में काव्य के भेदों के अर्वाचीन लक्षणों को प्रस्तुत करते हुए लेखक के लिये अपेक्षित कालखण्ड की रचनाओं को इस काव्य के भेदों को वर्गीकृत किया गया है।
4. महाकाव्यानि - इस भाग में राजस्थान के कवियों द्वारा लिखित और 21 वीं सदी के प्रथम दशक में प्रकाशित 15 महाकाव्यों की समालोचना की गई है। यथा- राजलक्ष्मीस्वयंवरम्, श्रीकरणीचरितामृतम्, सुभद्रार्जुनीयम्।
5. खण्डकाव्यानि - इस भाग में 37 खण्डकाव्यों का परिचय दिया गया है, यथा- नवोढाविलासम्, परिखायुद्धम्, नचिकेतकाव्यम् आदि। साथ ही 7 मुक्तककाव्यों (सारस्वतसौरभम्, संस्कृतकवितावल्लरी आदि) तथा 2 मुक्तछन्दकाव्यों (ज्योतिर्ज्वालनम् तथा उद्बाहुवामनता) को पृथक् से निर्दिष्ट करते हुए खण्डकाव्यों के भाग में ही समालोचित किया गया है।
6. गद्यकाव्यानि - इस भाग में 9 कथासंग्रहों (यथा आख्यानवल्लरी, संस्कृतकथाशतकम्) तथा 1 उपन्यास (जीवनस्यपाथेयम्) का वर्णन है।
7. नाट्यकाव्यानि - यहां 7 नाट्यसंग्रहों की समालोचना हैं, जिनमें पूर्वशाकुन्तलम् प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है। हरिराम आचार्य द्वारा लिखित यह नाट्यसंग्रह रेडियो नाटकों का सर्वोत्तम निदर्शन है, जिनका प्रसारण समय-समय पर आकाशवाणी केन्द्र जयपुर से हुआ है।
8. बहुविधपत्रिकासु प्रकाशितप्रकीर्णकाव्यानि- भारती, स्वरमंगला तथा जयन्ती राजस्थान से प्रकाशित होने वाली संस्कृत पत्रिकाएं हैं। लेखक ने अत्यन्त परिश्रम से 10 वर्षों में इन पत्रिकाओं में प्रकाशित सामग्री का ंसकलन कर उसे विभाजित किया है।
9. सम्पादितसमीक्षितानूदितकाव्यानि - अभीष्ट कालावधि में प्रकाशित सम्म्पादित, अनूदित एवं समीक्षित ग्रन्थों के उल्लेख से यह ग्रन्थ और उपादेय हो गया है। सम्पादित ग्रन्थों में 19 ग्रन्थों (कलानाथ शास्त्री सम्पादित जयपुरवैभवम्, रमाकान्त पाण्डेय सम्पादित अभिनवकाव्यालंकारसूत्रम्) तथा समीक्षितग्रन्थों में 6 ग्रन्थों का परिचय है (यथा रमाकान्त पाण्डेय कृत आधुनिकसंस्कृतकाव्यशास्त्रसमीक्षणम्, कलानाथ शास्त्री कृत आधुनिकसंस्कृतसाहित्येतिहासः)। अनूदित ग्रन्थों के क्रम में 8 ग्रन्थों का परिचय दिया गया है, जिनमें 6 ग्रन्थ श्रीरामदवे द्वारा अनूदित किये गये हैं, यथा- गीतांजलिः, निर्मला, यवनीनवनीतम्, धु्रवस्वामिनी। पद्म शास्त्री कृत कबीरशतकम् भी विशेष रूप से उल्ल्ेखनीय है।
10. उपसंहृतिः - इस भाग में उपसंहार के रूप् में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं दी गई हैं।
11. राजस्थाने एकविंशशताब्द्याः प्रथमदशके प्रकाशितग्रन्थानां सूची - इस में प्रकाशित ग्रन्थों की सूची प्रकाशन वर्ष तथा प्रकाशक के साथ दी गई है।
12. राजस्थाने एकविंशशताब्द्याः प्रथमदशके प्रकाशितकाव्यानां सूची - इस में प्रकाशित काव्यों की सूची प्रकाशन वर्ष तथा प्रकाशक के साथ दी गई है
यदि इस प्रकार के शोधकार्य भारत के सभी राज्यों में हो और वह शोधकार्य हमारे समक्ष प्रकाशित होकर आये तो ऐसे अनेक ग्रन्थों की जानकारी हमें मिलेगी जो प्रायः हमें उपलब्ध नहीं हो पाती। साथ ही इनमें से प्रत्येक विधा पर किसी राज्य विशेष के योगदान को लेकर भी पृथक् से शोधकार्य किया जाना अपेक्षित हैं।
लेखक - डॉ. कमलकान्त बालाण
सम्पर्क सूत्र - 9694611696
विधा - समीक्षा
प्रकाशक - आइडियल पब्लिकेशन, जयपुर
संस्करण - प्रथम, 2016
पृष्ठ संख्या - 272
अंकित मूल्य - 350
अर्वाचीन संस्कृत साहित्य का फलक अत्यन्त विशाल है। संस्कृत की एक विशिष्टता यह है कि यह भाषा किसी एक प्रान्त से सम्बद्ध न होकर समूचे भारत की भाषा है। यही कारण है कि प्रत्येक प्रान्त के रचनाकारों ने संस्कृत के भाण्डागार को अपनी प्रतिभा से समृद्ध किया है। वर्तमान में होने वाले शोध कार्यों की एक प्रवृत्ति यह भी देखने को मिलती है कि आधुनिक संस्कृत साहित्य की किसी कृति या कृतिकार को लेकर शोधकार्य किया जा रहा है। साथ ही किसी एक प्रान्त के संस्कृत साहित्य में योगदान को लेकर भी शोधकार्य होते हैं। राजस्थान प्रदेश के संस्कृत साहित्यकारों ने सदैव संस्कृत साहित्य की श्रीवृद्धि की है। यहां न केवल काव्य रचे गये अपितु काव्यशास़्त्र भी उस काव्य की समालोचना के लिये लिखे जाते रहे। पत्र-पत्रिकाओं यथा भारती, स्वरमंगला आदि के द्वारा भी सतत संस्कृत साहित्य का प्रचार प्रसार किया गया तथा नवांकुरों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का यथेष्ट अवसर प्रदान किया गया। यहां होन वाली गोष्ठियां समूचे भारत में प्रसिद्ध रही हैं। यही कारण हैं जो राजस्थान की राजधानी जयुपर के अपरा काशी नाम को सार्थक सिद्ध करते हैं।
डॉ. कमलकान्त बालान युवा लेखक हैं और आधुनिक संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में बहुत परिश्रम कर रहे हैं।
डॉ. बालान ने 21 वीं सदी के राजस्थान प्रदेश के संस्कृत साहित्य पर शोधकार्य किया है। आपका यह शोध कार्रू प्रमुख रूप से 21 वीं सदी के प्रथम दशक (2001 से 2010) पर आधारित है। यही शोध कार्य 2016 में ग्रन्थाकार रूप में प्रकाशित हुआ है। लेखक ने इसे 12 भागों में विभक्त किया है-
1. भूमिका - लेखक ने इस में सर्वप्रथम आधुनिक संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त परिचय दिया है। महाकाव्य, खण्डकाव्य, उपन्यास, कथा, नाट्यसाहित्य आदि विधाओं का उल्लेख करते हुए आधुनिक संस्कृत साहित्य की प्रवृत्तियों को रेखांकित किया है। ये प्रवृत्तियां विषय और शैली की दृष्टि से भिन्न-भिन्न प्रदर्शित की गई हैं।
2. कालखण्डस्यास्य प्रमुखकवीनां परिचयः - इस भाग में सर्वप्रथम राजस्थान को 8 मण्डलों में विभक्त कर प्रत्येक मण्डल के रचनाकार का संक्षिप्त परिचय एवं उनकी रचनाओं का नाम से उल्लेख किया गया है|
3. कालखण्डेऽस्मिन् प्रणीतानां ग्रन्थानां वर्गीकरणम् - इस भाग में काव्य के भेदों के अर्वाचीन लक्षणों को प्रस्तुत करते हुए लेखक के लिये अपेक्षित कालखण्ड की रचनाओं को इस काव्य के भेदों को वर्गीकृत किया गया है।
4. महाकाव्यानि - इस भाग में राजस्थान के कवियों द्वारा लिखित और 21 वीं सदी के प्रथम दशक में प्रकाशित 15 महाकाव्यों की समालोचना की गई है। यथा- राजलक्ष्मीस्वयंवरम्, श्रीकरणीचरितामृतम्, सुभद्रार्जुनीयम्।
5. खण्डकाव्यानि - इस भाग में 37 खण्डकाव्यों का परिचय दिया गया है, यथा- नवोढाविलासम्, परिखायुद्धम्, नचिकेतकाव्यम् आदि। साथ ही 7 मुक्तककाव्यों (सारस्वतसौरभम्, संस्कृतकवितावल्लरी आदि) तथा 2 मुक्तछन्दकाव्यों (ज्योतिर्ज्वालनम् तथा उद्बाहुवामनता) को पृथक् से निर्दिष्ट करते हुए खण्डकाव्यों के भाग में ही समालोचित किया गया है।
6. गद्यकाव्यानि - इस भाग में 9 कथासंग्रहों (यथा आख्यानवल्लरी, संस्कृतकथाशतकम्) तथा 1 उपन्यास (जीवनस्यपाथेयम्) का वर्णन है।
7. नाट्यकाव्यानि - यहां 7 नाट्यसंग्रहों की समालोचना हैं, जिनमें पूर्वशाकुन्तलम् प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है। हरिराम आचार्य द्वारा लिखित यह नाट्यसंग्रह रेडियो नाटकों का सर्वोत्तम निदर्शन है, जिनका प्रसारण समय-समय पर आकाशवाणी केन्द्र जयपुर से हुआ है।
8. बहुविधपत्रिकासु प्रकाशितप्रकीर्णकाव्यानि- भारती, स्वरमंगला तथा जयन्ती राजस्थान से प्रकाशित होने वाली संस्कृत पत्रिकाएं हैं। लेखक ने अत्यन्त परिश्रम से 10 वर्षों में इन पत्रिकाओं में प्रकाशित सामग्री का ंसकलन कर उसे विभाजित किया है।
9. सम्पादितसमीक्षितानूदितकाव्यानि - अभीष्ट कालावधि में प्रकाशित सम्म्पादित, अनूदित एवं समीक्षित ग्रन्थों के उल्लेख से यह ग्रन्थ और उपादेय हो गया है। सम्पादित ग्रन्थों में 19 ग्रन्थों (कलानाथ शास्त्री सम्पादित जयपुरवैभवम्, रमाकान्त पाण्डेय सम्पादित अभिनवकाव्यालंकारसूत्रम्) तथा समीक्षितग्रन्थों में 6 ग्रन्थों का परिचय है (यथा रमाकान्त पाण्डेय कृत आधुनिकसंस्कृतकाव्यशास्त्रसमीक्षणम्, कलानाथ शास्त्री कृत आधुनिकसंस्कृतसाहित्येतिहासः)। अनूदित ग्रन्थों के क्रम में 8 ग्रन्थों का परिचय दिया गया है, जिनमें 6 ग्रन्थ श्रीरामदवे द्वारा अनूदित किये गये हैं, यथा- गीतांजलिः, निर्मला, यवनीनवनीतम्, धु्रवस्वामिनी। पद्म शास्त्री कृत कबीरशतकम् भी विशेष रूप से उल्ल्ेखनीय है।
10. उपसंहृतिः - इस भाग में उपसंहार के रूप् में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं दी गई हैं।
11. राजस्थाने एकविंशशताब्द्याः प्रथमदशके प्रकाशितग्रन्थानां सूची - इस में प्रकाशित ग्रन्थों की सूची प्रकाशन वर्ष तथा प्रकाशक के साथ दी गई है।
12. राजस्थाने एकविंशशताब्द्याः प्रथमदशके प्रकाशितकाव्यानां सूची - इस में प्रकाशित काव्यों की सूची प्रकाशन वर्ष तथा प्रकाशक के साथ दी गई है
यदि इस प्रकार के शोधकार्य भारत के सभी राज्यों में हो और वह शोधकार्य हमारे समक्ष प्रकाशित होकर आये तो ऐसे अनेक ग्रन्थों की जानकारी हमें मिलेगी जो प्रायः हमें उपलब्ध नहीं हो पाती। साथ ही इनमें से प्रत्येक विधा पर किसी राज्य विशेष के योगदान को लेकर भी पृथक् से शोधकार्य किया जाना अपेक्षित हैं।