मलालाचरितम् - स्त्री-शिक्षा के महत्त्व का काव्य
कृति - मलालाचरितम्
कृतिकार – प्रो. रवीन्द्र कुमार पण्डा
प्रकाशक – अर्वाचीन संस्कृत परिषद्, बडोदरा
प्रथम संस्करण 2017
मूल्य- 150 रू.
पृष्ठ-70
प्रतिभा किसी किसी की मोहताज नहीं होती । इसके लिए धर्म जाति, लिंग और आयु कोई मायने नहीं रखता । समय उसे ही स्मरण करता है जो लोगों द्वारा बने बनाए मार्ग से हटकर कुछ अलग करते हैं । मलाला युसुजई इसी प्रकार की एक बालिका है जिसने लीक से हटकर कुछ अलग किया । इसलिए अफगानिस्तान ही नहीं संपूर्ण विश्व उसे जानता और पहचानता है । उसी निडर और निर्भीक बालिका के जीवनचरित्र पर आधारित काव्य का प्रणयन किया है डॉ. रवीन्द्र कुमार पण्डा ने अपने ‘मलालाचरितम्’ काव्य में ।
इस काव्य में कवि ने अपनी काव्य प्रतिभा का बहुत ही सुंदर परिचय दिया है । कवि ने कहीं पर विद्या की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती की वंदना की है, तो कहीं मित्रता के महत्व को बताया है । कवि ने नारी शिक्षा पर भी जोर दिया है । उसने ऐसे माता-पिता की प्रशंसा की है जो अपने बच्चे को शिक्षित तथा निडर बनाते हैं । कहा भी गया है
माता शत्रु: पिता वैरी येन बालो न पाठित:
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
स्त्रियों को कुछ रूढिवादी आज भी पुरुष के हाथ की कठपुतली के रुप में देखना पसन्द करते हैं । उनको लगता है कि अगर नारी ने घर के बाहर कदम निकाला तो हमारा वर्चस्व समाप्त हो जाएगा । हमारे उस झूठ का पर्दाफाश हो जाएगा जिसकी आड़ में हम अनैतिक कृत्य करते हैं । कवि ने स्त्री को हाशिए से उठाकर मुख़्यधारा में लाने का प्रयास किया है और इसमें वह सफल भी हुआ है ।
स्त्रीणां मनोदशामनोदशां दृष्ट्वा तथा च निनिकबप्रथाम् ।
कृष्णांगकृष्णांगवरणं चैव स भवति स्म कातर: ॥
कवि कहता है कि शिक्षित नारी एक नहीं बल्कि दो कुलों का उद्धार करती है । इसी बात को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपने शब्दों में इस प्रकार कहा था कि – “एक आदमी को पढाओगे तो एक व्यक्ति शिक्षित होगा | एक स्त्री को पढ़ाओगे तो पूरा परिवार शिक्षित होगा ।’’
अस्माकं संस्कृते शास्त्रे तनयां दुहितेति च ।
कथ्यते कारणं यस्मात् सा कुलद्वयतारिणी ॥
कवि का मानना है कि शिक्षा सबके लिए आवश्यक है वह जितना पुरुष के लिए आवश्यक है उतना ही स्त्री के लिए भी ।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान की स्त्रियों की दशा का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है कि वहाँ पर स्त्री शिक्षा आज भी न के बराबर है । अशिक्षा के कारण वहाँ की स्त्रियाँ अपनी आवाज नहीं उठा सकती । पुरातंपथी और रूढिवादी धर्मगुरु उनको जितना बताते हैं वे उतना ही जानते समझते हैं । उनकी अपनी स्वयं की कोई नहीं सोच है और न ही स्वयं का कोई विचार । तालिबानी आतंकियों के कारण वे अपने घरों में सदैव कैद रहती हैं ।
बन्दिनीव गृहे स्थित्वा या यापयन्ति ।
पुरुषाणां बलैर्बद्धा भवन्ति स्म प्रतिक्षणम् ॥
जीवन्ति कुदशापन्ना: शोषिताश्चापमानिता ।
अशिक्षिता रमण्यो या भयव्याघ्रविदारिता: ॥
तालिबानभयव्याघ्रो यथा गर्जति भूतले ।
प्रभावेण सदा यस्य दु:खिन्य: सन्ति बालिका ॥
‘शिक्षक उस मोमबत्ती के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है’ इसका उदाहरण मलाला की शिक्षिका मैडम मरियम हैं । लोग आज शिक्षक को चाहे जो कहें परंतु आज भी यह सत्य है कि समाज में अच्छे शिक्षकों की कमी नहीं है । मलाला के इस समाज सेवा रुपी कार्य में अप्रत्यक्ष रुप से मरियम का बहुत बड़ा योगदान रहा है ।
उच्चविद्यालये तस्या आसीच्चोत्तमशिक्षिका ।
स्वतन्त्रा शेमिषीयुक्ता मरियंनामधारिणी ॥
विद्या की महत्ता बताते हुए कवि कहता है कि विद्या के बिना इस जगत में कुछ भी संभव नहीं है । इसलिए प्रत्येक मनुष्य को विद्या अवश्य ग्रहण करनी चाहिए । विद्या ही सारे सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति का साधन है ।
वित्तं विद्यासमं नास्ति न वै विद्यासमो मणि: ।
नहि विद्यासमा शक्तिर्विद्या परमदेवता ॥
विद्यासमो न शोभते निर्गन्धा इव किंशुका ।
आहारभोगनिद्रासु नित्यं ये सन्ति संयुता: ॥
मलाला ने सदैव पर्दा प्रथा तथा रूढ़िवादिता और दकियानूसी विचारधारा का हमेशा विरोध किया । इस परिणाम यह हुआ कि उसे गोली तक मारा गया । परन्तु ईश्वर की कृपा से वह बच गयी ।
अनुष्टुप्, शार्दूलविक्रीडित, त्रोटक, युग्मकम् आदि छ्न्दों में निबद्ध यह काव्य पाठक को शुरू से अन्त तक बाँधे रखने की सामर्थ्य रखता है । इसके लिए कवि साधुवाद के पात्र हैं । उन्हें भविष्य के लिए अशेष शुभकामनायें ।
डॉ अरुण कुमार निषाद
सम्पर्क -08318975118
Mail id- arun.ugc@gmail.com
कृति - मलालाचरितम्
कृतिकार – प्रो. रवीन्द्र कुमार पण्डा
प्रकाशक – अर्वाचीन संस्कृत परिषद्, बडोदरा
प्रथम संस्करण 2017
मूल्य- 150 रू.
पृष्ठ-70
प्रतिभा किसी किसी की मोहताज नहीं होती । इसके लिए धर्म जाति, लिंग और आयु कोई मायने नहीं रखता । समय उसे ही स्मरण करता है जो लोगों द्वारा बने बनाए मार्ग से हटकर कुछ अलग करते हैं । मलाला युसुजई इसी प्रकार की एक बालिका है जिसने लीक से हटकर कुछ अलग किया । इसलिए अफगानिस्तान ही नहीं संपूर्ण विश्व उसे जानता और पहचानता है । उसी निडर और निर्भीक बालिका के जीवनचरित्र पर आधारित काव्य का प्रणयन किया है डॉ. रवीन्द्र कुमार पण्डा ने अपने ‘मलालाचरितम्’ काव्य में ।
इस काव्य में कवि ने अपनी काव्य प्रतिभा का बहुत ही सुंदर परिचय दिया है । कवि ने कहीं पर विद्या की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती की वंदना की है, तो कहीं मित्रता के महत्व को बताया है । कवि ने नारी शिक्षा पर भी जोर दिया है । उसने ऐसे माता-पिता की प्रशंसा की है जो अपने बच्चे को शिक्षित तथा निडर बनाते हैं । कहा भी गया है
माता शत्रु: पिता वैरी येन बालो न पाठित:
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
स्त्रियों को कुछ रूढिवादी आज भी पुरुष के हाथ की कठपुतली के रुप में देखना पसन्द करते हैं । उनको लगता है कि अगर नारी ने घर के बाहर कदम निकाला तो हमारा वर्चस्व समाप्त हो जाएगा । हमारे उस झूठ का पर्दाफाश हो जाएगा जिसकी आड़ में हम अनैतिक कृत्य करते हैं । कवि ने स्त्री को हाशिए से उठाकर मुख़्यधारा में लाने का प्रयास किया है और इसमें वह सफल भी हुआ है ।
स्त्रीणां मनोदशामनोदशां दृष्ट्वा तथा च निनिकबप्रथाम् ।
कृष्णांगकृष्णांगवरणं चैव स भवति स्म कातर: ॥
कवि कहता है कि शिक्षित नारी एक नहीं बल्कि दो कुलों का उद्धार करती है । इसी बात को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपने शब्दों में इस प्रकार कहा था कि – “एक आदमी को पढाओगे तो एक व्यक्ति शिक्षित होगा | एक स्त्री को पढ़ाओगे तो पूरा परिवार शिक्षित होगा ।’’
अस्माकं संस्कृते शास्त्रे तनयां दुहितेति च ।
कथ्यते कारणं यस्मात् सा कुलद्वयतारिणी ॥
कवि का मानना है कि शिक्षा सबके लिए आवश्यक है वह जितना पुरुष के लिए आवश्यक है उतना ही स्त्री के लिए भी ।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान की स्त्रियों की दशा का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है कि वहाँ पर स्त्री शिक्षा आज भी न के बराबर है । अशिक्षा के कारण वहाँ की स्त्रियाँ अपनी आवाज नहीं उठा सकती । पुरातंपथी और रूढिवादी धर्मगुरु उनको जितना बताते हैं वे उतना ही जानते समझते हैं । उनकी अपनी स्वयं की कोई नहीं सोच है और न ही स्वयं का कोई विचार । तालिबानी आतंकियों के कारण वे अपने घरों में सदैव कैद रहती हैं ।
बन्दिनीव गृहे स्थित्वा या यापयन्ति ।
पुरुषाणां बलैर्बद्धा भवन्ति स्म प्रतिक्षणम् ॥
जीवन्ति कुदशापन्ना: शोषिताश्चापमानिता ।
अशिक्षिता रमण्यो या भयव्याघ्रविदारिता: ॥
तालिबानभयव्याघ्रो यथा गर्जति भूतले ।
प्रभावेण सदा यस्य दु:खिन्य: सन्ति बालिका ॥
‘शिक्षक उस मोमबत्ती के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है’ इसका उदाहरण मलाला की शिक्षिका मैडम मरियम हैं । लोग आज शिक्षक को चाहे जो कहें परंतु आज भी यह सत्य है कि समाज में अच्छे शिक्षकों की कमी नहीं है । मलाला के इस समाज सेवा रुपी कार्य में अप्रत्यक्ष रुप से मरियम का बहुत बड़ा योगदान रहा है ।
उच्चविद्यालये तस्या आसीच्चोत्तमशिक्षिका ।
स्वतन्त्रा शेमिषीयुक्ता मरियंनामधारिणी ॥
विद्या की महत्ता बताते हुए कवि कहता है कि विद्या के बिना इस जगत में कुछ भी संभव नहीं है । इसलिए प्रत्येक मनुष्य को विद्या अवश्य ग्रहण करनी चाहिए । विद्या ही सारे सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति का साधन है ।
वित्तं विद्यासमं नास्ति न वै विद्यासमो मणि: ।
नहि विद्यासमा शक्तिर्विद्या परमदेवता ॥
विद्यासमो न शोभते निर्गन्धा इव किंशुका ।
आहारभोगनिद्रासु नित्यं ये सन्ति संयुता: ॥
मलाला ने सदैव पर्दा प्रथा तथा रूढ़िवादिता और दकियानूसी विचारधारा का हमेशा विरोध किया । इस परिणाम यह हुआ कि उसे गोली तक मारा गया । परन्तु ईश्वर की कृपा से वह बच गयी ।
अनुष्टुप्, शार्दूलविक्रीडित, त्रोटक, युग्मकम् आदि छ्न्दों में निबद्ध यह काव्य पाठक को शुरू से अन्त तक बाँधे रखने की सामर्थ्य रखता है । इसके लिए कवि साधुवाद के पात्र हैं । उन्हें भविष्य के लिए अशेष शुभकामनायें ।
डॉ अरुण कुमार निषाद
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