Saturday, May 9, 2020

श्रीमद्रामचरितमानसम्

पं. प्रेमनारायण द्विवेदी जी संस्कृत के अद्भुत साधक रहे | मध्यप्रदेश के सागर में एक स्कूल में अध्यापन कार्य करते हुए आपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का संस्कृत में अनुवाद किया | ये संस्कृत के मौन रचनाकार थे, जिनकी रचनाएं उनकी कीर्ति को बढ़ा रही हैं | हमारे आग्रह पर नौनिहाल गौत्तम जी ने श्रीमद्रामचरितमानसम् का संक्षिप्त परिचय भेजा है | नौनिहाल गौत्तम वर्तमान में डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं  | गौत्तम जी के द्वारा हमें उनकी अन्य रचनाओं का भी परिचय मिलेगा, ऐसा हमारा विश्वास है | अब यह ब्लॉग सार्थकता कि ओर बढ़ रहा है |

श्रीमद्रामचरितमानसम्


पुस्तक- श्रीमद्रामचरितमानसम्
रचयिता- पं. प्रेमनारायण द्विवेदी (राष्ट्रपति पुरस्कृत)
जन्मतिथि- 05 जून 1922
ब्रह्मलीन- 28 अप्रैल 2006
जन्मस्थान- पूर्व्याऊ टौरी, जनता स्कूल के पास, सागर (म.प्र.)
सम्पर्क- श्री सूर्यकान्त द्विवेदी (पौत्र, संस्कृत शिक्षक) मो. 88273 18716
प्रकाशक- देववाणी परिषद्, नई दिल्ली
सम्पादक- डॉ. रमाकान्त शुक्ल (पद्मश्री विभूषित)
पृष्ठ संख्या- 736
अंकित मूल्य- 202रू.
संस्करण- 2005 प्रथम


कवि-   पं. प्रेमनारायण द्विवेदी 21000 संस्कृत पद्य रचना करने वाले अनुवाद में पारंगत कवि हैं। उन्होंने तुलसीदास आदि भारतीय कवियों, कन्फ्यूशियस आदि विदेशियों की रचनाओं का सुललित संस्कृत भाषा में पद्यानुवाद किया, वहीं वैदिक सूक्तों को संस्कृत पद्यों में उतारा है। महामहिम राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने 2005 ई. में राष्ट्रपति भवन में उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया। श्रीमद्रामचरितमानसम्  पर साहित्य अकादमी, दिल्ली का अनुवाद पुरस्कार (2009ई.) प्रदान किया गया है।

पुस्तक-    श्रीमद्रामचरितमानसम् की रचना 1977 ई. में पूर्ण हो चुकी थी किन्तु इसका प्रथम प्रकाशन 2005 ई. में हो सका। यह गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस का संस्कृत में पद्यानुवाद है। श्रीमद्रामचरितमानसम् में बालकाण्डम् में 44, अयोध्याकाण्ड में 39, अरण्यकाण्ड में 10, किष्किन्धाकाण्ड में 6, सुन्दरकाण्ड में 10, लंकाकाण्ड में 24 और उत्तरकाण्ड में 24 सर्ग हैं। कुल सर्ग 157 तथा पद्यों की संख्या 7814 है। ग्रन्थारम्भ में कवि ने 25 पद्यों में मंगलाचरण, सज्जनवन्दन किया है। भूमिका के रूप में डॉ. रमाकान्त शुक्ल का प्रास्ताविक तथा कवि का निवेदन प्रकाशित है। अनुवाद में दोहों की संख्या निर्दिष्ट की गयी है। इसमें स्रग्धरा, शार्दूलविक्रीडित, अनुष्टुप्, आर्या, मालिनी, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, वसन्ततिलका, वंशस्थ, रथोद्धता, भुजंगप्रयात, तोटक, प्रहर्षिणी, पंचचामर, पृथ्वी, द्रुतविलम्बित, मन्दाक्रान्ता, शालिनी, पुष्पिताग्रा, स्वागता, शिखरिणी, गीतिका, हरिगीतिका आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है। पं. प्रेमनारायण द्विवेदी ने गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित रामचरितमानस को अनुवाद का आधार बनाया है। यह सरस, रोचक और मर्मस्पर्शी अनुवाद है। भाषा प्रवाहपूर्ण है। शब्दचयन उपयुक्त है। शब्दाडम्बर का अभाव है। भावाभिव्यक्ति को प्रधानता दी गयी है। संस्कृत परम्परा के गम्भीर अध्येता पं. प्रेमनारायण द्विवेदी मूल ग्रन्थ के कथ्य की तह तक जाकर उसे अनुवाद में उतारने में सफल रहे हैं।

रामचरितमानस-

मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू।।
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा।।

पं. प्रेमनारायण द्विवेदी कृत अनुवाद-

सतां समाजोऽखिलमङ्गलाय समुज्ज्वलो जङ्गमतीर्थराजः।
मन्दाकिनी यत्र च रामभक्तिः सरस्वती ब्रह्मविचारणा च।। 
श्रीमद्रामचरितमानसम्, पृ. 9

रामचरितमानस-

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई।।
 सुंदरकाण्ड दोहा-5

पं. प्रेमनारायण द्विवेदी कृत अनुवाद-

हर्म्यस्य रामायुधराजितस्य शोभा प्रवक्तुं वचनैर्न शक्यते।
नवं सुरम्यं तुलसीकदम्बकं तत्रैव पश्यन् हनुमान् ननन्द च।। 
श्रीमद्रामचरितमानसम्, पृ. 478



डॉ नौनिहाल गौत्तम
असिस्टेंट प्रोफेसर -डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय 
मोबाइल नम्बर - 9826151335
मेल आईडी - dr.naunihal@gmail.com

14 comments:

  1. अत्युत्तमम्

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  2. प्रणाम sir जी

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  3. अपूर्वम् अद्भुतं च कार्यमिदं संस्कृतजगति।

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  4. प्रणाम सर जी 👏👏

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  5. श्लाघनीय प्रयास......

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  6. भवान् निरन्तरं साहित्यस्य धर्मस्य च साधनायां निरतः। इत्येषा भवति हरिकृपा।

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  7. साधु साधु।
    अतीव शोभनम्।

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  8. साधु समीक्षणम्।

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