कृति _ द्विपथम्
अनुवादक - डॉ. कौशल तिवारी
विधा - अनुवाद संग्रह
प्रकाशक- स्वयं अनुवादक कौशल तिवारी, माला देवी मोहल्ला, वार्ड नं. 31, (राज.)
संस्करण- 2017 प्रथम
पृष्ठ संख्या- 98
अंकित मूल्य- 250
अनुवाद के माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों, परम्पराओं और ज्ञान की धरोहर को अपनी भाषा में प्राप्त कर सकते हैं। यह सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ाता है और एक वैश्विक दृष्टिकोण विकसित करता है। साथ ही अन्य भाषाओं के उत्कृष्ट साहित्य का अनुवाद हमें उन महान् रचनाओं का आस्वादन करने का अवसर देता है, जो हमारी पहुंच से बाहर होती हैं। जब एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद किया जाता है, तो अनुवादक को नए शब्दों और वाक्य संरचनाओं की खोज करनी पड़ती है। अनुवाद भाषा के शब्दकोष को बढ़ाता है और अनुवादक को नई परिस्थितियों में प्रयोग करने योग्य बनाता है।
भारत में विभिन्न भाषाओं और बोलियों का प्रचलन है। संस्कृत प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान की भाषा है। संस्कृत में अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य का अनुवाद करने से संस्कृत भाषा की समृद्धि होती है। नये शब्दों का सृजन होता है। इससे संस्कृत साहित्य में विविधता आती है और इसके पाठकों को नए विषयों और दृष्टिकोणों से परिचित होने का अवसर भी मिलता है। अन्य भाषाओं से संस्कृत में अनुवाद के माध्यम से विभिन्न भाषाओं के साहित्य का आदान-प्रदान होता है, जिससे भाषाई और सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा मिलता है।
युवा प्रतिभाशाली संस्कृत कवि एवं अनुवादक डॉ. कौशल तिवारी का अनुवाद संग्रह ‘द्विपथम्’ राजस्थान संस्कृत अकादमी की आर्थिक सहायता से प्रकाशित है। ‘द्विपथ’ से तात्पर्य ‘दोराहा’ से है। इस संकलन में अनुवादक द्वारा गद्य और पद्य दोनों विधाओं में अनुवाद किया गया है। इस पुस्तक के दो भाग हैं। प्रथम भाग का नाम ‘एकादशी’ है, जिसमें ओम नागर, ओमप्रकाश वाल्मीकि, उदयप्रकाश, कुमार अनुपम, बिमलेश त्रिपाठी, मंगलेश डबराल, यतीन्द्र मिश्र, लीलाधर मण्डलोई, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, विष्णुनागर, वीरेन डंगवाल इन 11 समकालीन हिन्दी कवियों की प्रतिनिधि कविताओं का संस्कृत में अनुवाद किया गया है। इन 11 हिन्दी कवियों ने अपनी 48 कविताओं की रचना छन्द-मुक्त शैली में की है तथा अनुवादक कवि डॉ. तिवारी ने भी इन कविताओं का अनुवाद छन्द-मुक्त शैली में ही किया है।
ग्रन्थ के दूसरे भाग का नाम ‘कथासंगम’ है, जिसमें हिन्दी, उर्दू, राजस्थानी, चीनी, अंग्रेजी आदि भाषाओं की 39 कहानियों का संस्कृत में अनुवाद किया गया है। इन कहानियों में समाज व राष्ट्र के अनेक विषयों व समस्याओं का चित्रण किया गया है, जिसे अनूदित भाषा संस्कृत का पाठक भी सहजता से समझ सकता है I
डॉ. कौशल तिवारी ने ‘इदं माधुर्यम्’ शीर्षक से हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार ‘डॉ. ओम नागर’ की कविता का अनुवाद किया है। यह अनुवाद मूल कविता की गहराई, भावनात्मकता और काव्यात्मकता को संस्कृत भाषा में प्रभावी रूप से प्रस्तुत करता है। अनुवाद में मूल कविता की भावनाओं को सटीकता से व्यक्त किया गया है। 'मां मध्य एव त्यक्त्वा' और 'शेषयात्राया: कटुत्वम्' जैसे भावपूर्ण तत्व अनुवाद में प्रभावी रूप से स्थानान्तरित किए गए हैं। कविता में एक आन्तरिक संघर्ष का उल्लेख है। कवि एक तरफ प्रियजन को जाने की अनुमति देता है, लेकिन दूसरी तरफ वह उसके जाने से उत्पन्न होने वाले दर्द और कड़वाहट को भी महसूस करता है। यह कविता विरह, स्मृतियों की मिठास, कटुता, स्वतन्त्रता और आन्तरिक संघर्ष के गहरे भावों को संजीदगी से प्रस्तुत करती है।
दलित साहित्य के प्रतिनिधि साहित्यकार ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ की ठाकुर का कुंआ कविता का संस्कृत रूपांतरण ‘ठकुरस्य कूपः" कविता सामन्ती व्यवस्था के तहत ग्राम्य जीवन की असमानताओं और अन्याय पर एक व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह कविता दिखाती है कि कैसे एक ठाकुर, जो सामन्ती व्यवस्था का प्रतीक है, गांव के हर संसाधन और श्रम का स्वामी बन बैठा है, जबकि सामान्य ग्रामीण लोगों के पास कुछ भी नहीं है। डॉ. कौशल तिवारी ने इस कविता का संस्कृत में सुन्दर और सटीक अनुवाद किया है और यह मूल हिन्दी कविता के अर्थ और भाव को अच्छी तरह से संरक्षित करता है। "चुल्लिका मृत्तिकाया, मृत्तिका तडागस्य" पंक्तियाँ मूल हिन्दी कविता की भावनाओं को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करती हैं।
हिन्दी भाषा के चर्चित कवि कथाकार, पत्रकार और फिल्मकार ‘उदय प्रकाश’ की ‘महाजनो येन गतः’ कविता "महाजनो येन गतः स पन्थाः" की विचारधारा पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि महान् लोग जिस मार्ग पर चलते हैं, वही सही मार्ग होता है। इसमें श्रेष्ठ व्यक्तियों द्वारा छोड़े गए निशानों का उल्लेख है, जो हमें उनके अनुकरण के लिए प्रेरित करते हैं। कवि 'उदय प्रकाश' ने हिन्दी भाषा में लिखित इस कविता में अनेक प्रतीकों का उपयोग किया है। अनुवादक डॉ. तिवारी ने उन प्रतीकों को सहजता के साथ अपने संस्कृत अनुवाद में समाहित कर भावों को उत्कृष्टता के साथ अभिव्यक्त किया है।
कवि 'कुमार अनुपम' की 'वालुका' कविता में एक खोई हुई नदी की स्मृतियों को दर्शाया गया है, जो अब केवल रेत के रूप में शेष रह गई है। कविता का भाव यह है कि समय के साथ बदलाव अवश्यम्भावी है, लेकिन उसकी यादें अमर रहती हैं।
कैसे एक भाषा के गहरे और सूक्ष्म भावों को दूसरी भाषा में सही तरीके से व्यक्त किया जा सकता है, इसके दर्शन हमें 'लीलाधर मण्डलोई' की 'मन्त्र' नामक कविता में होते हैं। कवि डॉ. तिवारी द्वारा हिन्दी भाषा से संस्कृत भाषा में किया गया अनुवाद न केवल शाब्दिक रूप से सही है, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यन्त प्रभावशाली है। यह संस्कृत कविता मधुमक्खियों के परिश्रम और उनकी संगठन क्षमता को दर्शाती है। कविता में यह बताया गया है कि मधुमक्खियाँ कैसे फूलों से पराग एकत्र करती हैं और अपने पैरों में बने थैले में सुरक्षित रखती हैं। उनका परिश्रम और एकत्रीकरण का कार्य न केवल अदृश्य होता है, बल्कि बाहरी आक्रमण से भी सुरक्षित रहता है। मूल कविता के अन्त में जो सीख दी गई है, उसे भी संस्कृत में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है। 'हम शत्रुओं के बीच में खड़े हैं और बचा नहीं सकते' को 'स्थिता वयं शत्रुमध्ये त्रातुं न शक्नुमश्च' के रूप में अनूदित किया गया है, जो मूल भाव को पूर्णतः सही तरीके से व्यक्त करता है।
हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध कवि 'विश्वनाथ प्रसाद तिवारी' की कविता 'सैनिका:' केवल युद्ध और सैनिको के बारे में नहीं है, बल्कि यह उनके जीवन, संघर्ष और देशभक्ति की कहानी भी है। यह हमें यह समझने में मदद करती है कि युद्ध केवल बाहरी लड़ाई नहीं होती, बल्कि यह सैनिकों के भीतर भी लड़ी जाती है। इस कविता की गहराई और उसकी सच्चाई हमें सैनिकों के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता का अनुभव कराती है। अनुवादक कवि डॉ. तिवारी ने मूल कविता के भाव, संरचना और संदेश को संस्कृत भाषा में कुशलता से प्रस्तुत किया है।
हिन्दी भाषा के कवि ‘विष्णु नागर’ की ‘स्वर्गे नास्ति किञ्चिदपि’ कविता एक विचारशील प्रस्तुति है, जो स्वर्ग की स्थिति का विवेचना करती है। कवि यहाँ स्वर्ग को एक अद्भुत स्थान के रूप में नहीं देखता है, बल्कि वहाँ के अभावों और असमर्थताओं को उजागर करता है। इसीलिए कविता के अन्त में कवि कहता है कि “अतः एवाऽहं नरकन्तु गन्तुं शक्नोमि किन्तु स्वर्गं कदापि नैव”। अनुवादक ने प्रसाद गुण युक्त वैदर्भी रीति में अनुवाद किया है, जो पाठक को कविता का अर्थ एवं भाव शीघ्र ही अवबोध कराने में सक्षम है।
ग्रन्थ के द्वितीय भाग ‘कथासंगम’ में अनुवादक डॉ. कौशल तिवारी ने प्रसिद्ध उर्दू लेखक ‘सआदत हसन मंटो’ द्वारा लिखित ‘टोबाटेक सिंह’ कहानी का उर्दू भाषा से संस्कृत भाषा में बड़ी ही सहजता और सरलता से अनुवाद किया है, जो उर्दू भाषा को न जानने वाले संस्कृत भाषा के पाठकों को सहज ही हृदयङ्गम हो जाता है। ‘टोबाटेक सिंह’ एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और संवेदनशील कहानी है, जो भारत के विभाजन और उसके परिणामस्वरूप हुए स्थानान्तरण की त्रासदी को दर्शाती है। विभाजन के बाद मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों का भी विभाजन किया गया, जिनमें से हिन्दू और सिख विक्षिप्तों को पाकिस्तान से भारत भेजा गया और मुस्लिम विक्षिप्तों को भारत से पाकिस्तान। कहानी का मुख्य पात्र बिशन सिंह है, जिसे सभी 'टोबाटेक सिंह' कहते हैं। वह इस विभाजन की उलझनों से त्रस्त है और बार-बार पूछता है कि उसका गाँव, टोबाटेक सिंह, भारत में है या पाकिस्तान में। ‘मंटो’ ने सरल और प्रभावशाली भाषा में इस कहानी को प्रस्तुत किया है, जो पाठक के दिल को छू जाती है और विभाजन के दर्द को महसूस कराती है।
हिंदी भाषा के प्रसिद्ध व्यंग्यकार ‘हरिशंकर परसाई' द्वारा हिन्दी भाषा में लिखित 'चतुर्वेदी महोदय की कहानी' , जिसका कि कवि डॉ. तिवारी ने संस्कृत में अनुवाद किया है, यह कहानी भारतीय समाज में विवाह और सामाजिक प्रतिष्ठा की महत्ता को दर्शाती है, जहां सरकारी सेवा में चयन और पद का महत्व विवाह निर्णयों को प्रभावित करता है।
वर्तमान समय में अन्य भाषाओं से संस्कृत भाषा में अनुवाद करते समय कभी-कभी शब्दों का ज्यों का त्यों उपयोग कवियों के द्वारा कर लिया जाता है। डॉ. तिवारी ने भी 'चतुर्वेदिमहोदयस्य कथा' में ‘डेपुटिकलेक्टर' एवं 'आई.ए.एस्.' शब्दों को इसी रूप में अनुवाद करते समय ग्रहण कर लिया है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि संस्कृत भाषा में इन शब्दों को नहीं गढ़ा जा सकता था, लेकिन एक व्यवहारिक दृष्टिकोण या सहजता के कारण कुछ शब्दों को वैसा ही कवियों के द्वारा अनुवाद करते समय ग्रहण कर लिया जाता है।
दार्शनिक कथाकार ‘खलिल जिब्रान’ की आंग्ल भाषा में लिखी गई ‘तिस्र: पिपीलिका:’ कहानी अति लघु एवं सरल है, लेकिन प्रभावशाली तरीके से जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है। तीन चींटियों के माध्यम से विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारधाराओं को प्रदर्शित किया गया है। कहानी का अन्त अचानक और अप्रत्याशित है, जो जीवन की अनिश्चितता को दर्शाता है। चींटियों की मौत यह बताती है कि जीवन क्षणभंगुर है और अनायास ही समाप्त हो सकता है। हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए और जीवन की अनिश्चितताओं को स्वीकार करना चाहिए। कवि का सहजता से युक्त अनुवाद द्रष्टव्य है- “तस्या कथनं श्रुत्वा ते पिपीलिके हसितवत्यौ । तदैव स जनो निद्रायां कम्पितो जातः । तेन हस्तेन स्वनासिका कण्डूयिता। एतेन तिस्रः पिपीलिका पिष्टा जाताः।”
‘वरदान’ ‘प्रेमचन्द’ की एक मार्मिक और प्रेरणादायक कहानी है, जो एक महिला की इच्छाओं, समर्पण और आत्मविश्वास को बखूबी प्रस्तुत करती है। कहानी का मुख्य पात्र सुवामा है, वह जीवन में संघर्षों और कठिनाइयों का सामना करते हुए देवी अष्टभुजा से वरदान प्राप्त करती है। यह अनुवाद साहित्यिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हिन्दी और संस्कृत दोनों भाषाओं के बीच पुल का कार्य करता है और साहित्यिक धरोहर को संजोए रखता है। इस प्रकार के अनुवादों से संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार होता है और यह भाषा जीवित रहती है। यह अनुवाद संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए एक उत्कृष्ट अध्ययन सामग्री हो सकती है, जो उन्हें हिन्दी साहित्य और संस्कृत भाषा दोनों का ज्ञान प्रदान करती है।
‘विस्मरण’ मात्र पांच पंक्तियों की चीन देश में प्रचलित बोद्ध-दर्शन पर आधारित ज़ेन कथा है। चीनी भाषा से संस्कृत में अनुवाद करते समय लेखक ने दार्शनिक और सांस्कृतिक सन्दर्भ को बनाए रखा है तथा सटीकता और गहराई के साथ प्रस्तुत किया है, जो महत्वपूर्ण है। यह कथा चीनी बौद्ध दर्शन की गहराई और प्रतीकात्मकता को संस्कृत में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है। विस्मरण का सिद्धान्त, गुरु का प्रतीकात्मक संवाद और आत्मसाक्षात्कार की दिशा में मार्गदर्शन ये सभी चीनी बौद्ध परम्परा के महत्वपूर्ण पहलू हैं।
कवि डॉ. कौशल तिवारी द्वारा भी चीन देश में प्रचलित बौद्ध दर्शन की दार्शनिक कथा 'स्यात्' का सरलता, सरसता और मधुरता के साथ संस्कृत भाषा में अनुवाद किया है, जो सहज बोधगम्य होने के कारण पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यथा- एकस्मिन् ग्रामे एकः कृषको निवसति स्म। तस्य समीपम् एको घोटक आसीत्। एकवारं स घोटको बन्धनं त्यक्त्वा पलायनं कृतवान्। सूचनां प्राप्य सर्वे कृषका आगतवन्तः। तैः सान्त्वनां दत्त्वा कथितम्- "अयं तु अशुभो वृतान्तः।" स कृषकोऽवदत्- "आम् स्यात्।"
राजस्थानी भाषा की लोक-कथा को कवि ने 'पति: क: भविष्यति' शीर्षक के अन्तर्गत अनूदित किया है। यह कथा अद्वितीय संगठन को दर्शाती है, जिसमें चारों मित्रों के बीच सखापन, साझेदारी और सहायता का महत्वपूर्ण सन्देश है। प्रत्येक पात्र अपनी अद्वितीय क्षमताओं के माध्यम से एक-दूसरे की मदद करते हैं, जिससे समाज में समर्थन और समृद्धि की भावना स्थापित होती है। राजकुमार, स्वर्णकार, सौचिक और तक्षक ये चारों मित्र अपनी विद्या के सामर्थ्य से पुत्तलिका को युवति के रूप में बना देते हैं। इस प्रकार कहानी में यह दिखाया है कि समृद्ध समाज के निर्माण में सामूहिक भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कहानी के अन्त में मुनि की सलाह ने दिखाया है कि प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता और क्षमता के आधार पर ही उन्हें समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है।
डाॅ. तिवारी द्वारा विविध भाषाओं से संस्कृत में अनुवाद, संपादन कार्य और प्रकाशन कार्य संस्कृत भाषा की समृद्धि में महत्वपूर्ण कार्य है। यह कार्य भारतीय भाषाओं की समृद्धि तो करता ही है, साथ ही भाषाओं के आपसी सम्बन्ध को भी सुदृढ़ बनाता है। विभिन्न भाषाओं की साहित्यिक धरोहर को एक मञ्च पर लाने में सहायक सिद्ध होता है। अनुवाद में इतनी सरलता है कि पाठक कविताओं और कहानियों को पढ़कर तुरन्त ही अर्थ और भाव दोनों को साथ ही समझ लेता है। निश्चित रूप से कवि डॉ. कौशल तिवारी के इस अनुवाद कार्य की संस्कृत भाषा के उन्नयन में प्रमुख भूमिका है।
डॉ. ललित नामा कोटा राजस्थान
असिस्टेंट प्रोफेसर संस्कृत
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