प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी का रचना संसार विपुल है | आपने प्रायः काव्य की हर विधा में रचनाएं लिखी हैं | प्रो त्रिपाठी का विक्रमचरित एक ऐसा गद्यकाव्य है जो लिखा तो गया है पशु पात्रों को आधार बनाकर किंतु वह मनुष्य समाज की वर्तमान राजनीति को बखूबी अभिव्यक्त करता है | यहां पशु प्रतीक बन जाते हैं | पंचतंत्र, हितोपदेश आदि का स्मरण कराता यह आख्यान हमारे समय का दस्तावेज है | इस गद्यकाव्य का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं डॉ महावीर प्रसाद साहू |
विक्रमचरितम् - रोचक आख्यान
कृति - विक्रमचरितम्
रचयिता - राधावल्लभ त्रिपाठी
पृष्ठ संख्या- 122
अंकित मूल्य - 200
संस्करण-प्रथम 2000
प्रकाशक-प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली
प्रो, राधावल्लभ त्रिपाठी द्वारा रचित विक्रमचरित आख्यान की शैली में रचा गया गद्यकाव्य है। इसका विभाजन नौ उच्छ्वासों में किया गया है। परम्परा से हटकर इसमें वीभत्स रस मुख्य रूप से निबद्ध है। इस आख्यान के केंद्र में एक पशु पात्र घूकर नामक सूअर है।
कथानक- एक ग्राम में घूकर सूअर तिलकसिंह नामक ग्राम मुखिया की हवेली के निकट एक मलिन गली में निवास करता है। उसके साथ उसकी सोलह शूकर सुन्दरियां भी रहती हैं। एक बार उस हवेली पर आधिपत्य करने की इच्छा से वह सूअर हवेली में प्रवेश करता है किन्तु वहां उसकी जमकर पिटाई होती है। अपमानित घूकर सूअर सब कुछ त्यागकर एक दुर्गम वन में चला जाता है, जहां विक्रम नामक सिंह शासन करता है। घूकर के उस जंगल में प्रवेश करने से पहले सबकुछ ठीक था। घूकर चतुरिका नामक लोमडी (जो विक्रम की निजी सचिव थी) तथा कम्बुकण्ठ नामक सियार (पूर्व कोशाध्यक्ष) के साथ मिलकर तख्तापलट कर देता है और सूअर साम्राज्य की स्थापना करता है। तत्पश्चात् उस राज्य में सब कुछ बदल जाता है। सर्वत्र भ्रष्टाचार, अनाचार व्याप्त हो जाता है। मंत्री परिषद् का नाम बदलकर शूकरपरिषद् कर दिया जाता है। कुछ समय बाद विक्रम सिंह अपने विश्वस्त सहयोगियों के साथ मिलकर पुनः राज्य प्राप्त कर लेता है। घूकर सूअर जान बचाकर वहां से भाग निकलता है किन्तु फिर से अपना राज्य स्थापित करने का स्वप्न देखने लगता है। यही पर आख्यान समाप्त हो जाता है।
इसमें वर्तमान राजनीति की शैली पर करारा व्यंग्य किया गया है। शूकर राज्य स्थापित होने पर किस प्रकार स्तुतियां बदल जाती हैं, चापलूसी किस हद तक बढ जाती है, इसका उदाहरण द्रष्टव्य है-
जय जय शूकर जय जय घूकर जय भूधर विश्रान्तमते
जय धरणीधर जय घोणीवर पीनश्रोणीजनितनते।
कर्दमचारिन् मलचयहारिन् सततं लेपितपंकतते
धरणीधारिन् जय जय नितरां मुस्ताक्षतिपातालगते।।
जब कुशासन प्रवेश करता है तो योग्यजन तंत्र से दूर हो जाते हैं। यथा-
इतस्तु विक्रमसिंहो दुर्गमवनस्यातिदुर्गमायां गुहायामेकस्यामेकाकिजीवनमयापयत्। विष्कम्भो नाम व्याघ्र इतस्तु शूकराः सुखेन निवसितुं न ददतीत्युक्त्वा पलाय्य विदेशे वसतिमकरोत्। कुम्भो नाम गजस्तु स्वयूथेन सह सुदूरं तीर्थयात्रार्थमगच्छत्।
इसके साथ ही यह भी दिखाया गया है कि जब शासन बदल जाता है तो किस प्रकार सभी जगहों के नाम बदल दिये जाते हैं-
तस्माच्च दिनाद् दुर्गमवने सकलानां स्थानानां नदीनां पर्वतानामुपवनानां च नामपरिवर्तनक्रमः प्रचचाल। तथाहि-दुर्गमवनमारात् प्रववाह मालिनी नदी। अस्या मालिनीति नाम्नि सामन्तवादगन्ध उज्जृमभत इति तैः शूकरानुयायियिनः घूकरमहाराजस्य मातुः पूतिकर्या नाम्नाo तस्या नद्यीः पूतिकरीति संज्ञया व्यपदेश आरब्धः।
साहित्य में जब राजनीति प्रवेश करती है तो साहित्य का क्षेत्र किस प्रकार विकृत हो जाता है, किस प्रकार शिक्षा की स्थिति बदहाल हो जाती है, किस प्रकार पुरस्कारों में बंदरबाट चलती है, इसका वर्णन करते हुए कहते हैं-
तेषु एकेन मिथ्याव्रतशास्त्रिनाम्ना रासभेन ‘आदिवराह-घूकरशूकरयोश्चरितस्य तुलनात्मकमध्ययन’ मिति शोधप्रबन्धे विरचितः, विद्यावारिधिरित्युपाधिश्च लब्धः। अनन्तरं महता समारोहेण तस्य शोधप्रबन्धस्य मुद्रितो ग्रन्थो लोकार्पणं नीतः। अन्येन केनचित् मलकान्तनाम्ना शुना घूकरमहाराजचरितं नात महाकाव्यं पूरितं प्रकाश्यतां च नीतम्। तदधिकृत्यासौ लक्षरूप्यकमितेन श्रीशारदापुरस्कारेण सम्मानितः।
यह सम्पूर्ण गद्यकाव्य वर्तमान राजनीति का दर्पण है और अपनी विषय वस्तु तथा शैली के कारण पठनीय है
डॉ. महावीरप्रसाद साहू
मोबाइल नम्बर -9460244537
धन्यवाद डॉ.साहब ये उपन्यास निश्चित ही संस्कृत साहित्य की अपूर्व थाती है । पंचतंत्र शैली में निबद्ध ये उपन्यास या आख्यान वर्तमान राजनीति के पतन का जीता जागता दृष्टांत है ।
ReplyDeleteअत्यन्त आभार
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