Friday, May 8, 2020

ऊं शान्तिः - यथार्थवादी उपन्यास

संस्कृत में आधुनिक उपन्यासों का प्रारम्भ पं. अम्बिकादत्त व्यास  के शिवराजविजय से माना जाता है, यद्यपि कई शोधकर्ताओं ने इस पक्ष में अपने तर्क दिए हैं कि यह पूर्णतः मौलिक उपन्यास न होकर किसी बांगला उपन्यास पर आधारित था। अस्तु, 18 वीं सदी के अन्त में तथा 19 वीं सदी की शुरुआत में आये इस उपन्यास ने संस्कृत रचानाकारों को उपन्यास लिखने की प्रेरणा दी। तब से लेकर अब तक प्रायः 300 से अधिक संस्कृत उपन्यास संस्कृत में लिखे गये हैं। केशवचन्द्र दाश के उपन्यास इस मामले में अनूठे हैं कि वे अपने पात्रों का न केवल सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण ही करते हैं अपितु उनकी दृष्टि सदैव यथार्थ पर रहती है। वह अपने आसपास के वातावरण से कथावस्तु  का चयन करते हैं। आपके साहित्य का समग्र प्रकाशन प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली से हुआ है। वागर्थ आधुनिक संस्कृत ब्लॉग के लिये डॉ. महावीर प्रसाद साहू ने केशवचन्द्र दाश के एक उपन्यास का परिचय लिखा है। हम उनके आभारी हैं-

ऊं शान्तिः - यथार्थवादी उपन्यास
कृति - ऊं शान्तिः
विधा-उपन्यास
रचयिता-केशवचंद्र दाश
पृष्ठ संख्या - 120
अंकित मूल्य - 300
संस्करण-प्रथम 1997
प्रकाशक- प्रतिभा प्रकाशन, शक्ति नगर, दिल्ली


                      संस्कृत गद्य साहित्य की परम्परा में केशवचन्द्र दाश का ऊं शान्तिः उपन्यास अपना विशिष्ट स्थान रखता है। केशवचन्द्रदाश ने 14 से अधिक संस्कृत उपन्यासों का सृजन किया है। केशवचन्द्रदाश के उपन्यास उस दृष्टि से अनुपम हैं कि उनमें जीवन का यथार्थ पक्ष  प्रकट हुआ है। ऊं शान्तिः एक सामजिक उपन्यास है, जिसकी कथावस्तु में मानव के मानसिक पक्ष को उद्घाटित किया गया है। उपन्यास का प्रमुख पात्र चक्रधर है जो अपनी निर्धनता के कारण शहर में जाकर एक कारखाने मेें काम करने लग जाता है। कारखाने के  मालिक का उस में विश्वास बढता जाता है और वह चक्रधर को मेनेजर बना देता है। यह देखकर मालिक की पुत्री  चन्द्रा का प्रेमी महेन्द्र चक्रधर को एक षडयन्त्र में फंसाने के लिए प्रयत्न करता है किन्तु चक्रधर न केवल उस षडयन्त्र से बच  निकल जाता है अपितु महेन्द्र को भी जेल में पहुंचा देता है। कारखाने का मालिक अपनी बेटी चन्द्रा का विवाह चक्रधर से करना चाहता है किन्तु मॉर्डन विचारों की चन्द्रा महेन्द्र को जेल से मुक्त करवाकर उससे विवाह कर लेती है। दुःखी मालिक अपनी सम्पत्ति चक्रधर के नामकर प्राण त्याग देता है। क्रोधित महेन्द्र कारखाने में आग लगा देता है किन्तु उसी आग में स्वयं भी जल कर मर जाता है। चक्रधर सारी सम्पत्ति चन्द्रा के नाम कर अपने गांव चला जाता है और वहां प्राण त्याग देता है।
                               वर्तमान समाज के विविध पक्षों को उद्घाटित करने वाला यह उपन्यास आद्यन्त अशान्त पात्रों से भरा है, किन्तु परम शान्ति को चक्रधर प्राप्त होता है। यही कारण है कि इस उपन्यास का नाम ऊं शान्तिः रखा गया है।
सम्प्रति समाज में व्याप्त अनाचार, रिश्वत, मद्यपान, गृहक्लेश आदि के कारण सर्वत्र अशान्ति हो रही है। इसी अशान्ति के कारण मानव मन व्याकुल रहता है। वर्तमान समाज में त्याग, प्रेम, करुणा इत्यादि जीवनमूल्य समाप्त हो रहे हैं। इनका स्थान  ईर्ष्या, द्वेष, हिंसा आदि ने ले लिया है। मानव के चारित्रिक पतन को ही उपन्यासकार ने अशान्ति का कारण कहा है- वैपणीकता सम्प्रति जीवनस्य भूमिः। शठता कर्मयोगः। आतंकः कौशलम्। आत्मसात्करणम् उपलब्धिः, प्रभुत्वं विन्यासः सम्मानस्य शीर्षकम्। आत्मप्रचारः परमतुष्टिः। का पुनः सुखस्य अपरा परिभाषा क्व वा शान्तये परिनिष्ठितः पन्थाः।
उपन्यास में मानव जीवन के विविध मनोवैज्ञानिक पक्षों एवं समाज के यथार्थ को उद्घाटित किया गया है। श्रमिकों की चिन्तनीय दशा का यहां वर्णन मिलता है- अधिकारिणो विलासप्रियाः। श्रमजीविनः असन्तुष्टाः, भ्रष्टाचारग्रस्तं प्रशासनम्। क्रीतदासा इव अत्र श्रमजीविनो निवसन्ति। तेषां सौविध्यं सौकर्यं च अधिकारिणो न पश्यन्ति। किमेते पशवः।  किमेते वेतननाम्ना क्रीताः सन्ति? साथ ही वर्तमान शिक्षा पद्धति पर भी करारा व्यंग्य किया गया है- शिक्षण-संस्थात्र विपणौ। नात्र जीवनस्य महत्त्वं प्रतिपाद्यते न वा जीविकाया लक्ष्यमुपस्थाप्यते। न उभयस्य सन्तुलनं विचार्यते। अत्र विद्यार्थिनः साक्षात् वन्यपशवः एकोऽपि मानवो न दृश्यते। किमत्र केवला पशवो निर्मीयन्ते।‘‘ 

वस्तुतः केशवचन्द्र दाश का यह उपन्यास यथार्थवाद से पूर्ण उपन्यास है जो अपनी नवीन कथावस्तु के कारण भी ग्राह्य है।

डॉ. महावीरप्रसाद साहू
मोबाइल नम्बर -9460244537


आपने आधुनिक संस्कृत उपन्यासों पर अपना शोध कार्य किया है। सम्प्रति राजस्थान में  स्थित महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत है। आपकी एक पुस्तक सहित विविध शोधपत्र. प्रकाशित हुए है।

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