Friday, June 5, 2020

संस्कृतसाहित्ये पर्यावरणविज्ञानम्

कृति - संस्कृतसाहित्ये पर्यावरणविज्ञानम्

विधा - शोधपत्रसंकलन
प्रधान सम्पादक - पूर्णचन्द्र उपाध्याय
सम्पादक - धर्मेन्द्र कुमार सिंह देव, नारायण दाश
प्रकाशक - वीणापाणि संस्कृत समिति, भोपाल, मध्यप्रदेश
संस्करण - प्रथम, 2016
पृष्ठ संख्या - 279
अंकित मूल्य - 600


 संस्कृत साहित्य में प्रायः अनेक विषयों के बीज समालोचकों ने तलाशे हैं। संस्कृत साहित्य के विशाल सागर में ना जाने कितने विषय रूपी नदियां आकर मिलती हैं। पर्यावरण भी एक ऐसा ही विषय है। संस्कृत साहित्यकार तो प्रकृति के अत्यन्त समीप रहा है, अतः यह स्वाभाविक ही है कि उसके साहित्य में पर्यावरण विभिन्न अंगों-उपांगों सहित वर्णित हुआ है। संस्कृत साहित्य में पर्यावरण विज्ञान को लेकर समय-समय पर विभिन्न संगोष्ठियां आयोजित होती रही हैं और साथ ही उनमें पढे हुए शोधपत्र भी पुस्तकाकार में हमारे सामने आते रहे हैं। राजस्थान के बूंदी जिले में स्थित स्नातकोत्तर महाविद्यालय तथा जागेश्वरपदा, बालेश्वर स्थित भगवानचन्द्र संस्कृत महाविद्यालय में आयोजित ऐसी ही दो संगोष्ठियों में आये शेाधपत्रों में से 39 शोधपत्रों का चयन कर इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है।

             इस पुस्तक में तीन विभाग हैं, जो कि शोधपत्रों की भाषा की दृष्टि से किये गये हैं-

संस्कृतपत्राणि -
                 इस भाग में 25 शोधपत्र संकलित हैं। प्रो. बनमाली बिश्वाल ने आधुनिक संस्कृत कविताओं में सांस्कृतिक पर्यावरण चेतना पर विस्तार पूर्वक लिखा है। हर्षदेव माधव, हरिदत्त शर्मा, राधावल्लभ त्रिपाठी, रमाकान्त शुक्ल, बनमाली बिश्वाल प्रभृति आधुनिक संस्कृत कवियों के काव्यों से उदाहरण देते हुए प्रो. बिश्वाल ने स्त्री विमर्श का भी स्पर्श किया है। नारायण दाश व समय सिंह मीणा ने भी आधुनिक संस्कृत साहित्य में निबद्ध पर्यावरण चेतना को सोदाहरण व्यक्त किया है। हेमराज सैनी ने अर्वाचीन संस्कृत बाल साहित्य में पर्यावरण चेतना को वर्णित किया है।  पूर्णचन्द्र उपाध्याय ने आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी के पद्य साहित्य में सांस्कृतिक पर्यावरण चेतना पर अपना आलेख लिखा है। सत्यनारायण आचार्य ने भारतायनम् महाकाव्य में, धर्मेन्द्र सिंह देव ने भाति ते भारतम् में, कल्पना शृंगी ने पुरन्ध्रीपंचकम् में, नौनिहाल गौतम ने हरिनारायण दीक्षित के काव्यों में, प्रमोद कु. वैष्णव ने श्रीराम दवे के काव्यों में पर्यावरण चिन्तन को व्यक्त किया है।   प्रो. किशोरचन्द्र पाढी संस्कृत साहित्य में वर्णित पांच तत्त्वों को स्पष्ट करते हैं तो श्रीनिरंजन नायक अभिज्ञानशाकुन्तल के आलोक में परिवेश विज्ञान को व्यक्त करते हैं। इनके अतिरिक्त महावीर साहू के आलेख में गुलिका काव्यसंग्रह में सांस्कृतिक चेतना का तथा पिंकेश दाधीच के आलेख में अर्वाचीन संस्कृत साहित्य की विधाओं का वर्णनकिया गया है। राकेश दाश ने अपना आलेख पृथूपाख्यानं  तथा पर्यावरणचिन्तनम्  बहुत अच्छी शैली में  लिखा है|


हिन्दी पत्राणि -
               इस भाग में 12 शोध पत्र संकलित हैं। प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने आधुनिक संस्कृत साहित्य में पर्यावरण चेतना पर विचार व्यक्त करते हुए श्रीनिवास रथ, नागार्जुन, क्षमाराव आदि के काव्यों से उदाहरण दिये हैं। वे प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर देते हैं कि पर्यावरण एक व्यापक अवधारणा है-

अनुभवाः स्मृतयो वापि इतिहासाश्च संस्कृतिः।
सर्वमेतत् तथा तत्त्वं पर्यावरण आहितम्।।
साहित्ये बिम्बते काचित् पर्यावरणचेतना।
साहित्यं चापि निर्माति स्वं पर्यावरणं स्वयम्।।

उत्तमा थरवन् ने प्रो. बनमाली बिश्वाल की कथाओं में सांस्कृतिक पर्यावरण चेतना पर तथा डॉ. ललित किशोर नाम ने डॉ. हरिनारायण दीक्षित के काव्यों मे ंनिहित पर्यावरण चेतना को उल्लिख्ति किया है। ज्योति शर्मा का आलेख अभिनवशुकसारिका में नारी चेतना पर, प्रदीप दुबे का आलेख सांस्कृतिक पर्यावरण चेतना पर, बाबूलाल मीना का आलेख संस्कृतमधुगीतगुंजनम् में पर्यावरण चेतना पर है। श्रीमती अशोक कंवर शेखावत ने अभिराज राजेन्द्र मिश्र के कथा साहित्य में सांस्कृतिक पर्यावरण चेतना को सोदाहरण बतलाया है। सुश्री उषा जैन आधुनिक संस्कृत ललित निबन्ध साहित्य में अभिव्यक्त पर्यावरणीय चेतना को वर्णित किया है।

आंग्लपत्राणि-
                इस भाग में दो पत्र संकलित हैं। डॉ. गिरिधारी पण्डा ने संस्कृत साहित्य में पशु संरक्षण पर तथा श्रीमती स्वर्णलता पण्डा ने महाभारत में पर्यावरण विज्ञान पर अपने शेाध पत्र लिखे हैं। जो अत्यन्त उपादेय हैं।

               

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