Thursday, June 4, 2020

संस्कृत के अर्वाचीन साहित्य के विकास में पं. प्रेमनारायण द्विवेदी का योगदान

संस्कृत के अर्वाचीन साहित्य के वि
कास में पं. प्रेमनारायण द्विवेदी का योगदान

पुस्तक- संस्कृत के अर्वाचीन साहित्य के विकास में पं. प्रेमनारायण द्विवेदी का योगदान
लेखक- डॉ. ऋषभ भारद्वाज
जन्मतिथि- 12 जनवरी 1981
जन्मस्थान- सागर (म.प्र.)
सम्पर्क- मो. 9685390891, 8982249787, ईमेल bharadwajrishabh81@gmail.com
प्रकाशक- सत्यम् पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली
आईएसबीएन- 978-93-83754-02-1
पृष्ठ संख्या- 804
अंकित मूल्य- 1300रू.
संस्करण- 2014 प्रथम


लेखक- संस्कृत साहित्य के अध्येता एवं पाण्डुलिपियों के ज्ञाता डॉ. ऋषभ भारद्वाज ने उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त की है। वे पाण्डुलिपियों के क्षेत्र में पिछले डेढ़ दशक से कार्य कर रहे हैं। इसी सिलसिले में वे कई महीनों तक कश्मीर में रहे। तब उन्होंने अपने प्रथम ग्रन्थ ‘कश्मीर इतिहास और संस्कृति’ (2008 ई.) से अपनी लेखकीय प्रतिभा का परिचय कराया था। उन्होंने 21000 पद्यों के रचयिता पं. प्रेमनारायण द्विवेदी के साहित्य पर शोधकार्य किया है। द्विवेदी जी के अप्रकाशित साहित्य को संपादित कर प्रकाशित कराने का उनका कार्य स्तुत्य है। अपने अनुसन्धेय और गुरुजनों के प्रति उनकी श्रद्धा देखते ही बनती है। उनके तीन मौलिक आलोचना ग्रन्थ, आठ संपादित ग्रन्थ और पच्चीस शोधपत्र प्रकाशित हैं। उन्हें संस्कृत के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हेतु पं. गोविन्द प्रसाद शास्त्री संस्कृत विद्वत् सम्मान, कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन से व्यासपुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। वर्तमान में वे पाण्डुलिपि संसाधन केन्द्र, संस्कृत विभाग, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में कार्यरत हैं।

                            डॉ. ऋषभ भारद्वाज

पुस्तक- डॉ. ऋषभ भारद्वाज ने 2011 में डॉ. कुसुम भूरिया के निर्देशन में संस्कृत के अर्वाचीन साहित्य के विकास में पं. प्रेमनारायण द्विवेदी का योगदान विषय पर पीएच.डी. उपाधि प्राप्त की थी। इसे 2014 में पुस्तकाकार में प्रकाशित किया गया है। ग्रन्थ के आरम्भ में प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी का प्राक्कथन और प्रो. कुसुम भूरिया की शुभाशंसा है। लेखक का मुख्य उद्देश्य विशाल साहित्य को एक साथ समाज के सामने लाने का रहा है। बहुत संक्षेप करने पर भी शोधग्रन्थ बृहदाकार हो गया है। लेखक ने कवि के परिचय, काव्यों के परिचय और काव्यगत-अनुवादगत समीक्षा कर निश्चित रूप से श्रमसाध्य कार्य किया है। प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने लेखक के कार्य को सराहा है। अप्रकाशित होने के कारण कुछ रचनाएं इस ग्रन्थ में नहीं आ सकी हैं, अतः वे अभी भी अनुसन्धेय हैं। इस पुस्तक में दस अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में पं. प्रेमनारायण द्विवेदी का जीवन-दर्शन, द्वितीय अध्याय में संस्कृत की अनूदित काव्य परम्परा, तृतीय अध्याय में अनूदित काव्यधारा में श्रीमद्रामचरितमानसम् का समीक्षात्मक अध्ययन, चतुर्थ अध्याय में स्तुतिकुसुममाला का समीक्षात्मक अध्ययन, पंचम अध्याय में सौन्दर्यसप्तशती का समीक्षात्मक अध्ययन, षष्ठ अध्याय में अनूदित कवितावली का समीक्षात्मक अध्ययन, सप्तम अध्याय में अनूदित वैदिक सूक्तों का तुलनात्मक अध्ययन, अष्टम अध्याय में मौलिक लघुकाव्यों का परिचय तथा विवेचन, नवम अध्याय में अनूदित लघुकाव्यों का परिचय तथा विवेचन, दशम अध्याय में हिन्दी साहित्य के अनूदित काव्यों का परिचय तथा विवेचन दिया गया है। अन्त में उपसंहार और सन्दर्भ ग्रन्थ सूची हैं। सारस्वत साधक पं. प्रेमनारायण द्विवेदी के व्यक्तिपक्ष और कृतिपक्ष से परिचय कराने में यह ग्रन्थ नितान्त उपादेय है।


डॉ नौनिहाल गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर -डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय 
मोबाइल नम्बर - 9826151335
मेल आईडी - dr.naunihal@gmail.com

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